मोहर्रम-उल-हराम - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
बेवाओं और मिस्कीनों के काम आने वाला अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले के बराबर है, या रातभर इबादात और दिन में रोज़ा रखने वाले के बराबर हैं।
- बुख़ारी शरीफ
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✅ गजा : आईएनएस, इंडिया
ग़ज़ा की पट्टी पर हज़ारों बे-घर फ़लस्तीनीयों ने फुटबाल स्टेडियम में पनाह ली है। ये ग्राउंड किसी ज़माने में सबसे बड़े स्टेडीयम का दर्जा रखता था। हालांकि स्टेडियम में फ़लस्तीनी ख़ानदान इंतिहा महदूद ख़ुराक-ओ-पानी के साथ रह रहे हैं। हर तरफ़ धूल ज़दा माहौल और ख़ुशकी है। वो बैंच जिन पर खिलाड़ी फ़ारिग़ वक़्त में बैठते थे, उनके नीचे भी लोगों ने पनाह ले रखी है। एक पनाह गजीन उमर बशर कहती हैं कि हम इस जंग के दौरान बार-बार नक़्ल मकानी कर चुके हैं और बे-घर हो चुके हैं।
एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं तो इसराईली बमबारी वहां भी शुरू हो जाती है। जैसा कि शुजा आया में हो चुका है जो ग़ज़ा शहर के पड़ोस में क़ायम बस्ती है। उमर बशर के मुताबिक़ हमारी आँख खुली तो घर के बाहर टैंक खड़े थे। हम अपने साथ कोई भी चीज़ ना ला सके। उन्होंने कहा कि शुजा आया के दूसरे 70 लोगों के साथ उन्होंने नक़्ल मकानी कर स्पोर्टस स्टेडीयम में पनाह ली। ये शुजा आया से तक़रीबन 3 किलोमीटर शुमाल मग़रिब में है। इस पर जंग के शुरू में भारी पैमाने पर बमबारी शुरू हो गई थी और ये ख़ाली हो गया था। बहुत सारे लोग जिन्होंने स्टेडीयम में रहना छोड़ दिया है, वो कहते हैं कि उन्हें अब यहां वापिस आने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं तो इसराईली बमबारी वहां भी शुरू हो जाती है। जैसा कि शुजा आया में हो चुका है जो ग़ज़ा शहर के पड़ोस में क़ायम बस्ती है। उमर बशर के मुताबिक़ हमारी आँख खुली तो घर के बाहर टैंक खड़े थे। हम अपने साथ कोई भी चीज़ ना ला सके। उन्होंने कहा कि शुजा आया के दूसरे 70 लोगों के साथ उन्होंने नक़्ल मकानी कर स्पोर्टस स्टेडीयम में पनाह ली। ये शुजा आया से तक़रीबन 3 किलोमीटर शुमाल मग़रिब में है। इस पर जंग के शुरू में भारी पैमाने पर बमबारी शुरू हो गई थी और ये ख़ाली हो गया था। बहुत सारे लोग जिन्होंने स्टेडीयम में रहना छोड़ दिया है, वो कहते हैं कि उन्हें अब यहां वापिस आने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
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इसराईल ये दावा करता है कि वो वसती ग़ज़ा तक भी इमदादी सामान की तरसील की इजाज़त दे रहा है लेकिन ये अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की ना अहली है कि वो लोगों तक इमदाद नहीं पहुंचा पा रही है। शुमाली ग़ज़ा के लोग कहते हैं कि उनसे हर चीज़ छिन गई है और वो अपने आपको हर वक़त ख़तरे में महसूस करते हैं। ऐसा ख़तरा जो हर वक़त बढ़ रहा है। हमारे लिए कोई जगह अब महफ़ूज़ नहीं है सिवाए अल्लाह की पनाह के। ये बात उमर अहमद ने कही। वो कहती हैं कि ख़ौफ़ का एहसास बच्चों में ही नहीं कि अब बड़ों में भी होने लगा है। उन्होंने कहा कि रास्ते में आते जाते हमेशा एक डर सताता रहता है कि कहीं बम न फट जाए।
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