सूरज के काअबा शरीफ के ऊपर आने का ये इस साल का पहला वाकिया सूरज जब तकरीबन 90 डिग्री पर आया तो खाना काअबा के बराबर ऊपर था उस वक़्त सिर्फ काअबा शरीफ ही नहीं, मक्का मुअज्जमा में दीगर इमारतों और अजसाम के साए सिफर (शून्य) हो गए थे
रियाद : मक्का मुकर्रमा के मुकामी वक़्त के मुताबिक दिन के 12 बज कर 18 मिनट पर सूरज ऐन काअबा शरीफ के बराबर ऊपर आ गया। अमूमी तौर पर सूरज के काअबा शरीफ के ऊपर आने का ये इस साल का पहला वाकिया है जो 28 मई को पेश आया।
जद्दा में फलकियाती (खगोलीय) सोसाइटी के सरबराह इंजीनियर माजिद अब्बू जाहिरा ने बताया कि जब सूरज तकरीबन 90 डिग्री पर आया तो उस वक़्त खाना काअबा के बराबर ऊपर था और उस वक़्त काअबा शरीफ का साया मुकम्मल तौर पर गायब हो गया। सिर्फ काअबा शरीफ ही नहीं बल्कि मक्का मुअज्जमा में दीगर इमारतों और अजसाम के साए सिफर (शून्य) हो गए । उस वक़्त सूरज आसमान के दूर दराज इलाकों की तरफ झुक गया। उन्होंने वजाहत की कि सूरज के अमूदी तौर पर (लंबवत) आने का वाकिया खत-ए-इस्तिवा (भू-मध्य) और सुरतान मदार (कर्क रेखा) के दरमयान काअबा के आने के नतीजे में होता है। आसमान पर सूरज की ब-जाहिर हरकत के दौरान ये काअबा के ऊपर सीधा नजर आता है। मई के महीने में खत-ए-इस्तिवा से सूरज के सुरतान मदार की तरफ जाते हुए ये मंजर दिखाई देता है जबकि जुलाई में खत-ए-इस्तिवा से वापसी पर सूरज एक-बार फिर काअबा शरीफ पर बराबर आएगा। उन्होंने मजीद कहा कि 23;5 दर्जे शुमाल और जुनूब के अर्ज़ अलबलद (उत्तरी और दक्षिणी अक्षांश) पर वाके तमाम इलाके साल में दो बार इस फलकियाती मजहर का मुशाहिदा करते हैं, लेकिन इस जगह के अर्ज़ बलद (अक्षांश) के लिहाज से ये मंजर मुख़्तलिफ औकात में जाहिर होता है। उनका कहना था कि सूरज की गर्दिश के रुजहान को जदीद तकनीकों की जरूरत के बगैर ज्योमेटरी के कुछ आसान उसूलों का इस्तिमाल करते हुए जमीन की गर्दिश का हिसाब लगाने में भी इस्तिमाल किया जाता है। एक कदीम तरीका है जो 2000 साल से ज्यादा पुराना है। इससे ये भी पता चलता है कि जमीन गोल है।