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गया में लगाई धर्म और आस्था की डुबकी

श्रद्धालुओं ने किया तर्पण व पिंडदान


सुनील शर्मा : गया
 

पितृमोक्ष अमावस्या पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पिंडदान करने गया आए। भगवान श्री विष्णु पद मंदिर प्रांगण में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा को देखते हुए 8 से 25 सितंबर तक संस्कृति का रंगारंग महासंगम सम्पन्न हुआ। इस दौरान श्री महाराज ने भगवान गदाधर श्री हरि विष्णु की लीलाओं का वर्णन किया। रविवार को पितृ मोक्ष आमावश्या पर अलस्सुबह से पितृ तर्पण व पिंडदान करने वालों की भीड़ घाट पर लगी रही। 

गया के एसएसपी ने बताया कि पितृ पक्ष मेले में यात्रियों की सुरक्षा के साथ ही पार्किंग की समुचित व्यवस्था की गई है। पितृ पक्ष मेले में अब तक 30 लाख से अधिक यात्री तर्पण व पिंडदान कर चुके हैं। तट पर गया के स्थानीय निवासी भी बड़ी संख्या में मौजूद थे। मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने से वर्षभर पितृ संतुष्ट होकर आयु, यश, कीर्ति, पुत्र तथा धन की रक्षा करते हैं।

पूर्वजों से है गहरा नाता

पूर्वजों माता-पिता व दादा-दादी का परिवारजन से गहरा नाता होता है। शरीर छूटने पर वे सूक्ष्म रूप से पितृ लोक में निवास कर अपनी सन्तानों तथा वर्ग के लोगों द्वारा किए जा रहे धर्म-कर्म देखकर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। उत्तराधिकारी पुत्र अपने स्वर्गीय पिता माता की याद में उनकी तृप्ति हेतु विशेष तरीके से काले तिल, जौ, चावल तथा सफेद फूलों द्वारा अलग-अलग दिशाओं के पितरों सहित जल दान करते हैं, पितर तृप्ति पाकर संतुष्ट होते हैं। मनुष्य जैसी भी स्थिति-परिस्थिति में हो, उसे अपने पितरों का मान सम्मान करना चाहिए। इससे आयु, सत्पुत्र, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। श्राद्ध करने वालों का सांसारिक जीवन तो सुख में रहता ही है, परलोक भी सुधरता है और मुक्ति भी मिलती है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध न करवने वालों पर पितर क्रोधित होकर जीवन के सभी सुखों का नाश कर देते हैं। 

देव पूजा में चूक न हो

देव पूजा तथा पितरों का श्राद्ध करने में कभी चूक नहीं करनी चाहिए। जीवित माता-पिता दादा-दादी तथा सगे संबंधियों की सेवा व आज्ञा का पालन कर आशीर्वाद प्राप्त करें एवं उनके देह छूटने पर और्ध्वदेहिक कर्म (मरणोपरांत), पिंडदान-श्राद्ध तथा तर्पण, कर पितृ ऋण से मुक्त होना चाहिए। पितृ गायत्री जाप, पितृ सूक्त पाठ, सपिण्डन (पितरों में मिलाना), तर्पण, जलदान, ब्राह्मण-भोजन, दान, गोदान, साधु-संत सेवा आदि शुभ कार्य अवश्य करने चाहिए। पितृपक्ष में 15 दिनों तक पितरों को जल, श्राद्ध और तर्पण देकर संतुष्ट किया जाता है। जिस पितर के मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उन पितरों को अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या जिसे पितृ विसर्जन के नाम से जाना जाता है, पर तर्पण और श्राद्ध देकर उन्हें विदा किया जाता है।


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