कोच्चि : आईएनएस, इंडिया
तबदीली मजहब के खिलाफ काम करने वालों के एक ग्रुप ने केराला हाईकोर्ट से रुजू कर कहा है कि वो नौ उम्र मुस्लिम बच्चों के खतना की रिवायत में फौरी मुदाखिलत करे। मुसलमान लड़कों में एक साल की उम्र से पांच साल तक खतना किया जाता है। दरखास्त में इस अमल को बच्चों के खिलाफ इन्सानी हुकूक की खिलाफवरजी करार दिया गया है। दरखास्त में निशानदेही की गई है कि अकवाम-ए-मुत्तहिदा (संयुक्त राष्टÑ) की जनरल असेंबली के जरिये मंजूर किए गए शहरी और सियासी हुकूक के बैन-उल-अकवामी (अंतरराष्टÑीय) मुआहिदे में कहा गया है कि सभी फरीक बच्चों की सेहत के लिए नुक़्सानदेह रिवायती तरीकों को खत्म करने के लिए तमाम मूसिर (प्रभावशाली) और मुनासिब इकदामात करेंगे। तमाम फरीक इस बात को यकीनी बनाएंगे कि किसी बच्चे को उसकी राजदारी, खानदानी घर या खत-ओ-किताबत में मन-मानी या गै़रकानूनी मुदाखिलत का निशाना नहीं बनाया जाएगा और ना ही उसकी साख पर गै़रकानूनी हमला किया जाए। उसका हवाला देते हुए दरखास्त में कहा गया कि हिन्दोस्तान एक रुक्न और दस्तखत कनुंदा है और खतना का तरीका-ए-कार इसमें कही गई बातों की खिलाफवरजी है। दरखास्त में कहा गया कि बच्चों को खतने पर मजबूर किया जाता है और ये उनका इखतियार नहीं है और ये बैन-उल-अकवामी मुआहिदों की सरीह खिलाफवरजी है। दरखास्त में इस अमल को जालिमाना, गैर इन्सानी और वहशियाना करार देते हुए कहा गया है कि इसकी वजह से चंद शीरखोर बच्चों की मौत हुई है। दरखास्त में अदालत से इस्तिदा की गई है कि गैर ईलाजशुदा खतना को गै़रकानूनी करार दिया जाए और उसे नाकाबिले जमानत जुर्म करार दिया जाए और इसके खिलाफ मुमानअत का कानून बनाया जाए। दावा किया कि मई 2018 में केराला के वडांपली में एक बच्चे की खतना के बाद मौत हो गई थी। दरखास्त में मुतअद्दिद वजूहात भी दी गईं कि इस तरीका-ए-कार पर पाबंदी क्यों लगाई जाए। कहा गया है कि बच्चों के लिए ये बचपन का सदमा होगा और हयातयाती तौर पर भी ये बच्चे की मुस्तकबिल की नशव-ओ-नुमा को मुतास्सिर करता है। दरखास्त में इल्जाम लगाया गया है कि गैर ईलाजशुदा खतना बच्चे की जिस्मानी, जजबाती और इलमी सेहत को बुरी तरह मुतास्सिर करता है।
21 रज्जबुल मुरज्जब 1444 हिजरी
13 फरवरी 2023
तबदीली मजहब के खिलाफ काम करने वालों के एक ग्रुप ने केराला हाईकोर्ट से रुजू कर कहा है कि वो नौ उम्र मुस्लिम बच्चों के खतना की रिवायत में फौरी मुदाखिलत करे। मुसलमान लड़कों में एक साल की उम्र से पांच साल तक खतना किया जाता है। दरखास्त में इस अमल को बच्चों के खिलाफ इन्सानी हुकूक की खिलाफवरजी करार दिया गया है। दरखास्त में निशानदेही की गई है कि अकवाम-ए-मुत्तहिदा (संयुक्त राष्टÑ) की जनरल असेंबली के जरिये मंजूर किए गए शहरी और सियासी हुकूक के बैन-उल-अकवामी (अंतरराष्टÑीय) मुआहिदे में कहा गया है कि सभी फरीक बच्चों की सेहत के लिए नुक़्सानदेह रिवायती तरीकों को खत्म करने के लिए तमाम मूसिर (प्रभावशाली) और मुनासिब इकदामात करेंगे। तमाम फरीक इस बात को यकीनी बनाएंगे कि किसी बच्चे को उसकी राजदारी, खानदानी घर या खत-ओ-किताबत में मन-मानी या गै़रकानूनी मुदाखिलत का निशाना नहीं बनाया जाएगा और ना ही उसकी साख पर गै़रकानूनी हमला किया जाए। उसका हवाला देते हुए दरखास्त में कहा गया कि हिन्दोस्तान एक रुक्न और दस्तखत कनुंदा है और खतना का तरीका-ए-कार इसमें कही गई बातों की खिलाफवरजी है। दरखास्त में कहा गया कि बच्चों को खतने पर मजबूर किया जाता है और ये उनका इखतियार नहीं है और ये बैन-उल-अकवामी मुआहिदों की सरीह खिलाफवरजी है। दरखास्त में इस अमल को जालिमाना, गैर इन्सानी और वहशियाना करार देते हुए कहा गया है कि इसकी वजह से चंद शीरखोर बच्चों की मौत हुई है। दरखास्त में अदालत से इस्तिदा की गई है कि गैर ईलाजशुदा खतना को गै़रकानूनी करार दिया जाए और उसे नाकाबिले जमानत जुर्म करार दिया जाए और इसके खिलाफ मुमानअत का कानून बनाया जाए। दावा किया कि मई 2018 में केराला के वडांपली में एक बच्चे की खतना के बाद मौत हो गई थी। दरखास्त में मुतअद्दिद वजूहात भी दी गईं कि इस तरीका-ए-कार पर पाबंदी क्यों लगाई जाए। कहा गया है कि बच्चों के लिए ये बचपन का सदमा होगा और हयातयाती तौर पर भी ये बच्चे की मुस्तकबिल की नशव-ओ-नुमा को मुतास्सिर करता है। दरखास्त में इल्जाम लगाया गया है कि गैर ईलाजशुदा खतना बच्चे की जिस्मानी, जजबाती और इलमी सेहत को बुरी तरह मुतास्सिर करता है।
21 रज्जबुल मुरज्जब 1444 हिजरी
13 फरवरी 2023
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