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सच्ची श्रद्धांजलि

 - सईद खान

 


मंत्री जी के पार्टी कार्यालय पहुंचने तक कार्यक्रम की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। अभिनंदन, स्वागत और आशिर्वाद की औपचारिकता के साथ ही मुख्य कार्यक्रम शुरू हुआ। मंत्री जी ने राष्टÑपिता महात्मा गांधी के तैलचित्र पर माल्यार्पण किया। वहां मौजूद पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में से कुछ और ने भी यही किया। शेष ने बापू के चित्र पर पुष्प वर्षा की। फिर सबने पूरी श्रद्धा के साथ हाथ जोड़कर बापू को नमन किया। उसके बाद मंत्री जी माइक के सामने जा खड़े हुए और बाकी ने सामने लगी कुर्सियों पर आसन जमा लिया। यह सब यंत्रचलित सा हुआ। सरकारी स्कूल के बच्चों द्वारा 15 अगस्त और 26 जनवरी की परेड के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने जैसा। सधा हुआ। यहां तक कि दीनानाथ चौरसिया का दूसरों की नजÞर बचाकर जर्दे वाला पाउच अपने मुंह में उंडेलना और मुत्तु स्वामी का अपने मुंह में पड़े गुटखा के रसहीन अवशेष को हथेली में उगलकर उसे सामने बैठे सुकुल बाबू की कुर्सी के नीचे फेंकना भी सधा हुआ सा था। पूर्व अभ्यासित। जैसे वर्षों से वे इस क्रिया को दोहरा रहे हैं।

उधर माइक पर एक-दो बार ऊंगली से ठक-ठक करने के बाद मंत्री जी ने कहना शुरू किया- ‘साथियों ! आज, राष्टÑपिता महात्मा गांधी की जयंती मनाई जा रही है...जैसा कि आप सभी जानते हैं कि राष्टÑपिता महात्मा गांधी यानि बापू ने देश की आजादी में अहम किरदार निभाया है...बापू अहिंसावादी थे...बापू ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा...बापू ने कभी किसी पर क्रोध नहीं किया...बापू सत्यप्रिय थे...बापू ने कभी झूठ नहीं कहा...छोटे-बड़े सभी को बापू ने समान नजरों से देखा...बापू छुआछूत नहीं मानते थे...हम सब बापू के ऋणी हैं...। आओ! बापू की जयंती के इस अवसर पर हम उनके बताए मार्ग और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लें...यही बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।’ इसके साथ ही मंत्री जी ने अपनी वाणी को विराम दिया। सामने बैठी भीड़ ने ताली बजाई। उनके बाद विधायक, प्रदेश अध्यक्ष, ब्लाक अध्यक्ष और एक-दो पार्षदों ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। सभी ने बापू के आदर्शों को आत्मसात करने की जरूरत पर जोर दिया। अगर उधम होटल का गर्मागर्म समोसा और भाप छोड़ती केतली देखकर संचालक महोदय ने आभार प्रदर्शन के लिए वरिष्ठ कार्यकर्ता मिर्जा कलीम बेग को आमंत्रित न किया होता तो कदाचित कुछ और कार्यकर्ता और पदाधिकारियों की बदौलत बापू की कुछ और अच्छाईयों पर से पर्दा उठ गया होता। 

मंत्री जी यहां से गांधी चौक के लिए रवाना हो गए। गांधी चौक में आयोजित कार्यक्रम की तैयारी लगभग अंतिम चरण में थी कि तभी एक पंगा हो गया। बापू की प्रतिमा की सफाई के दौरान पता चला कि प्रतिमा से चश्मा गायब है। कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों में खलबली मचना स्वभाविक था। उसी बीच किसी ने लापरवाही से कहा-‘लेट इट बी यार, जब सालभर चश्मे की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया तो दो मिनट के कार्यक्रम के दौरान मंत्री जी भी चश्मे को नोटिस नहीं करेंगे।’

‘यार।’ किसी ने कहा-‘सालभर हम बापू की तरफ देखते ही कब हैं। लेकिन अभी बात अलग है। मंत्री जी पक्का नोटिस करेंगे।’ 

‘सवाल ये नहीं कि मंत्री जी नोटिस करेंगे या नहीं, सवाल है कि चश्मा गया कहां।’ भीड़ में से एक युवक आगे बढ़ा। दोनों हाथ कमर पर धरे बापू की प्रतिमा को गौर से देखते हुए वह बुदबुदाया-‘ये हिमाकत जिसने भी की है, यदि प्रशासन ने उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया तो हमें धरना-प्रदर्शन करना होगा। क्यों साथियों...।

