14 जीअकादा 1444 हिजरी
इतवार, 4 जून 2023
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भुवनेश्वर : आईएनएस, इंडिया उड़ीसा हाईकोर्ट ने वाजेह किया है कि मुस्लमान, मुस्लिम पर्सनल ला के तहत नाबालिग बच्चों को गोद लेने की कोशिश नहीं कर सकते हैं और उन्हें जुवीनाईल जस्टिस (बच्चों की देख-भाल और तहफ़्फुज (जेजे एक्ट) के तहत दी गई हिदायात पर सख़्ती से अमल करना चाहिए। अदालत ने आगे कहा कि ये दुरुस्त है कि एक मुस्लमान बच्चे को गोद ले सकता है, लेकिन उन्हें जेजे एक्ट और उसके तहत बनाए गए कवानीन के तहत वजा करदा सख़्त तरीका-ए-कार पर अमल करना होगा। इसलिए आम तौर पर इस्लामी ममालिक में बच्चों को गोद लेने के बजाय सरपरस्ती फराहम की जाती है। इस तरह हम समझते हैं कि गोद लेने का दावा कानून में पायदार नहीं है। दरखास्त गुजार ने अपनी नाबालिग बेटी की तहवील को बहाल करने के लिए ये रिट पिटीशन दायर की थी। बताया गया है कि नाबालिग, जिसकी उम्र इस वक़्त तकरीबन 12 साल है, को साल 2015 से मुद्दा अलैह ने गै़रकानूनी हिरासत में रखा हुआ है। जवाब दहिंदा नंबर 6, 9 और 11 बिलतर्तीब दरखास्त गुजार की बहन, भांजी और दामाद (भांजी का शौहर) हैं। दरखास्त में कहा गया कि दरखास्त गुजार की जानिब से कई बार कोशिशों के बावजूद उनकी बेटी तक रसाई से इनकार कर दिया गया। उसने इस मुआमले की इत्तिला पुलिस के साथ साथ चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी (सीडब्लयूसी) को भी दी, लेकिन इन हुक्काम की जानिब से कोई कार्रवाई नहीं की गई। लिहाजा, दरखास्त गुजार ने हाईकोर्ट से रुजू किया कि जवाब दहिंदा को हिदायत करे कि वो नाबालिग को अदालत में पेश करे और उसे उसकी बेटी की तहवील में दे दे।
दरखास्त गुजार की जानिब से दलील दी गई कि मुस्लिम पर्सनल ला के तहत गोद लेने को तस्लीम नहीं किया जाता। यहां तक कि नए और मुस्तकिल खानदानी ताल्लुकात बनाने के लिए रिश्तेदारी के ताल्लुकात को भी तस्लीम नहीं किया जाता। ये भी पेश किया जाता है कि सरपरस्तों और वार्डज एक्ट के तहत किसी नाबालिग के केस में सरपरस्त मुकर्रर करने का कोई इखतियार नहीं है, जिसके वालिद जिंदा हैं और अदालत की राय में नाबालिग के सरपरस्त के लिए ना-अहल हैं।
अदालत ने नोट किया कि हिंदू कानून के बरअक्स मुस्लिम कानून में बच्चा गोद लेने का कोई रिवाज नहीं है, जिसे फरीकैन ने कबूल किया है। अदालत ने ये भी तस्लीम किया कि जेजे एक्ट, एक्ट 2000 की दफा 41 गोद लेने के लिए एक तफसीली तरीका-ए-कार फराहम करती है, जिसे मुस्लमान भी इस्तिमाल कर सकते हैं। इस सिलसिले में अदालत ने शबनम हाश्मी बमुकाबला यूनीयन आफ इंडिया में सुप्रीमकोर्ट के तारीखी फैसले का हवाला दिया।
ताहम (हालांकि), इस बात पर जोर दिया गया कि जेजे एक्ट के तहत गोद लेने का बुनियादी मकसद यतीम, लावारिस या सुपुर्द किए गए बच्चों की बहाली है। इसके अलावा गोद लेने के लिए सख़्त रहनुमा खुतूत तैयार किए गए हैं। गोद लेना एक्ट के तहत तयशुदा तरीका-ए-कार के बाद सेंटर्ल अडॉप्शन रिसोर्स अथार्टी के जरीये किया जाता है। लिहाजा, अदालत ने मुशाहिदा किया कि अगरचे मुस्लमान यतीम बच्चों को गोद ले सकते हैं, लेकिन उन्हें जेजे एक्ट और उसके तहत बनाए गए कवानीन के तहत सख़्त तरीका-ए-कार पर अमल करना होगा।