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अली हुसैन जैसे पसमांदा लीडर की इस दौर में है अहम जरूरत

14 जीअकादा 1444 हिजरी
इतवार, 4 जून 2023
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जिन्हें अपने ही फरामोश कर बैठे हैं : एमडब्ल्यू अंसारी 

मौलाना अली हुसैन, आसिम बिहारी, बिहार में एक गरीब पसमांदा बंकर घराने में पैदा हुए। इब्तिदा में उन्होंने कलकत्ता में अपने कैरीयर का आगाज किया। मुलाजमत के दौरान उन्होंने मुताला और पढ़ने में दिलचस्पी जाहिर की। वो कई तरह की तहरीकों (आंदोलनों) में सरगर्म रहे। हुकूमती पाबंदियों के बाइस उन्होंने नौकरी छोड़कर रोजी रोटी के लिए बीड़ी बनाना शुरू किया। अपने बीड़ी वर्कर साथियों की एक टीम तैयार की जो कौम और समाज से जड़े मसाइल पर काम कर सके। 
मौलाना अली हुसैन, आसिम बिहारी
    मौलाना आसिम बिहारी ने शुरू ही से गरीबों और पसमांदा जातों को मुतहर्रिक, फआल और मुनज्जम करने की कोशिश की। इसके लिए वो हर कान्फें्रस में दीगर पसमांदा जातों के लोगों, रहनुमाओं और तन्जीमों को शामिल किया करते थे, उनकी शराकत को मोमिन गजट में भी बराबर का मुकाम दिया जाता था। मौलाना ने भारत छोड़ो तहरीक में फआल किरदार अदा किया। 1940 में उन्होंने मुल्क की तकसीम के खिलाफ दिल्ली में एक एहितजाजी मुजाहरा किया, जिसमें तकरीबन चालीस हजार पसमांदा लोगों ने शिरकत की। उन्होंने तालीम हासिल करने पर जोर दिया, उनका कहना था कि भले पेट में दाना ना हो, पैर में जूता ना हो लेकिन जेब में कलम और हाथ में कागज होना बहुत जरूरी है। भूखे रहो, लेकिन तालीम जरूर हासिल करो। वो जानते थे कि समाज में फैली जातपात, छुआ-छूत और ना इंसाफी की इस गंदी रिवायत को खत्म करना है तो आला तालीम हासिल करना होगी। वे कहते थे, अगर हम मआशरे के अंदर फैली हर किस्म की बुराईयों को खत्म करना चाहते हैं तो हमेंं तालीम याफता बनना होगा।
    मुस्लमानों में राईज जातपात को खत्म करने के लिए भी उन्होंने मेहनत की, उनका कहना था कि इस रिवायत को खत्म करने के लिए मुस्लमान आपस में रिश्ता करें। अल गरज उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गरीबों, तालीम और मआशी तौर पर नजरअंदाज और कमजोर दलित बिरादरीयों की फलाह-ओ-बहबूद के लिए कोशिशों में गुजारी। बाबाए कौम, अली हुसैन आसिम बिहारी की सोच और ख़्याल बाबा भीमराव आंबेडकर से मिलता जुलता है। दोनों अजीम रहनुमाओं का मिशन और जिंदगी का मकसद एक था कि समाज के सबसे निचले तबके को समाजी और तालीमी तौर पर किस तरह उठाया जाए और उन्हें किस तरह उनके जायज हुकूक दिलाए जा सकें। 
    अफसोस की कि इतने अजीम रहनुमा और मुजाहिद आजादी, बाबा-ए-कौम अली हुसैन आसिम बिहारी की आज कोई खबर लेने वाला नहीं है। इसी तरह तमाम पसमांदा रहनुमाओं अब्दुल कय्यूम अंसारी, शेख भिखारी और बत्तख मियां अंसारी जैसे हजारों पसमांदा रहनुमाओं को कौम ने ही हाशिये में डाल रखा है। जरूरत इस बात की है जिस सोच को लेकर ये अजीम शख्सियात आगे बढ़ी थीं, हम उनके मिशन को आगे बढ़ाते हुए अपनी कौम को तालीम याफता, मुत्तहिद जायज हुकूक के लिए जद्द-ओ-जहद करते रहें।

- बेनजीर अंसार एजुकेशनल एंड सोशल वेल्फेयर सोसाइटी, भोपाल


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