नई तहरीक : दुर्ग
पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों को जागरुक करने पर्यावरण अध्ययन को अनिवार्य विषय के रूप में पाठ्य्रकम में शामिल किया गया है। पर्यावरण संरक्षण में स्टूडेंट्स के योगदान व उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देने उनसे फील्ड वर्क कराया जा रहा है।
फील्ड वर्क के तहत विद्यार्थियों को महाविद्यालय परिसर से निकला कचरा, पेड़ों के पत्ते आदि एकत्र कर सड़ाया गया, बीच-बीच में मिट्टी की परत डाली गई। इस प्रक्रिया से कचरा कुछ समय पश्चात सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा अपघटित होकर सूक्ष्म खाद् के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया से बनी खाद को कम्पोष्ट खाद व खाद बनाने की प्रक्रिया को कम्पोस्टीकरण कहा जाता है। प्राकृतिक प्रक्रिया से बनी खाद में घरेलु कचरे का प्रयोग किया जा सकता है। इस खाद का उपयोग किचन गार्डन में किया जा सकता है। इससे रसायनिक खाद से होने वाले दुष्प्रभाव से पर्यावरण को बचाया जा सकता है। इसके अलावा कचरे को प्रबंधित करने की समस्या से भी छुटकारा मिल जाता है। इस तरह खाद लगभग पंद्रह दिन में तैयार हो जाती है।
महाविद्यालय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. दीपक शर्मा ने कहा, इस प्रकार की गतिविधियों से विद्यार्थियों को व्यवहारिक ज्ञान मिलता है। इसके अलावा वे पर्यावरण सुरक्षित करने में सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह हम अपनी समाजिक सहभागिता का निर्वहन कर सकते हैं। प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने जैविक खाद बनाने की तकनीक की सराहना करते हुए कहा, रसायनिक खाद पेड़-पौधे, मिट्टी व पर्यावरण के लिए नुकसानदाय होते हैं इसलिए हमें अधिक से अधिक जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए।
कचरे से खाद बनाना सीख कर विद्यार्थी काफी खुश हुए। उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपने घर पर ऐसे ही खाद बनाकर आस-पास के लोगों को कचरे से खाद बनाना सिखाएंगें जिससे हम पुन: जैविक खाद के उपयोग की दिशा मे अग्रसर होगें। कार्य को पूर्ण करने में सहायक प्राध्यापक अपूर्वा शर्मा बॉयोटेक्नोलॉजी का विशेष योगदान रहा।