सौ से जाईद लड़कियों को बनाया शिकार
इस्मतदरी के बाद बनाई लड़कियों की वीडियो
कुछ ने खुदकशी कर ली तो कुछ ने शहर ही छोड़ दिया
पाक्सो कोर्ट नंबर 2 ने गुजिश्ता मंगल को बाक़ी छः मुल्ज़िमान को 1992 के मुल्क के मशहूर फहश ब्लैकमेलिंग केस में क़सूरवार पाते हुए मुल्ज़िम को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है। अदालत ने फ़रीक़ैन को सुनने के बाद मुल्ज़िमान सय्यद नफ़ीस चिशती, इक़बाल भट्टी, सलीम चिशती, सुहेल ग़नी, ज़मीर और नसीम उर्फ़ टारज़न को मुजरिम क़रार दिया। आपको बता दें कि इससे पहले ये तमाम 6 मुल्ज़िमान ज़मानत पर थे। साथ ही ये मुल्ज़िमान माज़ी में भी जेल में रह चुके हैं। इनमें सय्यद नफ़ीस चिशती 8 साल से जेल में हैं, मुंबई के रिहायशी इक़बाल भट्टी साढे़ 3 साल से जेल में हैं, सुहेल ग़नी 4 साल से जेल में हैं, ज़मीर (जेल में नहीं हैं), नसीम 7 साल और सलीम चिशती 7 साल से जेल में हैं। अदालत ने इससे कब्ल इशरत, अनवर चिशती, शमशवि बिश्ती और पुतन इलाहाबादी फहश तसावीर और ब्लैक मेल केस में उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। उसके बाद उन्हें सुप्रीमकोर्ट ने 10 साल की सज़ा सुनाई। इसी तरह केस के मर्कज़ी मुल्ज़िम सय्यद फ़ारूक़ चिशती को भी अदालत ने 2007 में उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी जिसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने फ़ारूक़ चिशती को 10 साल क़ैद की सज़ा सुनाई। साल 2001 में महेश लवधानी, हरीश तूलानी, कैलाश सोनी और परवेज़ अंसारी को अदालत ने फहश तसावीर ब्लैक मेल केस से बरी कर दिया था। मुल्ज़िम अल्मास महाराज अब तक मफ़रूर (फरार) है।
बताया जा रहा है कि अल्मास महाराज केस में नाम सामने आने के बाद अमरीका फ़रार हो गए थे जहां उन्होंने अमरीकी शहरीयत भी हासिल कर ली है। मफ़रूर होने के बावजूद उनके ख़िलाफ़ चार्ज शीट अदालत में पेश कर दी गई है, लेकिन इस पर अब तक फ़ैसला नहीं हो सका है। अजमेर में यूथ कांग्रेस के इस वक़्त के सदर फ़ारूक़ चिशती, उनके साथी नफ़ीस चिशती और उनके हव्वारियों ने स्कूल और कॉलेज की लड़कीयों का शिकार किया था। लड़कियों को पार्टियों के नाम पर फ़ार्म हाऊस और रेस्तोरानों में बुलाया गया, नशा आवर चीज़ पिलाई गई और फिर इजतिमाई इस्मतदरी की गई। इस दौरान उनकी फहश तसावीर ली गईं। उसके बाद इन फहश तसावीर की बुनियाद पर लड़कियों को दूसरी लड़कियां लाने पर मजबूर किया गया।
मुक़द्दमा दर्ज होने से पहले कुछ लड़कियां हिम्मत कर पुलिस के पास गई थीं लेकिन पुलिस ने इन मुतास्सिरा लड़कियों के ख़ाली बयानात लेकर उन्हें रुख़स्त कर दिया। बाद में इन मुतास्सिरीन को धमकियां मिलती रहीं। इसलिए वो दुबारा पुलिस के सामने आने की हिम्मत नहीं कर सकी। उसके बाद अवामी शर्मिंदगी के ख़ौफ़ से कोई भी सामने आकर पुलिस से शिकायत करने को तैयार नहीं हुआ। उसी बीच 18 मुतास्सिरीन ने मुल्ज़िमान के ख़िलाफ़ अदालत में बयानात दिए।
साल 1992 में अजमेर की एक कलर लैब से कुछ फहश तसावीर लीक हुईं। ये तस्वीर शहर भर में वाइरल होने लगी। उसके बाद पुलिस ने मुक़द्दमा दर्ज किया और फहश तस्वीर की छानबीन की और इस घिनौने जुर्म और साज़िश का पर्दा फ़ाश हुआ। फहश तसावीर ब्लैक मेल करने के स्कैंडल में 100 से ज़ाइद लड़कीयों को ज़्यादती का निशाना बनाया गया। मुल्ज़िमान की ग़ुंडा गर्दी और उनके आला राबतों की वजह से मुक़द्दमा दर्ज होने के बाद भी किसी लड़की ने आगे आने की हिम्मत नहीं दिखाई। उसके बाद पुलिस ने तस्वीरों की बुनियाद पर मुतास्सिरीन की तलाश शुरू की। इस्मतदरी और ब्लैकमेलिंग का शिकार होने वाली कुछ लड़कीयों ने ख़ुदकुशी कर ली। कुछ ने खामोशी से शहर ही छोड़ दिया। पुलिस ने बड़ी मेहनत से कुछ मुतास्सिरीन के बयानात कलमबंद किए और मुक़द्दमे का चालान अदालत में पेश किया।
फहश तस्वीर ब्लैक मेल करने का स्कैंडल ऐसे वक़्त में सामने आया जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद को लेकर पूरे मुल्क में सियासत गर्म थी। वहां फ़िर्कावाराना माहौल बना हुआ था। फ़सादाद के ख़दशे के पेश-ए-नज़र अजमेर पुलिस ने केस को ज़ेर इलतिवा रखा। उस वक़्त भैरव सिंह शेखावत हुकूमत ने केस की तहक़ीक़ात सीआईडी सीबी को सौंपने का फ़ैसला किया। उसके बाद पुलिस को मुआमले में केस दर्ज करना पड़ा। केस से मुताल्लिक़ तसावीर मंज़र-ए-आम पर आने के बाद शहर में लड़कियों की ख़ुदकुशी के कई वाक़ियात सामने आए। ये बराह-ए-रास्त नहीं कहा जा सकता कि लड़कियों की खुदकशी का इस वाक़िया से कोई ताल्लुक़ था क्योंकि ना तो उन्होंने कोई सुईसाईड नोट छोड़ा और ना ही उनके घर वालों ने इस वाक़िया के हवाले से कोई बयान दिया था।
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