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क्या हमें वास्तव में ऐसी सुर्खियों की जरूरत है ?

नई तहरीक : रायपुर
भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। भारत में संस्कृतियों और भाषाओं की एक विविध श्रेणी है। जब हम कहते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, तो हमारा मतलब है कि भारत का अपना कोई आधिकारिक धर्म नहीं है, लेकिन यह सभी धर्मों को समान रूप से मानता है। एक समाचार पत्र ने हाल ही में ‘हेट ट्रैकर 2022 : भारतभर में मुस्लिम विरोधी घटनाओं की एक सूची’ शीर्षक के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, यह कहना सही है कि वर्ष 2022 के अंत तक, धार्मिक असहिष्णुता ने देश में अपनी उपस्थिति मजबूत कर ली है।  भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद ने इसे अपने फेसबुक पेज पर साझा किया।  इस तरह की नकारात्मक सुर्खियां हमारे संविधान के मूल सार पर सवाल उठाती हैं, जो हमारे देश के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ढांचे की नींव के रूप में कार्य करता है।
    आजकल समाचार सकारात्मकता की तुलना में नकारात्मक खबरों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।  चरम घटनाएं, विशेष रूप से धार्मिक अतिवाद से संबंधित, अक्सर समाचार रिपोर्टों का विषय होती हैं। अल्पसंख्यक खुद को अधिक अलग-थलग महसूस करते हैं और कट्टरपंथी हो जाते हैं, जब अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यक आबादी के वर्चस्व से संबंधित खबरें दिखाई जाती हैं। जबकि रचनात्मक आलोचना को महत्व दिया जाता है, विनाशकारी आलोचना केवल सामाजिक बुराइयों को उजागर करेगी और अल्पसंख्यकों को यह विश्वास दिलाने में मदद करेगी कि देश उनके लिए असुरक्षित है, जबकि ऐसा कुछ भी नही है।  कुछ बुराइयां सारी अच्छाइयों को छुपा नहीं सकती।
    नकारात्मक संदेश केवल युवाओं को खराब निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा।  भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहां लोग धर्म और जाति से ऊपर उठ कर, एक-दूसरे के अधिकार का सम्मान करते है। समाज की अधिक सटीक समझ प्राप्त करने के लिए, हमें सफलताओं और असफलताओं दोनों को पहचानना होगा। प्रहरी रहते हुए, मीडिया के पास अब प्रगति और संभावना पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का अवसर है।  महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका तात्पर्य केवल खुशनुमा कहानियों को प्रस्तुत करना नहीं है, बल्कि समाज में सकारात्मक विकास की कवरेज करना भी है। नागरिकों को अपने जीवन, समुदायों, समाजों और सरकारों में सर्वोत्तम निर्णय लेने के लिए, पत्रकारिता को उन्हें वह ज्ञान देना चाहिए, जिसकी उन्हें आवश्यकता है। केवल नकारात्मक विषयों पर ध्यान केंद्रित करके और सकारात्मक को अनदेखा कर, पत्रकारिता आवश्यक सकारात्मक बदलाव लाने के अपने घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो रही है।
    हमारे संविधान की प्रस्तावना ‘हम, भारत के लोग’ से शुरू होती है, और कहती है कि यह ्र‘जनता’ है जिसने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करने और सभी के लिए सुनिश्चित करने का संकल्प लिया है। संविधान का कथन स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है और यह बहुत स्पष्ट करता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हमेशा अपने नागरिकों के पक्ष में रहा है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।  देश के भीतर स्थित संगठनों और देश के बाहर स्थित संगठनों की यह जिम्मेदारी है कि वे धार्मिक सद्भाव को भंग करने या लोगों के बीच असमानता पैदा करने में सक्षम अपमानजनक टिप्पणियों या घटनाओं को बढ़ावा देने वाली नैरेटिव से बचें। इस तरह की नैरेटिव केवल राष्ट्र और उसके नागरिकों के विकास को बाधित करना चाहती है।
- इंशा वारसी
पत्रकारिता और फ्रैंकोफोन अध्ययन जामिया मिलिया इस्लामिया

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