शअबान उल मोअज्जम-1445 हिजरी
हदीसे नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लमतकदीर का लिखा टलता नहीं
'' हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल कर और अल्लाह ताअला से मदद चाह, और हिम्मत मत हार और अगर तुझ पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कह कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कह कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसके मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। ''---------------------------------
जमई उल्मा हिंद के क़ौमी सदर मौलाना अरशद मदनी ने हल्द्वानी तशद्दुद के बारे में कहा कि इस मुश्किल वक़्त में जमईयत हल्द्वानी में पुलिस की फायरिंग और बरबरीयत का शिकार होने वाले लोगों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है। जमईयत ने वहां इमदाद और रीलीफ़ का काम शुरू कर दिया है।
मौलाना मदनी ने हल्द्वानी में पुलिस कार्रवाई की सख़्त मुज़म्मत करते हुए इल्ज़ाम लगाया कि पुलिस की ज़ुलम-ओ-बरबरीयत की एक तवील तारीख़ है। उन्होंने कहा कि मुलियाना हो या हाशिमपूरा, मुरादाबाद हो या हल्द्वानी, हर जगह पुलिस का एक ही चेहरा नज़र आता है। पुलिस का काम अमन-ओ-अमान बरक़रार रखना, लोगों की जान-ओ-माल की हिफ़ाज़त करना है। लेकिन पुलिस ऐसा नहीं कर रही है। जमई उलमाए हिंद के तर्जुमान मौलाना फ़ज़ल अल रहमान क़ासिमी ने हल्द्वानी वाक़िया के हवाले से मौलाना अरशद मदनी का बयान जारी किया है। जमई उल्मा हिंद के क़ौमी सदर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि ये इंतिहाई बदक़िस्मती की बात है कि पुलिस अमन बरक़रार रखने के बजाय अक़ल्लीयतों बिलख़सूस मुस्लमानों के साथ एक पार्टी जैसा सुलूक करती है।
मौलाना मदनी ने कहा कि याद रखना चाहिए कि इन्साफ़ का दोहरा मयार ही तबाही का रास्ता खोलता है। लिहाज़ा क़ानून का मेयार सब के लिए बराबर होना चाहिए और किसी शहरी के साथ मज़हबी बुनियादों पर इमतियाज़ी सुलूक नहीं होना चाहिए। मौलाना मदनी ने कहा कि ना तो मुल्क का आईन और ना ही क़ानून मज़हबी इमतियाज़ की इजाज़त देता है। उन्होंने कहा कि मुल़्क, ख़ौफ़ और दहश्त पर नहीं बल्कि इन्साफ़ की बुनियाद पर चलता और तरक़्क़ी करता है। अगर मुल्क की एक बड़ी आबादी ग़ैर महफ़ूज़ महसूस करने लगे तो ये इंतिहाई ख़तरनाक और मायूसकुन है।
मौलाना मदनी ने कहा कि याद रखें कि किसी भी मुल्क की तरक़्क़ी का मेयार जमहूरी निज़ाम और मुसावात से ही तै किया जा सकता है। सिर्फ दावे करने से कुछ नहीं होता। मौलाना मदनी ने कहा कि फ़िर्कापरस्ती और मज़हब की बुनियाद पर नफ़रत पैदा करने की वजह से मुल्क के हालात इंतिहाई मायूसकुन और मोहलिक हो चुके हैं। उन्होंने ये भी कहा कि हमें मायूस होने की ज़रूरत नहीं है, वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता। इमतिहान की घड़ियाँ ऐसे ही मुआशरे पर आती रहती हैं। मुस्लमान दुनिया में ख़ुश रहने नहीं आया। मुस्लमान चौदह सौ साल से इसी हालत में ज़िंदा हैं और कयामत तक ज़िंदा रहेगा। मुस्लमानों को अपने हौसले बुलंद रखने चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक दुनिया रहेगी, अल्लाह अल्लाह कहने वाले लोग होंगे।