हिन्दुस्तानी नौजवानों में कैंसर के बढ़ रहे हैं मामले (सेहत)

शव्वाल -1445 हिजरी

हदीसे नबवी ﷺ 
तकदीर का लिखा टलता नहीं

'' हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल करो और अल्लाह ताअला से मदद चाहो, और हिम्मत मत हारो और अगर तुम पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कहो कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कहो कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसे मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। '' 
- मुस्लिम शरीफ

 -------------------------------

हिन्दुस्तानी नौजवानों में कैंसर के बढ़ रहे हैं मामले (सेहत)

✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया

ग़ैर मुतअद्दी अमराज़ हिन्दोस्तान में तेज़ी से बढ़ रहे हैं, ब शमूल कैंसर, ज़ियाबीतस, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी और दिमाग़ी सेहत के मामले सामने आ रहे हैं। सूरत-ए-हाल ये है कि हर चार में से एक शख़्स को ज़ियाबीतस होने का ख़तरा है। अलावा इसके तीन में से दो अफ़राद को हाई ब्लड प्रैशर है और 10 मैं से एक को मुस्तक़बिल में डिप्रेशन का ख़तरा है। 
    ये इन्किशाफ़ (खुलासा) आलमी यौमे सेहत से एक निजी हेल्थ सर्विस प्रोवाईड्र ने मुल्कभर के अपने हस्पतालों में आने वाले मरीज़ों की बुनियाद पर तैयार की गई हेल्थ आफ़ नेशन रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट में कम उमरी में प्री ज़ियाबीतस, प्री हाई ब्लड प्रैशर और दिमाग़ी सेहत के अमराज़ की पेशगोई की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक़ हिन्दोस्तान में ना सिर्फ कैंसर के केसिज़ में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है बल्कि ये भी पाया गया है कि औसतन नौजवान नसल उसका ज़्यादा शिकार है। ख़वातीन में सबसे ज़्यादा आम कैंसर छाती, ग्रीवा और बच्चादानी का हैं। फेफड़ों, मुँह और प्रोस्टेट कैंसर मर्दों में सबसे ज़्यादा पाया जाता है। 
    हिन्दोस्तान में छाती के कैंसर की तशख़ीस की उम्र 52 साल है जबकि अमरीका और यूरोप में ये 63 साल है। इसी तरह फेफड़ों के कैंसर की तशख़ीस की औसत उम्र 59 साल है जबकि मग़रिबी ममालिक में ये औसत 70 साल है। इससे पता चलता है कि हिन्दोस्तान में कैंसर की तशख़ीस छोटी उम्र में हो रही है। रिपोर्ट में बताया गया कि मुल्क में मोटापे का फैलाव 63 प्रतिशत तेज़ी से बढ़ रहा है। ईलाज के लिए अस्पताल पहुंचने वाले चार में से तीन मरीज़ मोटापे का शिकार पाए गए। रिपोर्ट में ये भी इन्किशाफ़ हुआ कि 90 फ़ीसद ख़वातीन और 80 फ़ीसद मर्दों में कमर से कूल्हे का तनासुब तजवीज़ करदा से ज़्यादा था। हाई ब्लड प्रैशर के वाक़ियात 2016 में 9 फ़ीसद से बढ़कर 2023 में 13 फ़ीसद होने की तवक़्क़ो है। इसके अलावा 10 मैं से एक मरीज़ को ज़ियाबीतस का मर्ज़ बेक़ाबू है। बे-ख़्वाबी के मसले के बारे में बात करें तो चार में से एक शख़्स को इसका ख़तरा होता है। नींद ना आने का मसला ख़वातीन के मुक़ाबले मर्दों में ज़्यादा पाया जाता है। 
    रिपोर्ट में कहा गया है कि हिन्दोस्तान में हेल्थ स्क्रीनिंग तक रसाई बढ़ाने की ज़रूरत है। लोग आज पहले से कहीं ज़्यादा जामा हैल्थ चैक अप का इंतिख़ाब कर रहे हैं, जो लोगों की सेहत और बहबूद के तहफ़्फ़ुज़ की जानिब एक मुसबत (पाजीटिव) क़दम है।

