✒ काबुल : आईएनएस, इंडिया
तालिबान हुकूमत के मुताबिक मुल्क के मजहबी स्कालर्ज इस बात पर मुत्तफिक (एक राय) हैं कि खवातीन को घर से बाहर निकलते वक़्त अपना चेहरा ढाँप कर रखना चाहिए। तालिबान खवातीन को मुलाजमतों, तालीम के हुसूल और अवामी मुकामात में जाने से इसलिए रोकता है क्योंकि खवातीन मुनासिब तरीके से हिजाब नहीं करती हैं।
तालिबान की वजारत-ए-उमर बिल मारुफ के मर्कजी तर्जुमान मौलवी मुहम्मद सादिक आकिफ ने एक इंटरव्यू में कहा कि खवातीन के खुलेआम सामने आने से फितना अंगेजी या गुनाह का शिकार होने का इमकान होता है। उन्होंने कहा कि कुछ इलाकों में औरतों को बे-हिजाब देखना बहुत ही बुरा है, हमारे उल्मा भी इस पर मुत्तफिक हैं कि खवातीन को खुद को छुपा कर रखना चाहिए। उनके बाकौल औरत की अपनी कदर होती है जो मर्द के उनकी तरफ देखने से कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि अल्लाह ताअला खवातीन को हिजाब में इज्जत देता है और उसी में उनकी कद्र है।
गौरतलब है कि खवातीन पर तालिबान की पाबंदियां आलमी गम-ओ-गुस्से का बाइस बनी है, जिसमें कुछ मुस्लिम अक्सरीयती ममालिक भी शामिल हैं। अक़्वाम-ए-मुत्तहदा के खुसूसी एलची का भी यही कहना है कि बैन-उल-अकवामी (अंतरराष्टÑीय) फौजदारी अदालत को तालिबान रहनुमाओं के खिलाफ अफ़्गान लड़कियों और खवातीन को तालीम और मुलाजमत देने से इनकार करने पर इन्सानियत के खिलाफ जराइम का मुकद्दमा चलाना चाहिए।
तालिबान की वजारत के तर्जुमान ने खवातीन पर आइद पाबंदियों के बारे में सवालात का जवाब नहीं दिया, जिनमें ये सवाल भी शामिल था कि क्या हिजाब के आलमगीर जवाबत (नियम) से वाबस्तगी की सूरत में उनमें से किसी पाबंदी को हटाया जा है। सादिक आकिफ ने कहा कि वजारत को अपने काम में किसी रुकावट का सामना नहीं है और लोगों ने उसके इकदामात की हिमायत की है। आकिफ ने कहा कि वजारत ये जांचने के लिए कि क्या लोग कवाइद-ओ-जवाबत पर अमल कर रहे हैं, ओहदादारों और मुखबिरों के नेटवर्क का सहारा लेती है। उन्होंने कहा कि हम बाजारों, अवामी मुकामात, यूनीवर्सिटीयों, स्कूलों, मदारिस और मसाजिदों में नजर रखते हैं। हम इन तमाम जगहों पर जाते हैं और लोगों का जायजा लेते हैं और उनसे बातचीत भी करते हैं। उन्हें तालीम भी देते हैं। हम उनकी निगरानी करते हैं और लोग भी तआवुन करते हैं और हमें इत्तिलाआत फराहम करते हैं।तालिबान हुकूमत के मुताबिक मुल्क के मजहबी स्कालर्ज इस बात पर मुत्तफिक (एक राय) हैं कि खवातीन को घर से बाहर निकलते वक़्त अपना चेहरा ढाँप कर रखना चाहिए। तालिबान खवातीन को मुलाजमतों, तालीम के हुसूल और अवामी मुकामात में जाने से इसलिए रोकता है क्योंकि खवातीन मुनासिब तरीके से हिजाब नहीं करती हैं। तालिबान की वजारत-ए-उमर बिल मारुफ के मर्कजी तर्जुमान मौलवी मुहम्मद सादिक आकिफ ने एक इंटरव्यू में कहा कि खवातीन के खुलेआम सामने आने से फितना अंगेजी या गुनाह का शिकार होने का इमकान होता है। उन्होंने कहा कि कुछ इलाकों में औरतों को बे-हिजाब देखना बहुत ही बुरा है, हमारे उल्मा भी इस पर मुत्तफिक हैं कि खवातीन को खुद को छुपा कर रखना चाहिए। उनके बाकौल औरत की अपनी कदर होती है जो मर्द के उनकी तरफ देखने से कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि अल्लाह ताअला खवातीन को हिजाब में इज्जत देता है और उसी में उनकी कद्र है।
गौरतलब है कि खवातीन पर तालिबान की पाबंदियां आलमी गम-ओ-गुस्से का बाइस बनी है, जिसमें कुछ मुस्लिम अक्सरीयती ममालिक भी शामिल हैं। अक़्वाम-ए-मुत्तहदा के खुसूसी एलची का भी यही कहना है कि बैन-उल-अकवामी (अंतरराष्टÑीय) फौजदारी अदालत को तालिबान रहनुमाओं के खिलाफ अफ़्गान लड़कियों और खवातीन को तालीम और मुलाजमत देने से इनकार करने पर इन्सानियत के खिलाफ जराइम का मुकद्दमा चलाना चाहिए।
तालिबान की वजारत के तर्जुमान ने खवातीन पर आइद पाबंदियों के बारे में सवालात का जवाब नहीं दिया, जिनमें ये सवाल भी शामिल था कि क्या हिजाब के आलमगीर जवाबत (नियम) से वाबस्तगी की सूरत में उनमें से किसी पाबंदी को हटाया जा है। सादिक आकिफ ने कहा कि वजारत को अपने काम में किसी रुकावट का सामना नहीं है और लोगों ने उसके इकदामात की हिमायत की है। आकिफ ने कहा कि वजारत ये जांचने के लिए कि क्या लोग कवाइद-ओ-जवाबत पर अमल कर रहे हैं, ओहदादारों और मुखबिरों के नेटवर्क का सहारा लेती है। उन्होंने कहा कि हम बाजारों, अवामी मुकामात, यूनीवर्सिटीयों, स्कूलों, मदारिस और मसाजिदों में नजर रखते हैं। हम इन तमाम जगहों पर जाते हैं और लोगों का जायजा लेते हैं और उनसे बातचीत भी करते हैं। उन्हें तालीम भी देते हैं। हम उनकी निगरानी करते हैं और लोग भी तआवुन करते हैं और हमें इत्तिलाआत फराहम करते हैं।