Top News

मराकश में भूकंप आने से पहले आसमान पर चमकने वाली वो नीली रोशनी क्या थी

earthquake in Marrakesh

तुरकिया में आए जलजले से पहले भी देखी गई थी वो रोशनी

रबात, लंदन : आईएनएस, इंडिया 
गुजिश्ता सनीचर की सुबह मराकश में आने वाले जलजले के नतीजे में अरब दुनिया अब तक सदमे में है, जिसमें 2,012 से ज्यादा अफराद लुकमा-ए-अजल बन चुके हैं। एक तरफ मराकश के जलजले से मुतास्सिरा इलाकों में हलाकतों (मरने वालों) और मुतास्सिरीन (प्रभावितों) की ताजा-तरीन मालूमात सामने आ रही हैं तो दूसरी तरफ हुक्काम ने सीसीटीवी कैमरों में रिकार्ड होने वाले मंजर भी जारी करना शुरू कर दिए हैं। इन मनाजिर में जलजले से पहले और उसके बाद के खौफनाक मंजर को देखा जा सकता है। 
    ताजा-तरीन फूटेज में जलजले से पहले आसमान पर चमकने वाली नीली रोशनी लोगों में हैरत का सबब बनी हुई है। ये मंजर किसी एक कैमरे में रिकार्ड नहीं हुआ बल्कि कई मुकामात पर सीसीटी फूटेज में उसे देखा जा सकता है। ये चमक जलजले से ऐन पहले उफुक पर नमूदार हुई। उस रोशनी के बारे में अब तक किसी ने कोई ठोस मालूमात नहीं दी है। हैरत-अंगेज बात ये है कि ये रोशनी अजीब नहीं है, क्योंकि उसकी जाहिरी शक्ल तुरकिया में गुजिशता फरवरी में आने वाले तबाहकुन जलजले से पहले दूसरे निगरानी करने वाले कैमरों ने रिकार्ड की थी। 
    तुरकिया में आने वाले जलजले से 45,000 से ज्यादा लोग जांबाहक हो गए थे। ये इत्तिलाआत थीं कि जलजले की रोशनी कुछ भी नहीं बल्कि एक रोशन माहौलियाती रुजहान है जो आसमान में टेक्टोनिक दबाव, जलजले की सरगर्मी, या आतिश-फिशां (ज्वालामुखी) फटने के इलाकों में जाहिर होता है। ये पता चलता है कि जलजले आने के पहले इस तरह की रोशनी हजारों सालों से दिखाई दे रही है। साईंसदां अब तक इस बात का कोई अंदाजा नहीं लगा सके कि ये किस तरह की रोशनी है। साईंस फिक्शन में भी इस तरह के मंजर को अजीब समझा जाता है। जदीद (आधुनिक) दौर में टेक्नोलोजी की बदौलत ये रोशनीयां जलजलों से पहले देखी जा चुकी हैं और उनके साथ उनकी वाबस्तगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। ये रोशनी आम तौर पर तैरते हुए आसमानी अजसाम की शक्ल में होती हैं , लेकिन कुछ ने ये भी बताया है कि ये बादल जैसी लकीरें हैं, जिनमें से अक्सर का रंग सब्ज होता है। कुछ ने यहां तक कहा कि ये तकरीबन बिजली की तरह की रोशनी थी। बुनियादी बात ये है कि ये एक रोशन माहौल का रुजहान है जो या तो जलजला की सरगर्मी या आसमानी वाकिये का बाइस बनता है। इससे ये भी पता चलता है कि जलजले की लाइट्स हर वक्त जाहिर नहीं होती हैं, लेकिन ये सिर्फ जलजले के वक़्त और मर्कज के करीब ही नजर आती हैं, जो टेक्टोनिक दबाव की सबसे ज्यादा मिकदार वाला इलाका होता है। 
    नासा के रिसर्च सेंटर के मुताबिक लाइट्स के पैटर्न के तफसीली तजजिये (विस्तृत विश्लेषण) के बाद की गई तहकीक (शोध) के मुताबिक, ये रोशनीयां उस वक़्त बनती हैं, जब उनके नीचे मखसूस किस्म की चट्टान (जैसे बीसालट वगैरह) चार्जेज होते हैं। दूसरे लफ़्जों में तनाव लाखों मनफी चार्जशुदा आॅक्सीजन के टूट-फूट का बाइस बनता है, जो उन्हें झुरमुट की शक्ल देते हैं और उन्हें चार्जशुदा, रोशनी खारिज करने वाली गैस में तबदील कर देते हैं। ये ऐसा ही है, जैसे किसी ने जमीन के करीब बैट्री आन की हो। अगरचे ये सबसे आम वजाहत है। एक और तहकीक से ये बात सामने आई है कि जलजले के मराकज (केंद्र) के करीब शदीद टेक्टोनिक दबाव की वजह से इस जगह को पीजो इलैक्ट्रिक असर कहा जाता है। इस सूरत में क्वार्ट्ज बेअरिंग चट्टानें कम्पुरीस होने पर मजबूत बर्की (बिजली) मैदान पैदा करने के लिए मशहूर हैं। हालांकि इस नजरिया को बड़े पैमाने पर कबूल नहीं किया गया है।

