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मिर्जा गालिब के कलाम का हू-ब-हू तर्जुमा ना-मुम्किन : डाक्टर आर कंवल

मिर्जा असद उल्ला खां गालिब की 225 वीं यौम-ए-पैदाइश पर रंगारंग तकरीब का इनइकाद

नई दिल्ली : टीएन भारती, आईएनएस, इंडिया 

उर्दू शायरी के फलक पर दरखशिंदा सितारे की मानिंद मिर्जा असद उल्ला खां गालिब की यौम-ए-पैदाइश के मौका पर गालिब एकेडमी में रंगारंग तकरीब का इनइकाद किया गया। 

एकेडमी के सेक्रेटरी डाक्टर अकील अहमद ने निजामत के फराइज अंजाम देने हुए कहा कि मिर्जा गालिब की बदकिस्मती थी कि तेरह बरस की उम्र में बाद अज निकाह, जब दिल्ली तशरीफ लाए तो उनका मुकाबला जौक से हुआ। गालिब की तमाम औलादें फौत हो गईं। यहां तक की गोद ली हुई औलाद भी ना रहीं। गालिब की डगर मुख़्तलिफ थी। वो लकीर के फकीर ना थे। उन्होंने मजीद कहा कि गालिब के कलाम के तवस्सुत से ना सिर्फ गुलूकारों ने शोहरत हासिल की, बल्कि उनकी तसावीर को कैनवस पर रंग भरने वाले आर्टिस्टों एमएफ हुसैन, सतीश गुजराल, चंद्रा वगैरा ने भी आला मुकाम हासिल किया। 

दौर-ए-हाजिÞर में भी गैर उर्दू शनास नस्ल गालिब का मुताला करने के लिए उर्दू जबान-ओ-अदब की तरफ माइल है। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूनीवर्सिटी की लेक्चरर गीतांजलि ने गालिब एकेडमी से गालिब की शायरी को पड़ कर उर्दू सर्टीफिकेट कोर्स में कामयाबी हासिल की। जामिआ मिलिया इस्लामिया के सदर शोबा उर्दू प्रोफेसर मुहम्मद महफूज खां ने ब उनवान गालिब की फन्नी महारत के चंद पहलू पर इजहार-ए-खयाल करते हुए कहा कि गालिब अपनी रिवायत के सबसे बड़े शायर हैं। जिस तरह अंग्रेजी अदब वाले शेक्सपीयर पर और फारसी अदब वाले फिर्दोसी पर नाजाँ हैं, उर्दू अदब वाले मिर्जा गालिब पर फखर करते हैं। किसी भी दीगर जबान के मद्द-ए-मुकाबिल गालिब की शायराना सलाहीयत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वहीं जामिआ मिलिया इस्लामिया के साबिक सदर शोबा उर्दू और साबिक डीन आर्टस फेकल्टी के रुक्न प्रोफेसर वहाज उद्दीन अलवी ने कहा कि गालिब के यहां बड़े तमाशे देखने को मिलते हैं। कभी वो उर्दू से दरगुजर की बात करते हैं, तो कभी जबान फारसी पर तीर-अंदाजी करते हैं। 

उन्होंने कहा, गालिब को जबान पर कुदरत हासिल थी। अंग्रेजी जबान के माहिर हंसराज कॉलेज के साबिक प्रोफेसर डाक्टर कुलदीप सलील ने पुर मुसर्रत लहजे में कहा कि गालिब की शायरी में नशा है, उर्दू गजल के माहौल में परवरिश पाई। फैज अहमद फैज से कदीमी ताल्लुक रहा। उर्दू जबान-ओ-अदब की चाशनी एहद-ए-तिफली में मयस्सर हुई। अंग्रेजी तर्जुमा के जरीये गालिब, मीर, फैज, की गजलों पर काम किया ताकि उर्दू शायरी की रसाई अंग्रेजी जबान तक पहुंचने में कामयाबी हासिल हो सके। 

