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मुख़्तलिफ मजहब के दरमियान एतिमाद पैदा करने की जरूरत : अमर्त्य सेन

कोलकाता : आईएनएस, इंडिया 

मुख़्तलिफ मजाहिब के लोगों के दरमियान गलत-फहमियों को दूर करने के लिए आपस में एतिमाद पैदा करने की जरूरत है। इन ख़्यालात का इजहार मशहूर इकानामिस्ट और नोबल ईनाम याफ़्ता अमर्त्य सेन ने किया। वे स्कूली बच्चों के लिए कायम अपनी तंजीम ‘प्रतीची’ के जेरे एहतिमाम एक तकरीब (समारोह) से खिताब कर रहे थे। 

उन्होंने कहा कि जहालत ने मुआशरे में फर्क पैदा कर दिया है। हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां मजहब के दरमयान खौफनाक हद तक गलत-फहमियाँ पाई जाती हैं और ये एक आम बात हो चुकी है। हमारे दरमियान इखतिलाफात की बहुत सी शक्लें हैं। उनमें से कुछ इखतिलाफात जहालत की वजह से हैं। उन्होंने कहा कि मुआशरे में एतिमाद की फिजा पैदा करने की जरूरत है, अगर कोई मुस्लमान शरीफ आदमी मुख़्तलिफ नुक़्ता-ए-नजर रखता है, तो हमें ये सवाल पूछना होगा कि वो मुख़्तलिफ नुक़्ता-ए-नजर क्यों ले रहा है, उन्होंने कहा कि मुआशरे में एक फर्द दूसरे से मुत्तफिक नहीं हो सकता है। ये फितरी बात है कि उनकी राय मुख़्तलिफ होती है। इस पर कोई तनाजा (विवाद) नहीं होना चाहिए। अक्सर हमारी एक-दूसरे को समझने की सलाहीयत गैरमामूली हद तक महदूद होती है। 

उन्होंने कहा कि अवाम को मुल्क में फैली अदम बर्दाश्त की फिजा के खिलाफ मुत्तहिद होना चाहिए। लोगों को मिलकर काम करना होगा। मुल्क को बाहमी इखतिलाफात दूर करके आगे बढ़ना चाहिए। तनव्वो (विविधता) के फायदे और नुक़्सान दोनों हैं। हालांकि हमें तनव्वो के मुसबत (पाजीटिव) पहलुओं को देखना होगा और आगे बढ़ना होगा। उन्होंने दावा किया कि ताजमहल के ज्यादातर आर्किटेंक्ट हिंदू थे। ताजमहल हिन्दुओं और मुस्लमानों के दरमियान हम-आहंगी की बेहतरीन मिसाल है। शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह ने उपनिषदों को पूरी दुनिया में मुतआरिफ कराया। दारा शिकोह ने सबसे पहले उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में तर्जुमा किया था, इस तजुर्मे के बाद उपनिषदों का जर्मन और अंग्रेजी में तर्जुमा हुआ। 


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