✒ लंदन : आईएनएस, इंडियाबोसनिया में यहूदी और मुसलमानों ने एक मुशतर्का (साझा) एनीशिएटिव शुरू कर दिया है। ये उनकी अमन कोशिशों के हवाले से बोसनिया के एक शहर उस वक़्त सामने आया, जब उन्होंने मिलकर यहूदीयों के होलो कास्ट की याद मनाई और ग़ज़ा में अमन का मुतालिबा किया। इस मुशतर्का अमल को यहूदी-मुस्लिम अमन एनेशिएटिव का नाम दिया गया है। प्रोग्राम में वर्ल्ड फेडरेशन आफ़ बेल्सन एसोसीएशन और अमेरेकिन लायर्ज के सदर और मुस्लमानों के मज़हबी रहनुमा हुसैन कावाज़वीक ने ब-तौर-ए-ख़ास शिरकत की। गौरतलब है कि नसल कुशी की याद में क़ायम मर्कज़ की एक ग़ैरमामूली अलामती हैसियत है। जैसा कि बोसीनिया के क़स्बे में सर्बिया ने 8000 मुस्लमानों और ब-तौर-ए-ख़ास 1995 में मुस्लिम नौजवानों को नसल कुशी का निशाना बनाया था। बाद में बैन-उल-अक़वामी अदालत इन्साफ़ ने उस वाकिये को नसल कुशी क़रार दिया था।
ग़ज़ा में इस वक़्त तक 26 हज़ार से ज़ाइद फ़लस्तीनी इसराईली फ़ौज की बमबारी से हलाक हो चुके हैं। उनमें ज़्यादा तादाद बच्चों और औरतों की है, जबकि इस सिलसिले में जुनूबी अफ़्रीक़ा की दरख़ास्त पर बैन-उल-अक़वामी अदालत इन्साफ़ का इसराईल के ख़िलाफ़ एक फ़ैसला भी सामने आ गया है। वर्ल्ड जेविश कांग्रेस के रौज़न सैफट ने इस ग़ैरमामूली तक़रीब में कहा कि हम यहां इसलिए इकट्ठे हुए हैं कि हमारे ग़म और आँसू दुआएं बन जाएं, ये याद आने वालों के लिए दुआएं हैं, लेकिन हमारी ये दुआएं उम्मीद के लिए हैं। उन्होंने मज़ीद कहा कि होलो कास्ट और सरेबरीनीका में मुस्लमानों की नसल कुशी के मुतास्सिरीन की ये याद में तक़रीब हमारे मुशतर्का अज्म करने का वक़्त और मुक़ाम है। हम मज़ीद हौलनाकियों को दोहराने से रोकने के लिए यहां इकठठा हुए हैं।
मुस्लमानों के बोसीनिया में मुफ़्ती-ए-आज़म ने कहा कि हम छः मिलियन मासूम यहूदीयों को याद करते हैं, जिन्हें उस वक़्त के फ़ाशिस्ट नाज़ियों ने हलाक कर दिया था, मगर आज फिर हम उसी जगह पर जमा हैं जहां इन्सानियत अपनी ज़िम्मेदारियाँ अदा करने में दुबारा नाकाम हो गई है और आठ हज़ार मुस्लमानों को फ़ौज ने शहीद कर दिया है। हुसैन कावाज़विच ने कहा कि नाज़ियों ने साठ लाख यहूदीयों को हलाक किया था। अपनी बात जारी रखे हुए मुफ़्ती-ए-आज़म ने कहा कि, मुस्लमान और यहूदी एक जिस्म हैं, हमारे ताल्लुक़ात बहुत मज़बूत हैं। ये ताल्लुक़ात मुश्किल और ख़ुशहाली, दोनों वक़्तों में मज़बूत रहे हैं। हमारे दोनों क़ौमों के लोगों ने ये मसाइब बर्दाश्त किए हैं और उन्हें ख़त्म करने की कोशिश भी की जाती रही है।