लेकिन इससे पहले कि कोई उसके समर्थन में सिर हिलाता या धरना-प्रदर्शन की कोई योजना बन पाती, मंत्री जी वहां पहुंच गए। बापू का चश्मा भूलकर लोगों ने मंत्री जी का स्वागत-सत्कार किया। मंत्री जी ने उन्हें आशिर्वाद दिया और बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। कुछ और ने भी यही किया। शेष ने पुष्प वर्षा की। फिर सबने हाथ जोड़कर पूरी श्रद्धा के साथ बापू को नमन किया। उसके बाद मंत्री सहित कुछ कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने कार्यक्रम को संबोधित किया। बोले-‘जैसा कि आप सभी जानते हैं कि राष्टÑपिता महात्मा गांधी यानि बापू ने देश की आजादी में अहम किरदार निभाया था...बापू अहिंसावादी थे...बापू ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा...बापू ने कभी किसी पर क्रोध नहीं किया...बापू सत्यप्रिय थे...बापू ने कभी झूठ नहीं कहा...छोटे-बड़े सभी को बापू ने समान नजरों से देखा...बापू छुआछूत नहीं मानते थे...हम सब बापू के ऋणी हैं...आओ! बापू की जयंती के इस अवसर पर हम उनके बताए मार्ग और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लें...यही बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी...।’ लोगों ने ताली बजाई और सांई होटल से मंगाई गई दही, कचौरी उदरस्थ की। उतनी देर में लाउडस्पीकर वाले छोकरों ने सधे हाथों से स्टैंड से साउंड बाक्स उतारकर तार आदि को समेट भी लिया था। 

गांधी चौक के बाद मंत्री जी दो अन्य जगह भी बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। वहां भी उन्होंने बापू का चरित्र वर्णन किया। उनके बताए मार्ग और आदर्शों पर चलने का संकल्प लेने की बात कही। आखिर में यह भी कहा-‘यही बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।’ 

इसके बाद वे क्रिस्टल पब्लिक स्कूल पहुंचे जहां हाई स्कूल के बालक-बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत नाटक  ‘अंधेर नगरी-चौपट राजा’ के मंचन के बाद उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित किया।  बोले- ‘प्यारे बच्चों.............................................................................।’ रटा रटाया भाषण देने के बाद अंत में उन्होंने यह भी कहा- ‘यही बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।’  स्व-विवेक से यहां उन्होंने कुछ शब्दों का इजÞाफा किया। बोले- ‘बच्चो! तुम देश का भविष्य हो। बापू के बताए मार्ग और उनके आदर्श तुम्हारे लिए ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं।’ मंत्री जी का भाषण खत्म होते ही बच्चों, अभिभावकों और स्कूल स्टाफ ने ताली बजाई। मंत्री जी के लिए यहां स्वल्पाहार का बढ़िया इंतजाम था। लेकिन उन्होंने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया। बोले-‘सुबह से यही चल रहा है, अब उबकाई आने लगी है।’ कहकर वे कार में जा बैठे।

उनके जाने के बाद प्रिंसिपल कक्ष में प्रिंसिपल चारूलता विरूलकर अपने सामने बैठे मोहल्ला विकास समिति के अध्यक्ष सुब्रतो मुखर्जी और शिक्षक पालक समिति के अध्यक्ष हरभजन सिंह से बोलीं-‘उम्मीद नहीं थी कि मंत्री जी इतनी कंजूसी से काम लेंगे। भला बताओ, पांच लाख में दो कक्ष निर्माण और बोरिंग कैसे हो पाएगी।’

‘मुझे लगता है...।’ शिक्षक पालक समिति के अध्यक्ष हरभजन सिंह ने कहा-‘कोषाध्यक्ष महोदय अपनी बात दमदारी से नहीं रख पाए। दो कक्ष की कमी और बोरिंग न होने से उन्हें स्टूडेंट्Þस को होने वाली परेशानियों को प्रमुखता से रखना था।’

‘अब छोड़ो भी।’ मोहल्ला विकास समिति के अध्यक्ष सुब्रतो मुखर्जी बोले-‘मंत्री जी जितनी राशि की घोषणा कर गए हैं, उसे ही गनीमत जानो। महापौर चुनाव में उनकी पार्टी के प्रत्याशी को हमारे वार्ड से बहुत ही कम वोट पड़े थे, मुझे लगता है, मंत्री जी ने इसी बात की खीज निकाली हो।’

अचानक प्रिंसिपल चारूलता विरुलकर ने मेज पर रखी घंटी पर जोर से हाथ मारा। साथ ही चिल्लाई-‘मेवालाल।’ जवाब में मेवालाल साक्षात उनके सामने आ खड़ा हुआ। 15 लाख की मांग के विरुद्ध मात्र 5 लाख की घोषणा किए जाने से चिढ़ी बैठीं श्रीमती विरूलकर को क्लास रूम से आ रहे शोरगुल ने और चिढ़ा दिया था। वे तनिक गुस्से में मेवालाल से बोलीं-‘बच्चों से कहो, कार्यक्रम खत्म हो गया है। अपने-अपने घर जाएं। और वो टेंट वालों ने अपना सामान समेटा या नहीं।’

जाने को उद्यत मेवालाल ने रुककर बताया कि टेंट वालों ने लगभग सारा सामान समेट लिया है। काफी बच्चे जा चुके हैं। कुछ ही बच्चे रह गए हैं, जिन्हें आपके कहे अनुसार स्कूल का सामान यथा स्थान पहुंचाने के लिए मैंने रोक लिया था। अब वे भी जा ही रहे हैं। 

‘ठीक है।’ श्रीमती विरूलकर तनिक नर्म लहजे में बोलीं-‘और हां...वो गांधी जी की तस्वीर। उसे उठा लिए वहां से।’ 

‘जी मैम।’ मेवालाल बोला-‘उसे मैंने वहीं टांग दिया है, जहां से उसे निकाला था।’ कहकर वह कक्ष से बाहर निकल गया। 


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