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पहले वर्ल्ड वार में ब्रिटेन की ओर से 25 लाख तो दूसरे वर्ल्ड वार में 55 लाख मुस्लिमों ने लड़ी थी जंग

शव्वाल -1445 हिजरी

हदीस-ए-नबवी ﷺ

'' जब तुम अपने घर वालों के पास जाओ तो उन्हें सलाम करो। इससे तुम पर और तुम्हारे घर वालों पर बरकतें नाजिल होंगी। ''

- तिरमिजी शरीफ

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पहले और दूसरे वर्ल्ड वार में बरतानिया की ओर से लड़ने वाले मुस्लिम फौजियों के लिए स्टाफोर्ड में बनेगा वार मेमोरियल 
इससे मुल्क में कम्यूनिटी के दरमियान हम-आहंगी को बेहतर बनाने व नौजवान नसल को तालीम देने का मिलेगा मौका

पहले और दूसरे वर्ल्ड वार में बरतानिया की ओर से लड़ने वाले मुस्लिम फौजियों के लिए स्टाफोर्ड में बनेगा वार मेमोरियल
                                                                                               - file photo

✅ लंदन : आईएनएस, इंडिया

बर्तानिया उन लाखों मुसलमान फ़ौजियों के लिए एक जंगी यादगार तामीर करवा रहा है जिन्होंने दो आलमी जंगों (विश्व युद्ध) के दौरान बर्तानवी और दौलत-ए-मुश्तरका (राष्ट्र मंडल) की फौज के साथ ख़िदमात अंजाम दिए। 
    स्काई न्यूज़ का हवाले से बताया गया है कि 13.2 मीटर ऊंची यादगार स्टाफोर्ड में नेशनल मेमोरियल आरबोर्टम में क़ायम की जाएगी। ईंटों और टेराकोटा से बनाई जाने वाली इस यादगार पर फौजियों की ज़ाती कहानियां कुंदा की जाएँगी। पहली जंग-ए-अज़ीम के दौरान तक़रीबन 25 लाख मुस्लमान फौजियों और मज़दूरों ने इत्तिहादी ताक़तों की फ़ौज में ख़िदमात अंजाम दी थी। इसी तरह दूसरी जंग-ए-अज़ीम में उनकी तादाद तक़रीबन 55 लाख थी। यादगार के आर्कीटेक्ट बीनी ओ लोउनी ने कहा कि आईडीया ये है कि जैसे ही आप यादगार के क़रीब पहुंचेंगे ये आपको अपनी तरफ़ खींचेगी और आप इसमें मज़ीद तफ़सील, मज़ीद मालूमात और मज़ीद क्रा़फ्ट देख सकेंगे। आयडिया ये भी है कि 1914 की जंग-ए-अज़ीम में मुस्लमान फ़ौजियों की ख़िदमात का एक पैनोरमा दिखाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस डिज़ाइन के लिए तहरीक, जिसमें इस्लामी ख़त्ताती शामिल है, बर्र-ए-सग़ीर पाक-ओ-हिंद के सफ़र से हासिल हुई है। 
    यादगार एक ऐसी जगह पर तामीर की जाएगी जिसमें सिखों, गोरखों और दीगर फ़ौजियों की यादगारें पहले से मौजूद हैं। नाटिंघम से ताल्लुक़ रखने वाले एक डाक्टर इर्फ़ान मलिक, जिनके आबाओ अज्दाद ने दोनों आलमी जंगों में ख़िदमात अंजाम दी थी, ने कहा कि मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब हम कामयाबी के क़रीब हैं, ताकि हम दोनों अज़ीम जंगों में आलमी सतह पर मुस्लमानों के तआवुन और मुस्लमान फौजियों की इस भूली हुई तारीख़ को याद रख सकें। उन्होंने कहा कि मेरे दोनों परदादा और परनाना कैप्टन ग़ुलाम मुहम्मद और सूबेदार मुहम्मद ख़ान जंग-ए-अज़ीम का हिस्सा थे और मेरे दोनों दादा और नाना दूसरी जंग-ए-अज़ीम का हिस्सा भ्ज्ञी थे। दोनों बर्मा में ख़िदमात अंजाम दे रहे थे। 
    उनके मुताबिक़ उनका ताल्लुक़ दोलमयाल गांव से था, जो मौजूदा पाकिस्तान के पंजाब में वाके है। ये एक बहुत मशहूर फ़ौजी गांव है। डाक्टर इर्फ़ान मलिक ने कहा कि ये यादगार 'उन जंगों में दी गई क़ुर्बानीयों की याद की अलामत के तौर पर काम करेगी और इस मुल्क में कम्यूनिटी के दरमयान हम-आहंगी को बेहतर बनाने के लिए हमारी नौजवान नसल को तालीम देने का एक मौक़ा भी फ़राहम करेगी।

सद्दाम हुसैन की बेटी ने वालिद की जेल में लिखी याददाश्तों को सामने लाया 

दुबई : साबिक़ इराक़ी सदर सद्दाम हुसैन की बेटी रगद सद्दाम ने सोशल मीडिया पर अपने वालिद की निजी याददाश्तों के कुछ सफ़हात की तसावीर पोस्ट की है। ये याददाश्तें सद्दाम हुसैन ने अमरीकी जेल में अपने हाथों से लिखी हैं। 
    रगद सद्दाम ने अपनी पोस्ट के साथ 40 तसावीर मुंसलिक कीं और कहा कि ये मेरे वालिद इराक़ के सदर की याददाश्तों का एक बहुत छोटा हिस्सा हैं। अपने वालिद को मुखातिब करते हुए उन्होंने अपने वालिद के मदाहों (प्रशंसकों) को याददाश्तें वक़्फ़ करते हुए कहा हम उनके लिए आपकी अपने हाथ लिखी याददाश्तें वक़्फ़ करते हैं जो आपने उस वक़्त लिखी थीं, जब आप इराक़ में अमरीकी हिरासत में थे। वाजेह रहे कि अमरीका ने मार्च 2003 में इराक़ पर हमला किया था। उस वक़्त अमरीकी सदर जॉर्ज डब्लयू बुश ने कहा था कि वो सद्दाम हुसैन की दहश्तगर्दी की हिमायत को ख़त्म करना चाहते हैं। 
    1979 से जिस मुल्क पर वो हुकूमत कर रहे हैं, उस पर फ़िज़ाई हमलों में शिद्दत आने के बाद इराक़ी सदर फ़रार हो गए थे। महीनों बाद अमरीकी फ़ौजियों ने वस्त इराक़ के इलाक़े अलदूर में उन्हें एक छोटे से ज़र-ए-ज़मीन सुराख़ में छिपा हुआ पाया और गिरफ़्तार कर लिया था। सद्दाम हुसैन पर जंगी जराइम, नसल कुशी और इन्सानियत के ख़िलाफ़ जराइम समेत मुतअद्दिद इल्ज़ामात के तहत मुक़द्दमा चलाया गया और नवंबर 2006 में उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी गई थी और उसी साल 30 दिसंबर को उन्हें फांसी दे दी गई थी।

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