डाक्टरों का वक़्त जाया करने वाले मरीज़ों पर पाँच यूरो जुर्माना

हिन्दुस्तानी नौजवानों में कैंसर के बढ़ रहे हैं मामले (सेहत)
पेरिस : फ़्रांस में एपायमेंट लेकर डाक्टर के पास ना जाने वाले मरीज़ों को जुर्माना अदा करना होगा। डाक्टरों की मर्कज़ी यूनीयन के मुताबिक़ मरीज़ों के वक़्त पर ना आने के सबब हर साल सत्ताईस मिलियन अपवाईंटमेंटस जाया हो जाती हैं। जिसकी वजह से डाकटरों का खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। 
    फ़्रांसीसी वज़ीर-ए-आज़म गेबरीयल एटाल ने अपने एक बयान में कहा है कि फ़्रांस ऐसे लोगों के लिए पाँच यूरो जुर्माना मुतआरिफ़ कराएगा जो हर साल लाखों डाक्टरों की अपवाइंटमंटस ज़ाए कर देते हैं। वज़ीर-ए-आज़म के मुताबिक़ जुर्माना आइद करने के इक़दाम से दीगर मरीज़ों के लिए पंद्रह ता बीस मिलियन अपवाइंटमंटस को बचाया जा सकता है। ये जुर्माना हुकूमत के उन मुतअद्दिद इक़दामात में से एक है, जिसका ऐलान वज़ीर-ए-आज़म ने सेहत की ख़िदमात को फ़रोग़ देने के लिए किया था। 
    पेरिस हुकूमत सेहत के शोबा में उम्र रसीदा अफ़राद और बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए जद्द-ओ-जहद कर रही है। फ़्रांसीसी वज़ीर-ए-आज़म ने डाक्टरों की मर्कज़ी यूनीयन का हवाला देते हुए कहा कि मुल्क में हर साल डाक्टरों की अपवाइंटमंट के बावजूद मरीज़ों के ना आने की वजह से सत्ताईस मिलियन अपवाइटमंटस ज़ाए हो जाती हैं। हम इस बात की हरगिज़ इजाज़त नहीं दे सकते। एटाल के मुताबिक़ इस इक़दाम से दीगर मरीज़ों के लिए पंद्रह ता बीस मिलियन अपवाइंटमंटस को बचाया जा सकता है। उन्होंने मज़ीद कहा कि ज़िम्मेदारी के तरीका-ए-कार की इजाज़त देने वाला क़ानून पार्लियामेंट में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हर वो शख़्स जो अपवाइंटमंट के मुक़र्ररा वक़्त पर आने में नाकाम रहेगा या जो 24 घंटे से कम वक़्त का नोटिस देगा, उसे ये जुर्माना अदा करना होगा। ताहम, अगर कोई मरीज़ चैक अप के लिए ना आने का माक़ूल जवाज़ पेश करता है तो डाक्टरज़ इन्फ़िरादी तौर पर फ़ैसला कर सकेंगे कि उस शख़्स पर जुर्माना आइद होना चाहिए या नहीं। इस तजवीज़ को जनरल प्रेक्टिशनर्ज़ की मर्कज़ी यूनीयन, एमजी फ़्रांस ने तन्क़ीद का निशाना बनाया, जिनका कहना है कि ये मसले का हल नहीं है क्योंकि स्पैशलिस्टस की भी उतनी ही कमी है, जितनी जनरल डाक्टरज़ की। 

