शाअबान अल मोअज्जम, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
"आदमी के इस्लाम की खूबियों में से ये खूबी है के वो बेमकसद और फ़ुज़ूल काम छोड़ दें।"
- तिर्मिज़ी
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
क़ौमी उर्दू काउंसिल के ज़ेर-ए-एहतिमाम आलमी किताब मेले में गुजिश्ता दिनों अदब इतफ़ाल (बाल साहित्य) के उनवान से प्रोग्राम का इनइक़ाद हुआ जिसमें डाक्टर अमीर हमज़ा और डाक्टर ग़ज़ाला फ़ातिमा ने शिरकत की और उन्होंने मौजूदा दौर में अदब इतफ़ाल की एहमीयत-ओ-इफ़ादीयत, ज़बान-ओ-उस्लूब और अदब इतफ़ाल की सूरत-ए-हाल के हवाले से अपने ख़्यालात का इज़हार किया। प्रोग्राम की सदारत डाक्टर भानू प्रताप शोबा उर्दू, ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज, दिल्ली यूनीवर्सिटी ने की।
इस मौके़ पर इज़हार-ए-ख़याल करते हुए डायरेक्टर क़ौमी उर्दू काउंसिल डाक्टर शम्स इक़बाल ने कहा कि उर्दू में बच्चों के अदब पर बहुत काम करने की ज़रूरत है, नई नसल के मुसन्निफ़ीन और तख़लीक़ कारों को सीखना होगा कि बच्चों के लिए कैसे लिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का बच्चा पहले के बच्चे से बहुत मुख़्तलिफ़ है, आज बच्चों की तर्जीहात बदल रही हैं, इसलिए लिखने वालों को भी अपनी तर्जीहात बदलनी होंगी। मेरा ख़्याल है कि उर्दू में ज़बान की सतह पर तवज्जा है, मगर लिखना क्या है, इस पर तवज्जा नहीं है, इसलिए अदब इतफ़ाल में बहुत ज़्यादा तवज्जा देने की ज़रूरत है।
डाक्टर शम्स इक़बाल ने कहा कि बच्चों के लिए अगर अच्छा अदब नहीं तख़लीक़ किया गया तो अदब-ए-आलिया (उच्च साहित्य) की भी तख़लीक़ नहीं हो पाएगी। उन्होंने मज़ीद कहा कि बच्चों के लिए जब हम मवाद तैयार करते हैं तो आस-पास के माहौल को भी देखना चाहिए, हिन्दोस्तान जो कसीर लिसानी और सक़ाफ़्ती मुल्क है, यहां बहुत से सक़ाफ़्ती और तहज़ीबी मराकज़ हैं और बहुत सी अहम समाजी, सियासी और इलमी शख़्सियात हैं, उन पर बच्चों के लिए लिखना चाहिए, वो जब हिन्दोस्तान की मुख़्तलिफ़ ज़बानों, मज़ाहिब और तहज़ीबों को पढ़ेंगे तो उनकी मालूमात में इज़ाफ़ा होगा।
उन्होंने कहा कि मुझे नौजवान तख़लीक़ कारों से बहुत उम्मीदें हैं, उनकी ज़बान भी अच्छी है, हम नई नसल को आने वाली नसल से मुतआरिफ़ कराना चाहते हैं जिसके लिए हम मुख़्तलिफ़ सतहों पर कोशिशें कर रहे हैं। डाक्टर भानूप्रताप ने अपने सदारती ख़िताब में नई नसल की हौसला-अफ़ज़ाई करते हुए कहा कि यहां नौजवान नसल की तरफ़ से तश्फ़ी बख़श जवाबात आए, बच्चों की इलमी और अख़लाक़ी तर्बीयत के लिए अदब इतफ़ाल तख़लीक़ किया जाता है, हम टेक्नोलोजी के दौर में जी रहे हैं इसलिए बच्चों की मौजूदा नफ़सियात को मलहूज़ रखकर अदब तख़लीक़ किया जाना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि बच्चे मुल्क की तामीर-ओ-तरक़्क़ी में अहम किरदार अदा करें तो उन्हें उनकी समझ के मुताबिक़ मवाद देना होगा, आने वाले दौर के मुताबिक़ बच्चों को ढालना आसान काम नहीं है, बच्चा जिस दौर में है, वो भी और जिस दौर में हम उसे ले जाना चाह रहे हैं, वो भी अहम है, इसलिए हम सबको मिलकर अच्छे अदब की तख़लीक़ में अपना किरदार अदा करना चाहिए। क़ौमी उर्दू काउंसिल का ये इक़दाम ख़ुश आइंद है। प्रोग्राम की निज़ामत के फ़राइज़ डाक्टर शादाब शमीम ने दिए।