इस मौका पर डाक्टर कुलदीप ने गालिब की गजलों का उर्दू तर्जुमा भी पेश किया। फारसी जबान के साबिक प्रोफेसर कासिमी ने कहा कि गालिब फारसी में सोचते थे, लेकिन उर्दू जबान में लिखते थे। तकरीब के दौरान उर्दू के मारूफ शायर मतीन अमरोही ने गालिब की अजमत का बयान कसीदा नुमा गजल से किया। जबकि दिल्ली यूनीवर्सिटी की उस्ताद गीतांजलि ने मुतरन्निम लहजा में गालिब की गजल सुनाई। अलावा इसके मशहूर गजल गुलूकारा रश्मि अग्रवाल ने अपनी खूबसूरत आवाज में मिर्जा गालिब की गजलें पेश कीं। अरबी जबान में सर्टीफिकेट कोर्स मुकम्मल करने वाले तलबा व तालिबात के बीच अस्नाद तकसीम की गईं।

ज्ञानपीठ ईनाम-ए-याफ़्ता शायर प्रोफेसर राही का 98 साल की उम्र में इंतिकाल

श्रीनगर : कश्मीरी जबान के मारूफ शायर और ज्ञानपीठ ईनाम-ए-याफ़्ता प्रोफेसर रहमान राही का जम्मू-ओ-कश्मीर के दार-उल-हकूमत श्रीनगर में 98 साल की उम्र में इंतिकाल हो गया। 

उनकी वफात से कश्मीर एक आला पाया के शायर, दानिश्वर और मौजूदा तारीख के हस्सास तरीन चशमदीद गवाहों से महरूम हो गया। वे कश्मीर यूनीवर्सिटी के शोबा कश्मीरी के सदर की हैसियत से तवील तदरीसी कैरीयर के बाद हमावकत शायरी और तसनीफ के साथ वाबस्ता रहे। जराइआ के मुताबिक उन्होंने अपनी रिहायश गाह में सुकून के साथ आखिरी सांस ली। अमरीका से शाइआ होने वाले मुकतदिर कश्मीर रिसाले के मुदीर मुनीब अल रहमान ने लिखा कि रहमान राही की वफात जदीद कश्मीरी लिटरेचर के एक दौर का खातमा है। उन्होंने कहा कि ये एक अजीम नुक़्सान है। वहीं सरकरदा शायर प्रोफेसर शफक के मुताबिक रहमान राही को अंग्रेजी और फारसी पर कमाल की दस्तरस थी। जिन्होंने राही को देखा है, उनकी सात पुश्तें उन पर फखर करेंगी। कई बरसों से उन्होंने मीडीया और अदबी शख्सियात के साथ मुलाकातों का सिलसिला और अदबी तकारीब में शरीक होना भी बंद कर दिया था। कश्मीरी लिटरेचर में रहमान राही वो वाहिद शख़्सियत थे, जिन्हें हकूमत-ए-हिन्द की जानिब से अदीबों को दिए जानेवाले सबसे बड़े कौमी ऐवार्ड यानी ज्ञानपीठ से नवाजा गया है। 

सन 2008 में उन्हें उस वक़्त के वजीर-ए-आजम डाक्टर मनमोहन सिंह के हाथों ज्ञानपीठ ऐवार्ड दिया गया था। कश्मीरी जबान और शायरी में लामिसाल अदबी खिदमात अंजाम देने वाले प्रोफसरी राही ने तकरीबन एक दर्जन किताबें तसनीफ कीं और मुतअद्दिद किताबों के तर्जुमें भी किए हैं। नीज सैंकड़ों तलबा-ओ-स्कालरज की रहनुमाई भी की है। प्रोफेसर रहमान राही का असल नाम अबदुर्रहमान वाजिह था। उन्होंने 1948 में महिकमा पब्लिक वर्क़्स में बहैसीयत क्लर्क काम किया था और उनका तबादला सोपोर कस्बे में हुआ था लेकिन ये काम उन्हें रास नहीं आया और उन्होंने इस्तीफा देकर तालीम-ओ-ताल्लुम का पेशा इखतियार किया। उन्होंने एक मुकामी अखबार के मुदीर के तौर पर भी अपने फराइज अंजाम दिए। सन 1952 में उन्होंने फारसी और फिर अंग्रेजी जबान में भी मास्टर्ज की डिग्री हासिल की। बाद में वो कश्मीर यूनीवर्सिटी में बतौर उस्ताद अपने फराइज अंजाम देते रहे, जहां उनकी शख़्सियत में निखार आ गया और वो शायर, नक़्काद और मुहक़्किक के तौर उभरे।


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