शअबान उल मोअज्जम - 1445 हिजरी
अकवाल-ए-जरीं
'' हजरत अब्दुलाह बिन उमर रदिअल्लाहो ताअला अन्हुमा से रिवायत है कि मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सुना, आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फरमाते हैं कि जब तुम्हारा कोई आदमी इंतेकाल कर जाए तो उसे ज्यादा देर तक घर पर मत रखो और उसे कब्र तक पहुंचाने और दफनाने में जल्दी करो ''
- बैहकी शुअबुल ईमान
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✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
जमात-ए-इस्लामी हिंद की जानिब से मुनाक़िदा प्रेस कांन्फ्रेंस में जमात के नायब अमीर प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने किसानों के एहतिजाज, मुतालिबात (मांग) और हुकूमत के रवैय्ये पर बात की। उन्होंने मौलाना आज़ाद एजूकेशन फाउंडेशन को बंद किए जाने पर नाराज़गी का इज़हार किया और ग़ज़ा में फ़ौरी जंगबंदी और इसराईली हुकूमत के ख़िलाफ़ जंगी जराइम का मुक़द्दमा चलाए जाने का मुतालिबा किया।कान्फ्रेंस में नायब अमीर जमात मुल्क मोतसिम ख़ां ने मुस्लिम पर्सनल ला में आसाम और उत्तराखंड की हुकूमतों की मुदाख़िलत और मुस्लमानों को परेशान करने के बहाने तलाश किए जाने पर रोशनी डाली। जमात की नेशनल सेक्रेटरी मुहतरमा रहमत अलनिसा -ने हिरासत में इस्मतदरी की हैरानकुन तादाद पर तशवीश का इज़हार करते हुए कहा कि नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो ने जो आदादव शुमार (आंकड़ें) पेश किए है, इससे दिल को शदीद सदमा पहुंचा है। इस मौक़ा पर जमात के नेशनल अस्सिटैंट सेक्रेटरी इनाम अल रहमान ने दिल्ली और मुलक के दीगर हिस्सों में मसाजिद-ओ-इबादत-गाहों को निशाना बनाए जाने की तफ़सीलात पेश की। कान्फ्रेंस में जे़ल के मौज़ूआत पर रोशनी डाली गई। जमात-ए-इस्लामी हिंद, मुस्लिम शादी और तलाक़ एक्ट 1935 को आसाम सरकार की तरफ़ से मंसूख़ करने के फ़ैसले पर अपनी तशवीश का इज़हार किया। फ़िलहाल रियासत में मुस्लिम शादीयों और तलाक़ों के लिए मज़कूरा एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन का अमल हुकूमत के मजाज़ क़ाज़ीयों (मुस्लिम उल्मा) के ज़रीया अंजाम पाता है, लेकिन अब आसाम के मुस्लमानों को 1954 के 'स्पैशल मैरिज एक्ट' के तहत अपनी शादियां दर्ज करानी होंगी। ये फ़ैसला आईन की रूह के ख़िलाफ़ है।
मस्जिद कैंपस में
होगा 5 सौ बिस्तरों वाला कैंसर अस्पताल, लाईब्रेरी, स्कूल, कालेज और म्यूजियम
गरचे आसामी हुकूमत कहती है कि इस इक़दाम का मक़सद चाइल्ड मैरेज (बच्चों की शादीयों) को रोकना है, लेकिन ऐसा महसूस होता है कि इसका असल मक़सद वोट बैंक की सियासत और आम इंतिख़ाबात से क़बल मुस्लिम मुख़ालिफ़ सरगर्मियां दिखा कर लोगों को पोलोरायज करना है। माहिरीन का कहना है कि हुकूमत के इस इक़दाम से मुस्लिम शादीयों के ज़ाबते और डाक्यूमेंटेशन में दुश्वारियाँ हो सकती हैं और मुस्लमान शादियों को रजिस्टर कराने में झिजक महसूस करेंगे। जबकि शादियां रजिस्टर्ड ना होने की सूरत में औरतों को अलाहिदगी या तलाक़ की सूरत में अज़दवाजी हुक़ूक़ और समाजी सिक्योरिटी के लिए मुश्किलात का सामना करना पड़ सकता है।
