इमारत शरयह के जेरे इंतजाम राउरकेला की मीटिंग अहम फैसलों के साथ इख्तेताम पजीर
राउरकेला। आईएनएस, इंडिया
इजतिमाई कामों को अंजाम देने के लिए सब बड़ी चीज ये कि हमारे दिलों में नरमी हो, कुरआन-ए-करीम में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के बारे में कहा गया कि आप नर्म दिल हैं, जिसका फायदा ये है कि लोग आपसे जुड़ते हैं, अगर आप सख़्त दिल होंगे तो लोग आपसे छट जाऐंगे, इजतिमाई काम जोड़ का काम है, इसलिए काम को आगे बढ़ाने के लिए दिल भी नरम होना चाहिए और जबान में भी नरमी होनी चाहिए, इसके अलावा बड़ों की बात मानने का जज्Þबा होना चाहिए जिसे समाअत कहते हैं, इन ख़्यालात का इजहार इमारत शरयह बिहार, उड़ीसा व ाारखंड के नायब नाजिम मौलाना व मुफती अलहदा कासिमी साहिब ने इमारत शरयह के एहदाफ को जमीन पर उतारने के लिए हजरत मौलाना अबदुस्समद नामानी मद्दजिÞल्लुहू की सदारत में बुलाई गई एक मीटिंग में अराकीन कमेटी और मुख्लेसीन इमारत शरयह से खिताब करते हुए किया। वे हजरत अमीर शरीयत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी दामत बरकातहम के हुक्म और काइम मकाम नाजिम मौलाना मुहम्मद शिबली कासिमी की हिदायत पर उड़ीसा के दौरे के तीसरे रोज राउरकेला पहूंचे। काजी शरीयत राउरकेला मुफ़्ती अब्दुह वदूद कासिमी ने कहा कि राउरकेला में दफ़्तर इमारत शरयह का कियाम तकरीबन पच्चास साल कब्ल हुआ था। इस मौके पर इस्लाह मुआशरा के काम को मजबूती के साथ करने के लिए नौजवानों और अइम्मा मसाजिद को जोड़कर एक कमेटी तशकील करना तय पाया गया। मीटिंग का आगाज मौलाना अतीक अलरहमान की तिलावत से हुआ। निजामत के फराइज काजी शरीयत मुफ़्ती अब्दुह वदूद कासिमी ने अंजाम दिए।
ब जमाअत के फायदे गिनाए
हजरत मुफ़्ती साहिब ने जामा मस्जिद और नूर मस्जिद राउरकेला में खिताब फरमाते हुए कहा कि नमाज ब जमाअत का उखरवी फायदा तो ये है कि इसका सवाब इन्फिरादी नमाज के मुकाबले सत्ताईस गुना ज्Þयादा है। और इसके दुनियावी फायदे भी हैं, जो हमारी नजरों से ओझल हैं जिनमें सबसे बड़ा फायदा और अहम सबक ये है कि जिस तरह हम मस्जिद में इमाम की इकतदा में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं, उसी तरह मस्जिद के बाहर की हमारी जिंदगी भी जमाती और इजतिमाई जिंदगी हो, इन्फिरादी जिंदगी ना हो। उन्होंने कहा कि जमात का एक सबक ये भी है कि जिस तरह हम मस्जिद के सफों में कदम से कदम और कांधे से कांधा मिलाकर खड़े होते हैं, उसी तरह मस्जिद के बाहर भी ईमान की बहाली, इस्लाम की बरतरी और नामूस रिसालत के तहफ़्फुज के लिए कदम से कदम मिलाकर मुत्तहिद हो कर मिशन के तौर पर काम करें। उन्होंने आगे कहा कि नमाज ब जमाअत से हमें ये भी सबक मिलता है कि मसलक व मशरब, जात बिरादरी, जबान और खानदान की बुनियाद पर आपस में तफरीक ना करें और जिस तरह इमाम के सहव पर उन्हें लुकमा देते हैं, उसी तरह मस्जिद के बाहर कोई बुराई और गुनाह का काम होता देखें तो हमारी जिÞम्मेदारी है कि उसे रोकें।
हिजाब पर तनाजा हमारी कोताही
हिजाब के ताल्लुक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज हिजाब का मसला इसलिए खड़ा हुआ है कि कौम की सिर्फ बीस फीसद लड़कियां हिजाब इस्तिमाल करती हैं। बाकी अस्सी फीसद लड़कियां स्कूल व कालेज में उसी कल्चर के साथ हैं जो गैर मजहब के हैं, इस सोच को बदलना होगा।
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