18 शव्वालुल मुकर्रम 1444 हिजरी
मंगल, 9 मई, 2023
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रियाद : आईएनएस, इंडिया तरबूज और कई दूसरे फलों की काश्त (खेती) में खुद कफालत की मंजिÞल हासिल करने के बाद सऊदी अरब अब पपीते की काश्त में भी खुद कफील हो गई है। वजारत माहौलियात, पानी और जराअत (पर्यावरण, जल और कृषि मंत्रालय) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ममलकत (मुल्क) में पपीते के फल की सालाना पैदावार 4,717 हजार टन से तजावुज कर गई है, जिससे इसमें 95 फीसद तक खुद कफालत (आत्मनिर्भरता) हुई है। पपीते की दरआमदात (आयात) 571 टन और बरामदात (निर्यात) 296 टन है जबकि दुबारा बरामदात का हुजम 3.8 टन है। रिपोर्ट के मुताबिक पपीते की पैदावार का सीजन मई में शुरू होता है और अगस्त तक जारी रहता है। इस फल को गैरमामूली फवाएद का हामिल समझा जाता है जिसकी काश्त शिरकिया गवर्नरी और जाजान के इलाकों के अलावा हारोब, अब्बू अरीश, सबिया और जमद गवर्नरियों में होती है। ममलकत पपीते के बहुत से हाइब्रीड्ज की काशत और पैदावार की खुसूसीयत रखती है। इनमें रेड लेडी हाइब्रिड हैं जो ममलकत के इलाकों में सबसे ज्यादा काशत की जाती है, शामिल है। रिपोर्ट में बताया गया कि पपीता इन्सानी सेहत के लिए इंतिहाई मुफीद फल है। इसके तिब्बी फवाइद में दिल की शरियानी की मजबूती, बालों, जिल्द और हड्डियों की मजबूती और उनकी नशोनुमा में मदद देना है। इसके अलावा ये निजाम इन्हिजाम को बेहतर बनाता है। इसमें विटामिन सी, फोलिक एसिड, विटामिन ए, मैगनीशियम, कॉपर, विटामिन बी, उल्फा और बेटा कैरोटीन, विटामिन ई, कैल्शियम, पोटाशियम, विटामिन के और दीगर सेहत को फरोग देने वाले अनासिर (तत्व) भी पाए जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पपीते की काश्त के लिए मखसूस माहौलियाती और मौसमी जरूरीयात की जरूरत होती है। मौसमी जरूरीयात में 25 से 33 डिग्री सेंटीग्रेड का होना भी जरूरी है। इसके लिए औसत नमी 60.70 दरकार होती है। आब-ए-पाशी (सिंचाई) के लिए 350-500 मिलीमीटर सालाना बारिश काफी होती है। ये फल ज्यादा-तर सतह समुंद्र से 500 मीटर से भी कम ऊंचाई पर होता है। ये दरख़्त पौधे लगाने के सिर्फ 6 माह बाद फल देना शुरू कर देते हैं, ताहम मौसमी हालात उसके फलों पर असर अंदाज हो सकते हैं।