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अल उला की तारीखी मस्जिद ‘अल अजीम’ जहां किब्ला की सिम्त तय करने ली गई थी हड्डियों की मदद

12 रमजान-उल मुबारक, 1444 हिजरी
मंगल, 4 अपै्रल, 2023
 

अल उला की तारीखी मस्जिद ‘अल अजीम’ जहां किब्ला की सिम्त तय करने ली गई थी हड्डियों की मदद
Mosque Of Bones

मस्जिद की तामीरे नव (रिनोवेशन) शुरू 

रियाद : आईएनएस, इंडिया
सऊदी वली अहद शहजादा मुहम्मद बिन सलमान के मंसूबे के तहत अल उल की तारीखी मस्जिद ‘अल अजीम’ के रेनोवेशन का काम शुरू हो गया है। मदीना मुनव्वरा से 300 किलोमीटर के फासले पर वाके ये वही मस्जिद है, जहां के लोगों ने किब्ला का डायरेक्शन तय करने के लिए हड्डियों की मदद ली थी क्योंकि उनके पास उस वक्त कोई और जरिया मौजूद नहीं थी। बाद में उस जगह की यादगार के लिए वहां मस्जिद तामीर कराई गई जिसका नाम अल अजीम पड़ा। इसे मस्जिद आफ बोन्स के नाम से भी जाना जाता है।

अल उला की तारीखी मस्जिद ‘अल अजीम’ जहां किब्ला की सिम्त तय करने ली गई थी हड्डियों की मदद
Mosque Of Bones
 

शहजाद मुहम्मद बिन सलमान मुल्कभर में तारीखी मसाजिद की इस्लाह-ओ-मुरम्मत, तामीर, तजईन-ओ-आराइश (रेनोवेशन) के एक मंसूबे को अमली जामा पहना रहे हैं। ममलकत के सरकारी खबररसां इदारे एसपीए के मुताबिक मस्जिद अल अजीम का ताल्लुक सीरत तय्यबा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से है। पैगंबर इस्लाम सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम जब 9 हिजरी ब मुताबिक 630 ईस्वी में वादी अलकरी आए थे, तब आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने वहां किब्ले का रुख मुकर्रर किया था। उस वक़्त ये इलाका वादी अलकरी कहलाता था जो अब अल उला के नाम से मशहूर है। 

अल उला की तारीखी मस्जिद ‘अल अजीम’ जहां किब्ला की सिम्त तय करने ली गई थी हड्डियों की मदद
Mosque Of Bones

    किबले का रुख मुतय्यन करने के लिए पत्थर नहीं थे तो हड्डीयों के जरीये किबले की सिम्त मुतय्यन की गई थी। आप सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम ने वहां नमाज अदा की थी। बाद में वहां मुकामी लोगों ने मस्जिद तामीर कर उसे मस्जिद अल अजीम का नाम दिया था, यानी वो मस्जिद, जहां किबले की सिम्त हड्डीयों के जरीये मुतय्यन की गई थी। मस्जिद अल अजीम की तामीर में पत्थर इस्तिमाल किए गए थे। उस की दाखिली दीवारें मिट्टी से तैयार की गई थीं। ये मस्जिद कई बार तामीर हुई। 

अल उला की तारीखी मस्जिद ‘अल अजीम’ जहां किब्ला की सिम्त तय करने ली गई थी हड्डियों की मदद
Al Ula 

    इन दिनों शहजादा मुहम्मद बिन सलमान मंसूबे के तहत उसकी ताअमीर-ए-नौ का काम जारी है। मुकर्ररा प्रोग्राम के मुताबिक मस्जिद अल अजीम को कदीम (आधुनिक) तर्जे तामीर के मुताबिक तैयार किया जा रहा है। इस सिलसिले में साबिका तामीर की दकीक़ तरीन तफसीलात रिकार्ड कर ली गई थीं, जिन्हें पेश-ए-नजर रखकर काम किया जा रहा है। मस्जिद अल अजीम मजहबी, सकाफ़्ती, तमद्दुनी-ओ-इस्लामी मुकाम-ओ-रुतबे की हामिल होने के साथ साथ समाजी किरदार की मालिक भी रही है। यहां कबीले के लोग अपने समाजी मसाइल हल करने के लिए जमा होते थे। ये वादी अलकरी कदीम कस्बे के सेंटर में वाके है। दुनिया के मुख़्तलिफ इलाकों के सय्याह (टूरिस्ट) इसे देखने के लिए आते हैं।



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