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इमामुल हिंद, जिन्हें तालीम से था जज्बाती लगाव

11 नवंबर को यौमे पैदाईश पर कौमी शख्सियात ने पेश की खिराज-ए-अकीदत
यौमे तालीम के मौकेपर तहय्या करें कि कौम आला तालीम से आरास्ता हो :आॅल माइनॉरिटीज फ्रंट

नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया 

वजीरे आजम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस पार्टी के कौमी सदर मल्लिका अर्जुन खड़गे समेत मुख़्तलिफ अहम शख्सियात ने मुजाहिदे आजादी और कौम परस्त लीडर इमामुल हिंद मौलाना अबुल कलाम आजाद को उनके यौम-ए-पैदाइश पर खिराज-ए-अकीदत पेश किया। 


तमाम काइदीन ने अपने पैगाम में मौलाना आजाद की खिदमात और उनकी शख़्सियत की खूबियों पर रोशनी डाली। वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी ने तहिरीक-ए-आजादी में उनके तआवुन और तालीम के तंईं उनके जजबा को याद किया। उन्होंने अपने टवीट में कहा कि मौलाना आजाद अपनी इल्मी फितरत और फिक्री सलाहीयतों के लिए बड़े पैमाने पर सराहे जाते हैं। वो हमारी तहिरीक-ए-आजादी में सबसे आगे रहे। उन्हें तालीम से भी जज्बाती लगाव था। कांग्रेस पार्टी के कौमी सदर मल्लिका अर्जुन खड़गे ने अपने टवीट में लिखा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद, मुजाहिद आजादी, कांग्रेस के सदर और हिन्दोस्तान के पहले वजीर-ए-तालीम थे। उन्होंने लिखा कि आज का दिन कौमी यौम तालीम के तौर पर मनाया जाता है जिसमें हिन्दोस्तान के तालीमी निजाम की तामीर में उनकी शराकत को तस्लीम किया है। 

आल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट के बानी (फाउंडर), सीनीयर सहाफी और समाजी कारकुन डाक्टर सैय्यद मुहम्मद आसिफ ने भी उनकी शख्सियत पर रोशनी डाली। 

मुकद्दस मुकाम मक्का मुकर्रमा में हुई थी पैदाईश

11 नवंबर 1888 को अबुल कलाम आजाद  की पैदाइश मुकद्दस तरीन शहर मक्का मुकर्रमा में हुई। आजाद (अलैहिर्रहमा) की वालिदा माजिदा अरबी नसल थीं और वालिद-ए-माजिद खैर उद्दीन अफ़्गान नसल थे, जो खुद अपने वक़्त के पीर ओ मुर्शिद कलाए जाते थे। खानदान तालीम-ए-याफता और मजहबी था। उनके आबा-ओ-अजदाद हिन्दोस्तान में आकर बस गए थे। बचपन में उन्होंने कलकत्ता में तालीम हासिल की, जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उन्हें अंग्रेजों की गु़लामी का अहसास हुआ। 

हिंदूस्तान की आजादी के लिए जेल गए

1912 अंग्रेज से आजादी की तहरीक के लिए ‘अल हलाल’ अखबार निकाला, आजादी की तहरीक को कुचलने के लिए 1914 में अलहलाल अखबार पर अंग्रेज हुकूमत ने पाबंदी लगा दी। आजादी की तहरीक और कौमी जज्बे के अहया के लिए ‘अलबलाग’ नामी एक और रिसाला निकाला लेकिन उस पर भी पाबंदी लगा दी गई। यही नहीं, 1916 में अबुल कलाम आजाद को गिरफ़्तार कर लिया गया। 1920 में जेल से रिहा हुए, उसके बाद कांग्रेस पार्टी में शमूलीयत इखतियार कर ली। 1922 में जब अंग्रेजों ने उस्मानिया खिलाफत का खात्मा किया, वे गांधी जी के साथ मिलकर खिलाफत आंदोलन में शामिल हो गए। 1923 में उन्हें दिल्ली के कांग्रेस इजलास का सदर बनाया गया। 1930 में गांधी जी के साथ नमक आंदोलन में शामिल हुए, बाद में उन्हें कांग्रेस पार्टी का सदर भी बनाया गया। अबुल कलाम आजाद ने मुल्ककी आजादी की तहरीक में कई साल जेल में गुजारा। 

मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोका

जब मुल्क तकसीम होने लगा तो उन्होंने इसकी शदीद मुखालिफत की। पाकिस्तान बन जाने पर वहां जाने वाले मुस्लमानों को उन्होंने दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ीयों पर खड़े होकर उन्हें पाकिस्तान जाने से रोका और कहा कि इसी हिन्दोस्तान की सरजमीन पर हम खाक में मिल जाएंगे लेकिन पाकिस्तान नहीं जाएंगे। हिन्दोस्तान के साथ बेपनाह मुहब्बत का जो सबक उन्होंने मुस्लमानों को उनमें से कई उसे कबूल करते हुए यहीं रह गए। डाक्टर आसिफ ने कहा कि इस वक़्त हम लोगों को अजीम मुजाहिद आजादी और इमामुल हिंद मौलाना अबुल कलाम आजाद बहुत याद आते हैं, उनकी कमी शदीद तौर पर महसूस होती है। 

मुल्क के पहले एजूकेशन मिनिस्टर

आजाद (अलैहिर्रहमा) भारत के वो पहले वजीर-ए-तालीम बने, जिन्होंने तालीमी मैदान में कामयाबी के साथ अपनी जिÞम्मेदारी बखूबी निभाई। उनके यौम-ए-पैदाइश को कौमी यौमे तालीम करार दिया गया। डाक्टर आसिफ ने कहा, आईए! आज यौम तालीम के मौका पर हम तहय्या करें कि अपनी कौम को आला तालीम दिलाने में हम से जो हो सकेगा, मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि तालीम हासिल करने के लिए हम हुकूमत के भरोसे ना बैठें। अगर अल्लाह ने हमें नवाजा तो गरीब व यतीम बच्चे-बच्चियों को तालीम याफता बनाने के लिए कम से कम एक बच्चे की तालीमी मदद जरूर करें। गर्वनमेंट से आला तालीम हासिल करने के लिए जो सहूलत फराहम की जाती है, उसकी मालूमात कौम के आम लोगों को दें और कौम के बच्चों को तालीम याफता बना कर सवाब जारीया के मुस्तहिक बनें।



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