रोजादार का हर अमल इबादत
'' नबी-ए-करीम ﷺ का इरशाद है कि रोजेदार का सोना भी इबादत है, उसकी खामोशी तस्बीह, उसके अमल का सवाब दो गुना है, उसकी दुआ कुबूल की जाती है और उसके गुनाह बख्श दिए जाते हैं। ''
- कंजुल इमान
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✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मुदर्रिसा एक्ट से मुताल्लिक़ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले पर उबूरी रोक लगा दी है। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने मुदर्रिसा एक्ट की दफ़आत को समझने में ग़लती की है। हाईकोर्ट का ये मानना कि ये एक्ट सेकूलरइज़म के उसूल के ख़िलाफ़ है, जो ग़लत है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी बोर्ड आफ़ मुदर्रिसा एजूकेशन एक्ट 2004 को ग़ैर आईनी क़रार देने को सुप्रीमकोर्ट में चैलेंज किया है। उत्तरप्रदेश मुदर्रिसा एक्ट को मंसूख़ करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले को चैलेंज करने वाली दरख़ास्त पर सुप्रीमकोर्ट में समाअत के दौरान मुदर्रिसा बोर्ड की जानिब से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट को इस क़ानून को मंसूख़ करने का हक़ नहीं है। इससे 17 लाख तलबा मुतास्सिर हुए हैं। इसके साथ ही तक़रीबन 25000 मदारिस मुतास्सिर हुए हैं। ये तक़रीबन 125 साल पुराना है, मदारिस 1908 से रजिस्टर्ड हो रहे हैं। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने मुदर्रिसा एक्ट की दफ़आत को समझने में ग़लती की है। हाईकोर्ट का ये मानना कि ये एक्ट सेक्यूलारिज्म के उसूल के ख़िलाफ़ है, जो ग़लत है। सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के हुक्म को चैलेंज करने वाली अर्ज़ियों पर मर्कज़, यूपी हुकूमत और यूपी मुदर्रिसा तालीमी बोर्ड को नोटिस जारी किया। अदालत ने यूपी और मर्कज़ी हुकूमतों से कहा है कि वो 31 मई तक अपना जवाब दाख़िल करें। सुप्रीमकोर्ट ने इस मुआमले में यूपी हुकूमत से जवाब तलब किया है।
✒ यूपी मदरसा बोर्ड एजूकेशन एक्ट 2004 सेक्यूलारिजम के खिलाफ, बंद होंगे कई मदरसे
मुआमले की समाअत जुलाई के दूसरे हफ़्ते में होगी। तब तक हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक रहेगी। ये यूपी के 16000 मदारिस के 17 लाख तलबा के लिए बड़ी राहत की बात है। इस वक़्त मदारिस में 2004 के क़ानून के तहत तालीम जारी रहेगी। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट पहली नज़र में दरुस्त नहीं है। ये कहना दरुस्त नहीं है कि ये सेक्यूलारिज्म की ख़िलाफ़वरज़ी है। यूपी हुकूमत ने ख़ुद हाईकोर्ट में एक्ट का दिफ़ा किया था। हाईकोर्ट ने 2004 के एक्ट को कुलअदम क़रार दिया था। चीफ़ जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मुआमले की समाअत की। इस दौरान सिंघवी ने कहा कि अगर आप एक्ट को मंसूख़ करते हैं, तो आप मदारिस को ग़ैर मुनज़्ज़म बनाते और 1987 के उसूल को नहीं छेड़ा जाता। हाईकोर्ट का कहना है कि अगर आप मज़हबी मज़ामीन पढ़ाते हैं तो ये सेक्यूलारिज्म के ख़िलाफ़ है, जबकि सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि मज़हबी तालीम का मतलब ये नहीं है। सिंघवी ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि मैं हिंदूमज़हब या इस्लाम वग़ैरा की तालीम देता हूँ, उसका ये मतलब नहीं है कि मैं मज़हबी तालीम देता हूँ। इस मुआमले में अदालत को अरूना राय के फ़ैसले पर ग़ौर करना चाहिए। रियासत को सैकूलर रहना है, उसे तमाम मज़ाहिब के साथ एहतिराम और मुसावी सुलूक किया जाना चाहिए, रियासत अपने फ़राइज़ की अंजाम दही के दौरान किसी भी तरह से मज़ाहिब के दरमयान तफ़रीक़ नहीं कर सकती। चूँकि तालीम की फ़राहमी रियासत के बुनियादी फ़राइज़ में से एक है, इसलिए उसे मज़कूरा इलाक़े में अपने इख़्तयारात का इस्तिमाल करते हुए सैकूलर रहना पड़ेगा। वो किसी ख़ास मज़हब की तालीम नहीं दे सकता या मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब के लिए मुख़्तलिफ़ तालीमी निज़ाम नहीं बना सकती।
मदारिस की तरफ़ से पेश हुए ऐडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये इदारे मुख़्तलिफ़ मज़ामीन पढ़ाते हैं, कुछ सरकारी स्कूल हैं, कुछ प्राईवेट हैं, यहां का मतलब ये है कि ये मुकम्मल तौर पर सरकारी इमदाद याफताह स्कूल हैं, यहां कोई मज़हबी तालीम नहीं है। यहां क़ुरआन-ए-मजीद एक मज़मून के तौर पर पढ़ाया जाता है। हुज़ैफ़ा अहमदी ने कहा कि दीनी तालीम और मज़हबी मज़ामीन मुख़्तलिफ़ हैं, इसलिए हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाई जाये।
सुप्रीमकोर्ट ने यूपी हुकूमत से पूछा कि क्या हमें ये मान लेना चाहिए कि रियासत ने हाईकोर्ट में क़ानून का दिफ़ा है, इस पर यूपी हुकूमत की जानिब से ऐडीशनल सॉलीसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में दिफ़ा किया था, लेकिन हाईकोर्ट की जानिब से क़ानून को मंसूख़ करने के बाद, हमने फ़ैसला क़बूल कर लिया है। जब रियासत ने इस फ़ैसले को तस्लीम कर लिया है, तो रियासत पर मज़ीद क़ानून के अख़राजात का बोझ नहीं डाला जा सकता।