12 शाअबानुल मोअज्जम 1444 हिजरी
इतवार, 5 मार्च 2023
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सख़्त मौकिफ में कहा, इस ईशू को उठाना मुल्क में उबाल लाना है
नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया सुप्रीमकोर्ट ने शहरों, कस्बों और सड़कों वगैरह के कदीम (पुराने) नामों की पहचान के लिए एक ‘री नेमिंग कमीशन’ यानी नाम बदलो कमीशन बनाने के मुतालिबा वाली अर्जी को खारिज कर दिया। अदालत ने अर्जी खारिज करते हुए सख़्त लहजे में तबसरा किया कि मुल््क माजी का कैदी बन कर नहीं रह सकता। अदालत का कहना है कि जमहूरी हिन्दोस्तान सभी का है, मुल्क को आगे ले जाने वाली बातों के बारे में सोचा जाना चाहिए। अदालत-ए-उज्मा ने अर्जी को तशद्दुद (हिंसा) की मंशा वाला करार दिया और कहा कि ऐसा करने से ईशू जिंदा रहेंगे और उबाल वाली हालत बनी रहेगी। अर्जी को वकील अश्वनी उपाध्याय ने दाखिल किया था जिसमें कहा गया था कि गैर मुल्की हमला आवरों ने मुल्क पर हमला कर कई जगहों के नाम बदल दिए और उन्हें अपना नाम दे दिया। अर्जी में ये भी कहा गया था कि आजादी के इतने साल बाद भी हुकूमत इन मुकामात के कदीम नाम फिर से रखने को लेकर संजीदा नहीं है। उपाध्याय ने अपनी अर्जी में कहा कि मजहबी और सकाफ़्ती एहमीयत की हजारों जगहों के नाम मिटा दिए गए। उन्होंने मिसाल देते हुए कहा कि शक्ति पीठ के लिए मशहूर शहर का नाम बदल कर मुर्शिदाबाद, कदीम करणावती का नाम अहमदाबाद, हरीपुर को हाजीपुर, रामगढ़ को अलीगढ़ कर दिया। अर्जी में शहरों के अलावा कस्बों के नामों को बदले जाने की भी कई मिसालें दी गई थीं। अश्वनी उपाध्याय ने उन सभी जगहों के कदीम नाम की बहाली को हिन्दुओं के मजहबी, सकाफ़्ती हुकूक के अलावा वकार से जीने के बुनियादी हुकूक के तहत भी जरूरी बताया था। अर्जी में दिल्ली की कई सड़कों के नामों का भी तजकिरा था जिसमें अकबर रोड, लोधी रोड, हुमायूँ रोड, चेम्सफोर्ड रोड, हैली रोड जैसे नामों को भी बदलने की जरूरत बताई गई थी। सुप्रीमकोर्ट ने इस अर्जी में उठाए गए मुतालिबात और दीगर बातों पर हैरानी जाहिर की। बेंच ने अर्जी पर गौर करने के बाद कहा कि आप सड़कों का नाम बदलने को अपना बुनियादी हक बता रहे हैं, आप चाहते हैं कि हम वजारत-ए-दाखिला को हिदायत दें कि वो इस मुआमले पर कमीशन की तशकील करे, इस अर्जी पर खुद ही पैरवी कर रहे उपाध्याय ने कहा कि सिर्फ सड़कों का नाम बदलने की बात नहीं है। इससे ज्यादा जरूरी है इस बात पर तवज्जा देना कि हजारों जगहों की मजहबी और सकाफ़्ती शनाख़्त को मिटाने का काम गैर मुल्की हमला आवरों ने किया।
इस दलील पर जस्टिस जोजफ ने कहा कि आपने अकबर रोड का नाम बदलने का मुतालिबा किया है। तारीख के मुताबिक अकबर ने सबको साथ लाने की कोशिश की। इस के लिए उसने दीने इलाही जैसा अलग मजहब शुरू किया। मुआमले पर बेंच ने कहा कि हम पर हमले हुए, ये हकीकत है। क्या आप वक़्त को पीछे ले जाना चाहते हैं, इससे आप क्या हासिल करना चाहते हैं, क्या मुल्क में मसाइल की कमी है, उन्हें छोड़कर वजारत-ए-दाखिला अब नाम ढूंढना शुरू करे, उन्होंने मजीद कहा कि हिंदूत्वा एक मजहब नहीं, तर्ज़-ए-जिÞदंगी है। इसमें कट्टर पसंदी की जगह नहीं है। बांटो और राज करो की पालिसी अंग्रेजों की थी। अब समाज को तकसीम करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।
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