2 सफर उल मुजफ्फर 1445 हिजरी
इतवार, 20 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं‘अल्लाह के जिक्र के बिना ज्यादा बातें न किया करो, ज्यादा बातें करना दिल की कसादत (सख्ती) का सबब बनता है और सख्त दिल शख्स अल्लाह को पसंद नहीं।’
- मिश्कवात
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नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
मुल्क में मुसलमानों की आबादी और बच्चों की पैदाइश के हवाले से अक्सर सवालात उठाए जाते हैं। लीडरों से लेकर आम लोगों के जहन में यही सवाल है कि मुसलमान बहुत तेजी से बच्चे पैदा कर रहे हैं। लेकिन एनएफएचएस की रिपोर्ट के मुताबिक हकीकत इसके बिल्कुल उलट है।मुल्क के तमाम मजहबी गिरोहों में शरह पैदाइश (जन्म दर) में कमी आई है। पिछले 29 सालों में यानी 1992 से 2021 के दरमियान मुसलमानों की शरह पैदाइश में सबसे ज्यादा 46.5 फीसद कमी रिकार्ड की गई है। इसके साथ ही हिंदूओं में 41.2 फीसद की कमी आई है। जिन रियासतों में आबादी 20 फीसद से ज्यादा है, वहां शरह पैदाइश 1.8 से नीचे आ गई है। यानी उन मुस्लिम अक्सरीयती रियास्तों में 5 खवातीन अपनी जिंदगी में औसतन 9 बच्चों को जन्म दे रही हैं। यानी एक मुस्लमान औरत के लिए औसतन दो से कम बच्चे। पिछले आदाद-ओ-शुमार (आंकड़ों) में यही सूरत-ए-हाल थी, साल 2019-21 यानी एनएफएचएस 5 में हिंदू खवातीन की शरह पैदाइश 2.29, मुस्लिम 2.66, सिख 1.45 और दीगर में 2.83 थी। यानी साल 2015-16 के मुकाबले साल 2019-21 में हिंदू खवातीन की शरह अफ़्जाइश में 0.38 और मुस्लमानों की शरह 0.44 तक कम हुई है। जबकि सिख खवातीन की शरह पैदाइश में 0.07 और दीगर की शरह 1.08 बढ़ी है।