✅ मुहम्मद जाकिर हुसैन : भिलाई
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ग्रुप सेंटर ने पूरे 47 सालों बाद शहर में अपने स्वामित्व की भूमि पर स्वतंत्रता दिवस मनाया। राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ ही सीआरपीएफ ने आसपास के स्कूली बच्चों को मिठाई बांटी। स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण के अवसर पर सीआरपीएफ की ओर से असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर कमल सिंह, हेड कांस्टेबल योगेश अवस्थी और अरूप संतरा तथा कांस्टेबल धरमवीर कुमार यादव उपस्थित थे।उल्लेखनीय है कि नेहरू नगर क्रिश्चियन कब्रिस्तान के पीछे स्थित एफ/46 बटालियन द्वारा जून 1972 में ध्वाजारोहण के लिए ध्वज स्तंभ बनाया गया था। तब 15 अगस्त 1972 को सीआरपीएफ अजमेर रेंज के डीआईजी टीआर जाटले ने ध्वजारोहण के साथ इसकी शुरुआत की थी। तब से यह ध्वज स्तंभ अब तक मौजूद है। सीआरपीएफ ने इस जमीन पर आखिरी बार 15 अगस्त 1977 को राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। इसके बाद यहां पदस्थ 17 लोगों को असम-मणिपुर राज्यों में विशेष अभियान पर भेज दिया गया था।
करीब 26 साल बाद 2003 में छत्तीसगढ़ की नक्सल समस्या के उन्मूलन के लिए सीआरपीएफ को बुलाया गया। इस दौरान ज्यादातर लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि भिलाई में बल के पास 250 एकड़ जमीन है। ऐसे में जब सीआरपीएफ का ग्रुप सेंटर बनाने रायपुर और बिलासपुर में जमीन तलाशने उच्च स्तरीय बैठक हो रही थी, वहां मौजूद एक अफसर ने भिलाई में 250 एकड़ जमीन होने की जानकारी दी। इसके बाद बल के अफसर भिलाई पहुंचे और नक्शे व दस्तावेजों के आधार पर जमीन तलाशी गई। लेकिन इस अवधि में ज्यादातर जमीन पर अवैध कॉलोनियां बस चुकी थी। इसके बाद से सीआरपीएफ के अफसर अपनी खोई जमीन वापस पाने भिलाई स्टील प्लांट, नगर पालिका निगम भिलाई, नगर पालिका निगम दुर्ग और जिला प्रशासन दुर्ग सहित छत्तीसगढ़ शासन के चक्कर लगा रहे हैं।
इस 250 एकड़ में फिलहाल 6 अक्टूबर 2018 से सीआरपीएफ के कब्जे में सिर्फ 07.50 एकड़ भूमि ही है जिसकी रजिस्ट्री करने भिलाई स्टील प्लांट अब तक तैयार नहीं हुआ है।
उल्लेखनीय है कि भिलाई शहर में सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर की स्थापना के लिए इस क्षेत्र में 23 फरवरी 1971 को कुल 250 एकड़ जमीन भिलाई स्टील प्लांट से खरीदी गई थी। जिसमें तब के आमदी गांव की 248.36 एकड़ और कातुलबोड गांव की 1.64 एकड़ सहित कुल 250 एकड़ जमीन 2 लाख 19 हजार 236 रूपए 53 पैसे में ली गई थी जिसका भुगतान 23 फरवरी 1971 को किया गया जिसके बाद बीएसपी ने 18 अप्रैल 1972 को सीआरपीएफ को जमीन सौंपी। सीआरपीएफ की ओर से तब यहां पदस्थ सब इंस्पेक्टर कैलाश सिंह (अब दिवंगत) ने बीएसपी मैनेजमेंट से विधिवत इस जमीन का आधिपत्य लिया था। लेकिन बाद के दौर में यहां मिलीभगत से नेहरू नगर (पश्चिम), स्टील कॉलोनी, मॉडल टाउन, स्मृति नगर, इंदिरा कालोनी विकसित कर दी गई।
जिसमें विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) और वर्तमान नगर पालिका निगम के मुताबिक तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन से 24 अप्रैल 1991 को एक अप्रूवल लिया गया था। सीआरपीएफ ने तब की राजधानी भोपाल से जारी इस अप्रूवल की वैधता पर सवाल उठाए हैं। बल के अफसरों का कहना है कि आखिर उनके द्वारा 52 साल पहले जमा की गई 2 लाख 19 हजार 236 रूपए 53 पैसे तो जमा कर दिए थे लेकिन बाद में सीआरपीएफ की जमीन पर जिस कथित अप्रूवल के आधार पर कालोनियां बसाई गई, उसकी राशि कहां गई?
इसका हिसाब बीएसपी और साडा-निगम की ओर से अब तक नहीं दिया गया है। यहां यह भी गौरतलब है कि विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) को भिलाई स्टील प्लांट के आधिपत्य की 1920 एकड़ जमीन दी गई थी, जो गठन के दौरान भिलाई तीन से नेहरू नगर पूर्व तक स्थित है। इस 1920 एकड़ का आधिपत्य साडा ने 4 अप्रैल 1978 को लिया था लेकिन बाद में नेहरू नगर पूर्व के आगे की सीआरपीएफ की जमीन पर वर्ष 1979, 80, 81 और अब तक अपना बता कर तत्कालीन साडा और आज का नगर पालिका निगम भिलाई और नगर पालिका निगम दुर्ग अवैध रूप से कालोनियां बसा रहा है। इस पर दोनों नगर पालिका निगम मौन है।
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