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शहबाज़ को उठाना पड़ेगा मुश्किल फ़ैसलों का बोझ, नवाज शरीफ के साथ रहा है अजीब इत्तेफाक

 शअबान उल मोअज्जम -1445 हिजरी

हदीसे नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम
तकदीर का लिखा टलता नहीं

'' हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल कर और अल्लाह ताअला से मदद चाह, और हिम्मत मत हार और अगर तुझ पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कह कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कह कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसके मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। '' 
- मुस्लिम शरीफ

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शहबाज़ शरीफ़ दूसरी बार फिर वज़ीर-ए-आज़म मुंतख़ब
शहबाज़ को उठाना पड़ेगा मुश्किल फ़ैसलों का बोझ, नवाज शरीफ के साथ रहा है अजीब इत्तेफाक

✅ इस्लामाबाद : आईएनएस, इंडिया

शहबाज़ शरीफ़ पहली बार 1988 में रुक्न पंजाब असेंबली मुंतख़ब हुए थे जबकि 1990 में वो रुकन-ए-क़ौमी असेंबली मुंतख़ब हुए। मुबस्सिरीन के मुताबिक़ हुकूमत के लिए सबसे पहला चैलेंज काबीना बनने के बाद आईएमएफ़ प्रोग्राम के लिए मुज़ाकरात शुरू करने का है। मियां नवाज़ शरीफ़ जिन ओहदों पर रहे हैं, उनमें से बेशतर ओहदों पर उनके छोटे भाई शहबाज़ शरीफ़ ना सिर्फ रह चुके हैं, मगर उनके रिकार्ड भी तोड़ चुके हैं। 
    मुस्लिम लीग एन के शहबाज़ शरीफ़ वोट लेकर दूसरी मर्तबा वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान मुंतख़ब हो गए हैं। शहबाज़ शरीफ़ 11 अप्रैल 2022 को पहली बार वज़ीर-ए-आज़म मुंतख़ब हुए थे। शहबाज़ ने 15वीं क़ौमी असेंबली की मुद्दत मुकम्मल होने से चंद रोज़ कब्ल असेंबली तहलील कर दी थी। हालांकि मुल्कभर में आम इंतिख़ाबात इससे भी ज़्यादा ताख़ीर (विलंब) का शिकार हो गए मगर शहबाज़ शरीफ़ को 23वें मुंतख़ब वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी छोड़ने के बाद 24वें मुंतख़ब वज़ीर-ए-आज़म के तौर पर दुबारा वज़ारत-ए-उजमा की कुर्सी मिल रही है। माज़ी क़रीब में पहली बार वज़ीर-ए-आज़म के इंतिख़ाब से कब्ल ही चारों सूबों के वुज़रा-ए-आला (चीप मिनिस्टर) का इंतिख़ाब हो चुका है। 

रह चुके हैं लाहौर चेंबर आफ कामर्स के सदर भी 

परवेज मुसर्रफ के साथ काट चुके हैं जिला वतनी की सजा

    72 बरस के नौ मुंतख़ब वज़ीर-ए-आज़म शहबाज़ शरीफ़ 23 सितंबर 1951 को लाहौर में पैदा हुए। पाकिस्तान के एक बा-असर ताजिर ख़ानदान से ताल्लुक़ रखने वाले शहबाज़ शरीफ़ लाहौर चैंबर आफ़ कॉमर्स के 1985 मैं सदर भी रह चुके हैं। शहबाज़ शरीफ़ पहली बार 1988 मैं रुकन पंजाब असैंबली मुंतख़ब हुए थे जबकि 1990 मैं वो रुकन-ए-क़ौमी असैंबली मुंतख़ब हुए। 1993 मैं पंजाब असैंबली में अपोज़ीशन लीडर मुक़र्रर किए गए। शहबाज़ शरीफ़ पहली मर्तबा 20 फरवरी 1997 को वज़ीर-ए-आला पंजाब मुंतख़ब हुए। परवेज़ मुशर्रफ़ के मिल्ट्री रोल के बाद एक मुआहिदे के तहत सऊदी अरब में फ़ैमिली के साथ तक़रीबन आठ बरस जिला-वतन रहे। शहबाज़ शरीफ़ दूसरी बार आठ जून 2008 को वज़ीर-ए-आला पंजाब मुंतख़ब हुए। वो तीसरी बार सात जून 2013 को पंजाब के वज़ीर-ए-आला मुंतख़ब हुए। सन 2018 के इंतिख़ाबात में शहबाज़ शरीफ़ रुकन क़ौमी असैंबली मुंतख़ब हुए। शहबाज़ शरीफ़ ने साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म इमरान ख़ान के मुक़ाबले में वज़ीर-ए-आज़म का इंतिख़ाब भी लड़ा। ताहम इमरान ख़ान 176 वोट लेकर वज़ीर-ए-आज़म मुंतख़ब हुए और शहबाज़ शरीफ़ 96 वोट ले पाए थे। 2018 के इंतिख़ाब के नतीजे में क़ायम होने वाली क़ौमी असैंबली में शहबाज़ शरीफ़ अपोजीशन लीडर मुक़र्रर किए गए जबकि इसी असेंबली में ही वो वज़ीर-ए-आज़म भी मुंतख़ब हुए। 