इस मौके़ पर इज़हार-ए-ख़याल करते हुए डायरेक्टर क़ौमी उर्दू काउंसिल डाक्टर शम्स इक़बाल ने कहा कि उर्दू में बच्चों के अदब पर बहुत काम करने की ज़रूरत है, नई नसल के मुसन्निफ़ीन और तख़लीक़ कारों को सीखना होगा कि बच्चों के लिए कैसे लिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का बच्चा पहले के बच्चे से बहुत मुख़्तलिफ़ है, आज बच्चों की तर्जीहात बदल रही हैं, इसलिए लिखने वालों को भी अपनी तर्जीहात बदलनी होंगी। मेरा ख़्याल है कि उर्दू में ज़बान की सतह पर तवज्जा है, मगर लिखना क्या है, इस पर तवज्जा नहीं है, इसलिए अदब इतफ़ाल में बहुत ज़्यादा तवज्जा देने की ज़रूरत है।
डाक्टर शम्स इक़बाल ने कहा कि बच्चों के लिए अगर अच्छा अदब नहीं तख़लीक़ किया गया तो अदब-ए-आलिया (उच्च साहित्य) की भी तख़लीक़ नहीं हो पाएगी। उन्होंने मज़ीद कहा कि बच्चों के लिए जब हम मवाद तैयार करते हैं तो आस-पास के माहौल को भी देखना चाहिए, हिन्दोस्तान जो कसीर लिसानी और सक़ाफ़्ती मुल्क है, यहां बहुत से सक़ाफ़्ती और तहज़ीबी मराकज़ हैं और बहुत सी अहम समाजी, सियासी और इलमी शख़्सियात हैं, उन पर बच्चों के लिए लिखना चाहिए, वो जब हिन्दोस्तान की मुख़्तलिफ़ ज़बानों, मज़ाहिब और तहज़ीबों को पढ़ेंगे तो उनकी मालूमात में इज़ाफ़ा होगा।
उन्होंने कहा कि मुझे नौजवान तख़लीक़ कारों से बहुत उम्मीदें हैं, उनकी ज़बान भी अच्छी है, हम नई नसल को आने वाली नसल से मुतआरिफ़ कराना चाहते हैं जिसके लिए हम मुख़्तलिफ़ सतहों पर कोशिशें कर रहे हैं। डाक्टर भानूप्रताप ने अपने सदारती ख़िताब में नई नसल की हौसला-अफ़ज़ाई करते हुए कहा कि यहां नौजवान नसल की तरफ़ से तश्फ़ी बख़श जवाबात आए, बच्चों की इलमी और अख़लाक़ी तर्बीयत के लिए अदब इतफ़ाल तख़लीक़ किया जाता है, हम टेक्नोलोजी के दौर में जी रहे हैं इसलिए बच्चों की मौजूदा नफ़सियात को मलहूज़ रखकर अदब तख़लीक़ किया जाना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि बच्चे मुल्क की तामीर-ओ-तरक़्क़ी में अहम किरदार अदा करें तो उन्हें उनकी समझ के मुताबिक़ मवाद देना होगा, आने वाले दौर के मुताबिक़ बच्चों को ढालना आसान काम नहीं है, बच्चा जिस दौर में है, वो भी और जिस दौर में हम उसे ले जाना चाह रहे हैं, वो भी अहम है, इसलिए हम सबको मिलकर अच्छे अदब की तख़लीक़ में अपना किरदार अदा करना चाहिए। क़ौमी उर्दू काउंसिल का ये इक़दाम ख़ुश आइंद है। प्रोग्राम की निज़ामत के फ़राइज़ डाक्टर शादाब शमीम ने दिए।