वक़्फ़ अमेंडमेंड बिल : एक ही दिन में जेपीसी को मिली रिकार्ड दरख़ास्तें

रबि उल अल 1446 हिजरी 

  फरमाने रसूल ﷺ   

कोई शख्स अगर किसी वक्त की नमाज भूल गया या उसे अदा करते वक्त सोता रह गया, तो उस नामज़ का कफ़्फ़ारा ये है कि जब उसे याद आए, वह उस नमाज़ को पढ़ ले।

-सहीह मुस्लिम 


✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया 
30 अगस्त से 10 सितंबर तक जेपीसी को वक़्फ़ तरमीमी बिल के ख़िलाफ़ सिर्फ 51 लाख 61 हज़ार 440 ऑनलाइन दरख़ास्तें मौसूल हुई थीं जिसे मुस्लिम तन्ज़ीमों की जानिब से मुसलमानाने हिंद की जानिब से मायूसकुन एहतिजाज क़रार दिया जा रहा था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जमई उल्मा हिंद की जानिब से बिल की मुख़ालिफ़त में जेपीसी को ईमेल और वाट्स एप के ज़रीया ऑनलाइन दरख़ास्तें करने बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई जा रही है, इसके बावजूद 25 करोड़ की आबादी होते हुए भी सिर्फ 51 लाख ऑनलाइन दरख़ास्त की गई। 
    ग्यारह सितंबर को अचानक बिल की मुख़ालिफ़त में जेपीसी को मुल्क भर से 30 लाख से ज़ाइद दरख़ास्तें की गई। यानी ग्यारह सितंबर दोपहर तक दरख़ास्तों की तादाद 82 लाख 70 हज़ार 231 हो गई। ये आदाद-ओ-शुमार मुस्लिम तन्ज़ीमों के लिए हौसला बढ़ाने वाले तसव्वुर किए जा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि मुसलमानाने हिंद इसी रफ़्तार से अगर बिल की मुख़ालिफ़त में ऑनलाइन दरख़ास्तें करेंगे तो उसके मुसबत (पाजीटिव) नताइज सामने आएंगे। 
    उल्मा-ओ-दानिशवरों की जानिब से अपील की जा रही है कि, मुस्लिम तन्ज़ीमों की हिदायत के मुताबिक़ तैयार करदा फॉर्मेट के ज़रीये जवाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (जेपीसी) को अपनी राय ज़्यादा से ज़्यादा भेजें। मुस्लिम दानिशवरों का ऐसा ख़्याल है कि वक़्फ़ तरमीमी बिल के ख़िलाफ़ जेपीसी को रवाना की गई ऑनलाइन दरख़ास्तों की तादाद मुस्लमानों की आबादी के तनासुब से काफ़ी कम है, ताहम ग्यारह सितंबर के आदाद-ओ-शुमार से ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बहुत जल्द दरख़ास्तों की तादाद करोड़ों में होगी। मुस्लमानों के एक बड़े तबक़ा को तशवीश लाहक़ है कि क्या वक़्फ़ तरमीमी बिल के ख़िलाफ़ एक जैसी राय होने के सबब इसे रद्द कर दिया जाएगा। क्योंकि इस ज़िमन में मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जमई उल्मा या दीगर तन्ज़ीमों की जानिब से जो क्यूआर कोड जारी किया गया है, उसमें महिज़ स्कैन कर के उसे जेपीसी को रवाना करना है। इसी पर अमल करते हुए ईमेल रवाना किए जा रहे हैं। 

    मुस्लमानों की इस तशवीश पर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमई उल्मा हिंद ने ग़ौर नहीं किया है। उनके मुताबिक़ वकीलों से बातचीत और मश्वरा करने पर ये वाज़िह हुआ है कि फॉर्मेट और मज़मून यकसाँ रहने से कोई मनफ़ी (निगेटिव) असर नहीं पड़ेगा क्योंकि फॉर्मेट और मज़मून भले ही यकसाँ है लेकिन उसे रवाना करने वाले अलग अलग लोग हैं और उनके नंबरात और ईमेल आई डी भी हैं।



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