बूढ़े लोगों के मुकाबले अब नौजवान रहते हैं कम खुश

सोशल मीडिया के साईड इफेक्ट : नौजवान अलग ही दुनिया में गुम हो रहे

लंदन : हालिया बरस नौजवानों के लिए बहुत मुश्किल हैं। कारोबार-ए-ज़िंदगी की कठिन जद्द-ओ-जहद से लेकर उन्हें जंगों और आफ़ात तक का सामना है। एक नई तहक़ीक़ से मालूम हुआ है कि नौजवान बड़ी उम्र की नसलों के मुक़ाबले में कम ख़ुश हैं ताहम उसकी वजह आफ़ात नहीं हैं। 
    चीफ़ अमरीकी डाक्टर ने वज़ाहत की कि हालिया बरसों में सोशल मीडीया को बेहतर तरीक़े से रेगूलेट करने में हुकूमतों की नाकामी से नौजवान नसल का ज़हनी सुकून मुतास्सिर हुआ है। डाक्टर विवेक मूर्ती ने इन्किशाफ़ किया कि नई आलमी तहक़ीक़ ने वज़ाहत की कि किस तरह नौजवान लोग बड़ी उम्र की नसलों के मुक़ाबले में कम ख़ुश हैं क्योंकि वो मिड लाइफ बोहरान (संकट) का सामना कर रहे हैं। चीफ़ अमरीकी डाक्टर ने मुतनब्बा (सचेत) किया कि नौजवान वाक़ई तकलीफ़ में हैं, इस बात पर-ज़ोर देते हुए कि बच्चों को सोशल मीडीया इस्तिमाल करने की इजाज़त देना, उन्हें ऐसी दवा देने के मुतरादिफ़ है, जो महफ़ूज़ साबित नहीं हुई है। 
    गार्डियन अख़बार के मुताबिक़ मूर्ती ने ये भी कहा कि नए आदाद-ओ-शुमार से पता चलता है कि पूरे शुमाली अमरीका में नौजवान अब बूढ़े लोगों के मुक़ाबले में कम ख़ुश हैं, इसी तरह की तारीख़ी तबदीली मग़रिबी यूरोप में भी मुतवक़्क़े है। 2024 की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में इन्किशाफ़ (खुलासा) किया गया है कि 30 साल से कम उमर अफ़राद की सेहतमंदी में कमी ने अमरीका को सबसे ज़्यादा ख़ुश रहने वाले ममालिक की फेहरिस्त से बाहर निकाल दिया है। 12 साल के बाद जिसमें 15 से 24 साल की उम्र के लोगों को अमरीका में पुरानी नसलों के मुक़ाबले ज़्यादा ख़ुश रहने के तौर पर मापा गया था, ऐसा लगता है कि 2017 में ये रुजहान पलट गया है। उनका ख़्याल है कि मग़रिबी यूरोप में भी ये फ़र्क़ कम हो गया है, यही तबदीली अगले एक या दो साल में वहां भी हो सकती है। मूर्ती ने रिपोर्ट के नताइज को सुर्ख़ पर्चम के तौर पर बयान किया कि नौजवान वाक़ई अमरीका में और अब पूरी दुनिया में तेज़ी से जद्द-ओ-जहद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वो अब भी ऐसे आदाद-ओ-शुमार देखने का इंतिज़ार कर रहे हैं, कि सोशल मीडीया प्लेटफार्म बच्चों और नौउम्रों के लिए महफ़ूज़ हैं, और नौजवानों के लिए हक़ीक़ी ज़िंदगी के समाजी राबतों को बेहतर बनाने के लिए बैन-उल-अक़वामी इक़दाम पर-ज़ोर दिया। 
    उन्होंने कहा कि ये सूचना कि दुनिया के कुछ हिस्सों में बच्चे पहले ही दरमयानी ज़िंदगी के बोहरान के मुसावी (समतुल्य) तजुर्बा कर रहे हैं, फ़ौरी पालिसी कार्रवाई का मुतालिबा करता है। मूर्ती ने कहा कि अमरीकी नौजवान औसतन रोज़ाना तक़रीबन पाँच घंटे सोशल मीडीया पर गुज़ारते हैं और उनमें से एक तिहाई हफ़्ते की रातों में आधी रात तक अपने आलात पर जागते हैं। उन्होंने सोशल मीडीया से नौजवानों को पहुंचने वाले नुक़्सान को महिदूद करने के लिए क़ानूनसाज़ी का मुतालिबा किया है, जिसमें ये पाबंदी भी शामिल है कि बटन और लामहदूद स्क्रोल जैसी ख़सुसीआत को हटा दें। सोशल मीडीया के बढ़ते इस्तिमाल, आमदनी में अदम मुसावात, मकानात के बोहरान, जंग और मौसमियाती तबदीली के बारे में तशवीश को इसकी वजूहात में से समझा जाता है



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