जीकाअदा-1445 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
'जो शख्स ये चाहता है कि उसके रिज्क में इजाफा हो, और उसकी उम्र दराज हो, उसे चाहिए कि रिश्तेदारों के हुस्न सुलूक और एहसान करे।'
- मिश्कवात शरीफ
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✅ पेरिस, दुबई : आईएनएस, इंडिया
क़ाबिलीयत के बावजूद फ़्रांस में मुलाज़मतों के लिए तक़रीबन 50 इंटरव्यूज़ देने के बाद मुस्लिम बिज़नेस स्कूल के ग्रैजूएट आदम ने अपना बैग उठाया और दुबई में एक नई ज़िंदगी का आग़ाज़ करने चल निकले। शुमाली नज़ाद 32 साला कन्सलटेंट आदम ने न्यूज एजेंसी को बताया कि मैं यहां फ़्रांस की निसबत ज़्यादा बेहतर महसूस कर रहा हूँ। उन्होंने कहा कि हम सब बराबर हैं। यहां एक बॉस होगा जो इंडियन, अरब या फ़्रांसीसी शख़्स होगा।
एक नई तहक़ीक़ के मुताबिक़ मुस्लिम पस-ए-मंज़र से ताल्लुक़ रखने वाले आला तालीम-ए-याफ़ता फ़्रांसीसी शहरी जो अक्सर तारकीन-ए-वतन (अप्रवासी) के बच्चे होते हैं, फ़्रांस छोड़कर लंदन, न्यूयार्क, मोण्ट्रियाल या दुबई जैसे शहरों में एक नई शुरूआत की तलाश में हैं। गुजिश्ता महीने शाइआ होने वाली तहक़ीक़ के मुताबिक ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि कितने अफ़राद फ़्रांस छोड़ चुके हैं। तहक़ीक़ के मुताबिक़ उनके ऑनलाइन सर्वे का जवाब देने वाले एक हज़ार से ज़्यादा लोगों में से 71 फ़ीसद ने जवाब दिया कि वो नसल परस्ती और इमतियाज़ी सुलूक (भेदभाव) की वजह से मुल्क छोड़ चुके हैं। आदम ने मुकम्मल नाम इस्तिमाल ना करने की दरख़ास्त करते हुए न्यूज एजेंसी को बताया कि मुत्तहदा अरब अमीरात में मुलाज़मत ने उन्हें एक नया नुक़्ता-ए-नज़र दिया है। फ़्रांस में 'जब आप कुछ अक़ल्लीयतों से होते हैं तो आपको वहां दोगुना ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत होती है।
उन्होंने कहा कि वो अपनी फ़्रांसीसी तालीम के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हैं और अपने दोस्तों, ख़ानदान और मुल्क की सक़ाफ़्ती ज़िंदगी को याद करते हैं जहां वो पले बढ़े हैं। फ़्रांस तवील अर्से से अपनी साबिक़ा कालोनियों शुमाली और मग़रिबी अफ़्रीक़ा समेत दीगर मुल्कों के शहरीयों के लिए पसंदीदा मुल्क रहा है। लेकिन आज एक बेहतर मुस्तक़बिल की तलाश में फ़्रांस आने वाले मुस्लमान तारकीन-ए-वतन के बच्चों का कहना है कि वो मुआनिदाना (दुश्मनी) माहौल में रह रहे हैं, खासतौर पर 2015 मे पैरिस में होने वाले हमलों के बाद जिसमें 130 अफ़राद हलाक हुए थे।
एक 33 साला मराक़शी नज़ाद फ़्रांसीसी मुस्लमान ने न्यूज एजेंसी को बताया कि वो और उनकी हामिला बीवी जुनूब मशरिक़ी एशिया में 'ज़्यादा पुरअमन मुआशरे में मुंतक़िल होने का मन्सूबा बना रहे हैं।
अमरीका में पैदा होने वाले सऊदी की 42 बरस बाद रिश्तेदारों से मुलाक़ात
रियाद : अमरीका में पैदा होने वाला सऊदी शहरी ईद सऊद इलसम्मानी 42 बरस बाद अपने वालिद के रिश्तेदारों तक पहुंच गया। ईद सऊद इलसम्मानी को ये मालूम नहीं था कि वो मुस्लमान हैं और उनके ख़ूनी रिश्तेदारों का ताल्लुक़ सऊदी अरब से है।
सबक़ न्यूज़ से गुफ़्तगु करते हुए सऊदी शहरी इलसम्मानी ने बताया उनके चचा 42 बरस क़बल तालीम हासिल करने अमरीका गए थे जहां उन्होंने अमरीकी ख़ातून से शादी कर ली थी। चचा के दो बेटे हैं, जिनके नाम ईद और उबीद हैं। चचा ने अपनी अमरीकी अहलिया को सऊदी अरब आने का कहा मगर उन्होंने इनकार कर दिया। इलसम्मानी ने मज़ीद बताया कि अमरीकी ख़ातून के इनकार के बाद चचा काफ़ी परेशान रहने लगे और बिलआख़िर वो अहलिया और दोनों बच्चों को छोड़कर ख़ुद वतन लौट आए। वतन आने के कुछ अर्से बाद मालूम हुआ कि उनका एक बेटा जिसका नाम उबीद था, वो इंतिक़ाल कर गया है जिस पर चचा उदास रहने लगे और 12 बरस बाद उनका भी इंतिक़ाल हो गया। चचा के दूसरे बेटे ईद के बारे में कुछ मालूम नहीं था जबकि उनसे राबिता कर के मालूमात हासिल करना भी ज़रूरी था। अमरीका में सऊदी सिफ़ारत ख़ाने से राबिता किया गया जो 'ईद का सुराग़ लगाने में कामयाब हो गए। 'ईद से राबिता हुआ और उसे इस्लाम के बारे में बताया। उसे ये भी बताया कि तुम असल में सऊदी हो। तुम्हारा पूरा ख़ानदान मुस्लमान है। ईद को इस्लाम की तालीमात के बारे में काफ़ी कुछ बताया जिसके बाद वो भी मुस्लमान हो गया। इलसम्मानी ने कहा कि हमारी कोशिशें रंग लाई। बिलआख़िर वो दिन भी आ गया जब ईद सऊद इलसम्मानी हमारे दरमयान पहुंच गया। यहां आकर उसे हक़ीक़त-ए-हाल का इल्म हुआ कि उसका एक बड़ा ख़ानदान है जिसे उसने खो दिया था।