तेहरान : आईएनएस, इंडिया
सऊदी अरब के मुख़्तलिफ इलाकों बिलखसूस शुमाली इलाकों में ‘अलफका’ (टर्फ़ल) नामी खुदरोंबी सबसे ज्यादा बेची जा रही है। इस मौसम में ‘टर्फ़ल’ प्लांट या ‘टर्फ़ल’ जजीरानुमा अरब के लोगों की तवज्जा का खास मर्कज होती है।
सऊदी शहरी अपनी खुराक में टर्फ़ल्ज खाने और इस्तिमाल करने को बहुत पसंद करते हैं। ये एक खुदरो नबात है जो बारिशों के मौसम में उगती है। आम तौर टर्फ़ल ज्यादातर सर्दियों के मौसम की आमद से पहले उगती है। खासतौर पर सऊदी शहरी इसके बहुत दिलदादा होते हैं। अरब और खलीजी ममालिक में सहरा में उगने वाली इस गिजा को विरसे की किताबों में ‘बिंत अलराद’ कहा जाता है। शुमाली सरहदी इलाके में ‘टर्फल’ की मंडियों में इन दिनों इसकी जबरदस्त मांग देखने में आ रही है, जहां मौसम-ए-बहार के आसार नजर आते हैं और इस साल के शुरू में इस खित्ते के सहराओं में टर्फ़ल की कई किस्में दस्तयाब हैं।
ये सहराई फंगस की सबसे लजीज और कीमती इकसाम में से एक समझी जाती है। टर्फ़ल सहराओं में आलू की शक्ल में जर-ए-जमीन उगते हैं। सहराई पौधे की एक किस्म बलूत जैसे बड़े दरख़्तों की जड़ों के करीब होती है और इसकी शक्ल गोल होती है। गोश्त की तरह नरम और ढीला होने के साथ इसकी सतह हमवार या तपदार होती है। इसका रंग सफेद से स्याह तक मुख़्तलिफ होता है और ये मुख़्तलिफ साइज में होता है। उनमें से कुछ इतने छोटे होते हैं कि वो नट के साइज के होते हैं। जबकि कुछ संगतरे के साइज के बड़े टर्फ़ल भी पाए जाते हैं।
टर्फ़ल बेचने वाले फवाज अलासलमी ने बताया कि इस सीजन में टर्फ़ल की बहुत मांग होती है और एक कॉटून की कीमत 3000 रियाल तक पहुंच सकती है। माहिरीन का कहना है कि सीजन अभी इबतिदाई मराहिल में है और एक किलो 250 रियाल से शुरू हो कर 600 तक दस्तयाब है, कीमत हर टर्फ़ल के साइज के हिसाब से लगाई जाती है। फरवरी के महीने में यह ज्यादा तादाद में पाई जाती है।
nai tahreek, naitahreek, tahreek, tahreeke nav