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इलाहाबाद हाईकोर्ट का हिंदू-मुस्लिम लिव इन रिलेशनशिप को लेकर तारीखी फैसला

5 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
पीर, 24 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं
‘आप (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के साथ हजरत अबू बकर (रदिअल्लाहो अन्हो), हजरत उमर (रदिअल्लाहो अन्हो) और हजरत उस्मान (रदिअल्लाहो अन्हो) भी थे, अचानक उहद पहाड़ लरजने लगा तो आप (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने अपने पांव से पहाड़ पर ठोकर मारकर फरमाया, उहद, ठहरा रह कि तु­ा पर एक नबी, एक सिद्दीक और दो शोहदा ही तो हैं।’
- बुखारी शरीफ 
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  • कहा, इस्लाम में शादी से कब्ल बोसा लेना, ताड़ना और साथ रहना, सब हराम 
    इलाहाबाद हाईकोर्ट का हिंदू-मुस्लिम लिव इन रिलेशनशिप को लेकर तारीखी फैसला
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इलाहाबाद : आईएनएस, इंडिया 
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उतर प्रदेश में बैन मजहबी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक जोड़े की अर्जी पर अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी किस्म की जिन्सी, शहवत अंगेज, हैजानअंगेज हरकत जैसे चूमाचाटी, छूना, शादी से पहले घूरना इस्लाम में हराम करार दिया गया है। उसे हराम समझते हुए जिना करार दिया गया है। अदालत ने नोट किया कि कुरआन के सूरा अल नूर के मुताबिक गैर शादीशुदा मर्दों और औरतों के लिए जिना की सजा 100 कोड़ों की है। शादीशुदा मर्दों और औरतों के लिए रज्म की सजा है। 
    ख़्याल रहे कि लड़की की माँ लिव इन रिलेशनशिप से नाखुश है जिसके बाद दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इस तबसरा के साथ ही हाईकोर्ट ने बेन मजहबी जोड़े के तहफ़्फुज की दरखास्त खारिज कर दी। एक 29 साला हिंदू खातून और एक 30 साला मुस्लमान मर्द ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए अदालती तहफ़्फुज की दरखास्त दायर की थी। ताहम दोनों ने मुस्तकबिल करीब में शादी करने की खाहिश जाहिर नहीं की थी। 

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हाईकोर्ट ने कहा कि शरीयत इस्लामी में गैर अजदवाजी जिन्सी ताल्लुकात को कोई तस्लीम नहीं करता। वाजेह हो कि इल्जाम है कि लड़की की माँ के कहने पर लखनऊ के हसनगंज थाने की पुलिस उन्हें हिरासाँ कर रही है। अर्जी में कहा गया कि लड़की के घर वाले दोनों के मुख़्तलिफ मजाहिब की वजह से उनका रिश्ता कबूल नहीं कर रहे हैं, ताहम अदालत ने कहा कि अगर उसे हकीकी खतरा है तो वो पुलिस में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। मजाज अदालत के सामने 156 (3) सीआरपीसी के तहत भी दरखास्त दे सकते हैं, या सेक्शन 200 सीआरपीसी के तहत शिकायत दर्ज कराने के लिए भी आप आजाद हैं। जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की डिवीजन बेंच ने अर्जी को खारिज कर दिया।


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