अजीब इत्तिफ़ाक़

    अजीब इत्तिफ़ाक़ है कि मियां नवाज़ शरीफ़ जिन ओहदों पर रहे हैं, उनमें से बेशतर ओहदों पर उनके छोटे भाई शहबाज़ शरीफ़ ना सिर्फ रह चुके हैं बल्कि उनके रिकार्ड भी तोड़ चुके हैं। मियां नवाज़ शरीफ़ पहली बार अप्रैल में वज़ीर-ए-आला पंजाब मुंतख़ब हुए जबकि शहबाज़ शरीफ़ भी पहली बार अप्रैल में वज़ीर-ए-आला मुंतख़ब हुए। नवाज़ शरीफ़ नौ अप्रैल 1985 से छः अगस्त 1990 तक यानी पाँच बरस तीन माह और 28 दिन वज़ीर-ए-आला रहे मगर शहबाज़ शरीफ़ ने 12 बरस तीन माह और 30 दिन वज़ीर-ए-आला के ओहदे पर रहने का रिकार्ड बनाया है। मियां नवाज़ शरीफ़ क़ौमी असैंबली में तीन बरस 17 दिन अपोजीशन लीडर रहे जबकि शहबाज़ शरीफ़ तीन बरस सात माह 22 दिन क़ौमी असैंबली में अपोजीशन लीडर रहे हैं। नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के सबसे ज़्यादा तीन बार वज़ीर-ए-आज़म मुंतख़ब होने का एज़ाज़ रखते हैं और शहबाज़ शरीफ़ दूसरी मर्तबा वज़ीर-ए-आज़म मुंतख़ब हुए हैं मगर नवाज़ शरीफ़ का ये रिकार्ड अभी भी क़ायम है। मुस्लिम लीग एन के सदर के ओहदे पर ज़्यादा वक़्त रहने का रिकार्ड अभी भी नवाज़ शरीफ़ के पास ही है। सियासत पर नज़र रखने वाले माहिरीन का कहना है कि नौ मुंतख़ब वज़ीर-ए-आज़म शहबाज़ शरीफ़ की स्टैबलिशमैंट के हवाले से पालिसी एक जैसी नहीं है। मुबस्सिरीन कहते हैं कि शहबाज़ शरीफ़ स्टैबलिशमैंट के साथ बना के चलने की सोच रखते हैं जबकि उनके बड़े भाई स्टैबलिशमैंट की उनके हुकूमत के दौरान ज़्यादा मुदाख़िलत को पसंद नहीं करते। यही वजह है के उनके इक़तिदार में आने के बाद उनकी हर हुकूमत हादिसात का शिकार रही है। 
    शहबाज़ शरीफ़ की नई हुकूमत को दरपेश चैलेंजिज़ पर तजज़िया कार शहबाज़ राना का कहना है कि हुकूमत के लिए सबसे बड़ा मसला और चैलेंज महंगाई का है। महंगाई को कंट्रोल करना हुकूमत के लिए बड़ा मसला बन कर खड़ा है। ऐसे में हुकूमत को आईएमएफ़ से प्रोग्राम लेना होगा जिससे मज़ीद महंगाई में इज़ाफ़ा होगा।

 


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