    गुजिश्ता सनीचर की सुबह मराकश में आने वाले जलजले के नतीजे में अरब दुनिया अब तक सदमे में है, जिसमें 2,012 से ज्यादा अफराद लुकमा-ए-अजल बन चुके हैं। एक तरफ मराकश के जलजले से मुतास्सिरा इलाकों में हलाकतों (मरने वालों) और मुतास्सिरीन (प्रभावितों) की ताजा-तरीन मालूमात सामने आ रही हैं तो दूसरी तरफ हुक्काम ने सीसीटीवी कैमरों में रिकार्ड होने वाले मंजर भी जारी करना शुरू कर दिए हैं। इन मनाजिर में जलजले से पहले और उसके बाद के खौफनाक मंजर को देखा जा सकता है। 
    ताजा-तरीन फूटेज में जलजले से पहले आसमान पर चमकने वाली नीली रोशनी लोगों में हैरत का सबब बनी हुई है। ये मंजर किसी एक कैमरे में रिकार्ड नहीं हुआ बल्कि कई मुकामात पर सीसीटी फूटेज में उसे देखा जा सकता है। ये चमक जलजले से ऐन पहले उफुक पर नमूदार हुई। उस रोशनी के बारे में अब तक किसी ने कोई ठोस मालूमात नहीं दी है। हैरत-अंगेज बात ये है कि ये रोशनी अजीब नहीं है, क्योंकि उसकी जाहिरी शक्ल तुरकिया में गुजिशता फरवरी में आने वाले तबाहकुन जलजले से पहले दूसरे निगरानी करने वाले कैमरों ने रिकार्ड की थी। 
    तुरकिया में आने वाले जलजले से 45,000 से ज्यादा लोग जांबाहक हो गए थे। ये इत्तिलाआत थीं कि जलजले की रोशनी कुछ भी नहीं बल्कि एक रोशन माहौलियाती रुजहान है जो आसमान में टेक्टोनिक दबाव, जलजले की सरगर्मी, या आतिश-फिशां (ज्वालामुखी) फटने के इलाकों में जाहिर होता है। ये पता चलता है कि जलजले आने के पहले इस तरह की रोशनी हजारों सालों से दिखाई दे रही है। साईंसदां अब तक इस बात का कोई अंदाजा नहीं लगा सके कि ये किस तरह की रोशनी है। साईंस फिक्शन में भी इस तरह के मंजर को अजीब समझा जाता है। जदीद (आधुनिक) दौर में टेक्नोलोजी की बदौलत ये रोशनीयां जलजलों से पहले देखी जा चुकी हैं और उनके साथ उनकी वाबस्तगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। ये रोशनी आम तौर पर तैरते हुए आसमानी अजसाम की शक्ल में होती हैं , लेकिन कुछ ने ये भी बताया है कि ये बादल जैसी लकीरें हैं, जिनमें से अक्सर का रंग सब्ज होता है। कुछ ने यहां तक कहा कि ये तकरीबन बिजली की तरह की रोशनी थी। बुनियादी बात ये है कि ये एक रोशन माहौल का रुजहान है जो या तो जलजला की सरगर्मी या आसमानी वाकिये का बाइस बनता है। इससे ये भी पता चलता है कि जलजले की लाइट्स हर वक्त जाहिर नहीं होती हैं, लेकिन ये सिर्फ जलजले के वक़्त और मर्कज के करीब ही नजर आती हैं, जो टेक्टोनिक दबाव की सबसे ज्यादा मिकदार वाला इलाका होता है। 
    नासा के रिसर्च सेंटर के मुताबिक लाइट्स के पैटर्न के तफसीली तजजिये (विस्तृत विश्लेषण) के बाद की गई तहकीक (शोध) के मुताबिक, ये रोशनीयां उस वक़्त बनती हैं, जब उनके नीचे मखसूस किस्म की चट्टान (जैसे बीसालट वगैरह) चार्जेज होते हैं। दूसरे लफ़्जों में तनाव लाखों मनफी चार्जशुदा आॅक्सीजन के टूट-फूट का बाइस बनता है, जो उन्हें झुरमुट की शक्ल देते हैं और उन्हें चार्जशुदा, रोशनी खारिज करने वाली गैस में तबदील कर देते हैं। ये ऐसा ही है, जैसे किसी ने जमीन के करीब बैट्री आन की हो। अगरचे ये सबसे आम वजाहत है। एक और तहकीक से ये बात सामने आई है कि जलजले के मराकज (केंद्र) के करीब शदीद टेक्टोनिक दबाव की वजह से इस जगह को पीजो इलैक्ट्रिक असर कहा जाता है। इस सूरत में क्वार्ट्ज बेअरिंग चट्टानें कम्पुरीस होने पर मजबूत बर्की (बिजली) मैदान पैदा करने के लिए मशहूर हैं। हालांकि इस नजरिया को बड़े पैमाने पर कबूल नहीं किया गया है।

Post a Comment

if you have any suggetion, please write me

और नया पुराने