नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
सुप्रीमकोर्ट ने मजहब की तबदीली को इंतिहाई संगीन मुआमला करार दिया। सुप्रीमकोर्ट ने पीर को एक अर्जी का नोटिस लिया जिसमें मर्कज की तरफ से तबदीली मजहब मुखालिफ कानून मुतआरिफ कराने के लिए कार्रवाई की दरखास्त की गई थी।
कोर्ट ने कहा कि सियासत को कभी भी मजहब की तबदीली जैसे संगीन मसले को रंग नहीं देना चाहिए। जस्टिस एमआर शाह और सीटी रवी कुमार की बेंच ने पीर को समाअत के दौरान अटार्नी जनरल आर वेंकट रामानी को इस मुआमले में हाजिर होने को कहा। दो जजों की बेंच ने उनसे पूछा कि मर्कज ने जबरदस्ती और खौफ या लालच के जरीये तबदीली को रोकने के लिए क्या इकदामात किए हैं। इत्तिफाक से, उतर प्रदेश और गुजरात समेत मुख़्तलिफ रियास्तें पहले ही लव जिहाद को रोकने के लिए तबदीली मजहब मुखालिफ कवानीन बना चुकी हैं।
तबदीली मजहब के मुखालिफ कवानीन के नाकिदीन का कहना है कि ऐसे कवानीन गैर आईनी हैं, जहां मुल्क का आईन सेकूलरिज्म, मुसावात और अदम इमतियाज को बयान करता है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवी कुमार की बेंच ने अटार्नी जनरल आर वेंकट रामानी से कहा कि हम ये जानना चाहते हैं कि क्या तबदीलीयां जबरदस्ती हो रही हैं या लालच देकर ऐसा किया जा रहा है। और अगर ऐसा हो रहा है, तो उसे बेहतर बनाने के लिए क्या किया करना चाहिए, मर्कज को इस मुआमले में मदद करनी चाहिए।
तमिलनाडू हुकूमत की तरफ से पेश होने वाले सीनीयर वकील पी विल्सन ने दरखास्त को सियासी तौर पर मुहर्रिक करार दिया। उन्होंने इसरार किया कि तमिलनाडू में इस तरह की तबदीलीयों का सवाल ही पैदा नहीं होता। इस पर सुप्रीमकोर्ट की बेंच ने एतराज करते हुए कहा कि अदालत की समाअत को दूसरे मुआमलात की तरफ मोड़ने की कोशिश ना करें, हमें पूरे मुल्क की फिक्र है, अगर आपकी रियासत में ऐसा हो रहा है तो ये बुरा है। और अगर ऐसा नहीं है तो ये अच्छी बात है। उसे किसी रियासत को निशाना बनाने के तौर पर मत देखें, उसे सियासी ना बनाएँ।
आपको बता दें कि एडवोकेट अश्वनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी जिसमें मर्कजी और रियास्ती हुकूमतों को धोका दही या जबरदस्ती मजहब की तबदीली के खिलाफ सख़्त इकदामात करने की हिदायत देने का मुतालिबा किया गया था। गुजरात हुकूमत ने शादी के लिए मजहब तबदील करने से कब्ल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की इजाजत को लाजिÞमी करार देते हुए एक कानून बनाया था। ताहम गुजरात हाईकोर्ट ने इस कानून पर रोक लगा दी थी। गुजरात हुकूमत ने स्टे को हटाने के लिए सुप्रीमकोर्ट से रुजू किया था। इस दौरान गुजरात हुकूमत ने कहा था कि मजहब की आजादी में मजहब तबदील करने का हक शामिल नहीं है। दरखास्त में कहा गया है कि जबरी तबदीली मजहब पूरे मुल्क का मसला है और इस पर फौरी तवज्जा देने की जरूरत है। दरखास्त में जस्टिस कमीशन से एक रिपोर्ट और बिल तैयार करने का भी मुतालिबा किया गया है, जिसमें धमकी देकर या लालच देकर मजहब की तबदीली के वाकियात पर काबू पाया जा सके। अब सुप्रीमकोर्ट इस मुआमले की समाअत 7 फरवरी को करेगी।