जमात-ए-इस्लामी हिंद, उत्तराखंड हुकूमत की जानिब से यकसाँ सिविल कोड (यूसीसी) के नफ़ाज़ की मुख़ालिफ़त करते हुए कहा कि इस फ़ैसले की रो से हर मज़हब के अलग अलग पर्सनल ला की जगह 'यूसीसी पर्सनल ला का एक ऐसा सेट पेश करेगा जो मज़हब की परवाह किए बग़ैर हर शहरी पर लागू होगा। तमाम मज़ाहिब की लड़कीयों की शादी के लिए यकसाँ उम्र, मर्दों और औरतों को विरासत के मुसावी हुक़ूक़ समेत लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन लाज़िमी होगा। जमात का ख़्याल है कि गरचे 'यूसीसी का तज़किरा आईन आर्टीकल 44 मैं रियास्ती पालिसी के उसूलों के तौर पर किया गया है, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहीए कि आईन बनाने वालों ने उसे हुकूमत की सवाबदीद पर छोड़ दिया था। जमात ने कहा कि हुकूमत को ये हक़ हासिल नहीं है कि वो किसी भी मज़हबी बिरादरी पर बग़ैर किसी मुशावरत के यकतरफ़ा फ़ैसला थोप दे, बिलख़सूस जब इसमें मज़हबी उमूर शामिल हों। जमात ने कहा कि ऐसा महसूस होता है कि आसाम और उत्तराखंड में होने वाले ये इक़दामात मुल्क में बढ़ते इस रुजहान का हिस्सा हैं, जिसमें नफ़रतअंगेज़ तक़ारीर और मुस्लिम बिरादरी को नुक़्सान-ओ-अज़ीयत पहुंचाने वाले फ़ैसलों को बाअज़ वुज़रा आला और सियासत दां अपने सयासी उरूज का आला समझते हैं। ये रुजहान हमारी जमहूरीयत के लिए नुक़्सानदेह है। जमात ने कहा कि मुल्क के तमाम इंसाफ़ पसंद शहरीयों को इसकी मुख़ालिफ़त करनी चाहीए।
जमात-ए-इस्लामी हिंद, उत्तराखंड हुकूमत की जानिब से यकसाँ सिविल कोड (यूसीसी) के नफ़ाज़ की मुख़ालिफ़त करते हुए कहा कि इस फ़ैसले की रो से हर मज़हब के अलग अलग पर्सनल ला की जगह 'यूसीसी पर्सनल ला का एक ऐसा सेट पेश करेगा जो मज़हब की परवाह किए बग़ैर हर शहरी पर लागू होगा। तमाम मज़ाहिब की लड़कीयों की शादी के लिए यकसाँ उम्र, मर्दों और औरतों को विरासत के मुसावी हुक़ूक़ समेत लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन लाज़िमी होगा। जमात का ख़्याल है कि गरचे 'यूसीसी का तज़किरा आईन आर्टीकल 44 मैं रियास्ती पालिसी के उसूलों के तौर पर किया गया है, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहीए कि आईन बनाने वालों ने उसे हुकूमत की सवाबदीद पर छोड़ दिया था। जमात ने कहा कि हुकूमत को ये हक़ हासिल नहीं है कि वो किसी भी मज़हबी बिरादरी पर बग़ैर किसी मुशावरत के यकतरफ़ा फ़ैसला थोप दे, बिलख़सूस जब इसमें मज़हबी उमूर शामिल हों। जमात ने कहा कि ऐसा महसूस होता है कि आसाम और उत्तराखंड में होने वाले ये इक़दामात मुल्क में बढ़ते इस रुजहान का हिस्सा हैं, जिसमें नफ़रतअंगेज़ तक़ारीर और मुस्लिम बिरादरी को नुक़्सान-ओ-अज़ीयत पहुंचाने वाले फ़ैसलों को बाअज़ वुज़रा आला और सियासत दां अपने सयासी उरूज का आला समझते हैं। ये रुजहान हमारी जमहूरीयत के लिए नुक़्सानदेह है। जमात ने कहा कि मुल्क के तमाम इंसाफ़ पसंद शहरीयों को इसकी मुख़ालिफ़त करनी चाहीए।