यौमे गालिब पर गालिब एकेडमी और ऐवाने गालिब में रंगा-रंग तकरीबात

नई दिल्ली : टीएन भारती, आईएनएस, इंडिया
उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा असदुल्लाह खान गालिब की 154 वीं यौम-ए-वफात पर गालिब एकेडमी में आजादी का अमृत महोत्सव के तहत वजारत-ए-सकाफत हकूमत-ए-हिन्द के माली तआवुन से यौमे गालिब तकरीबात का इनइकाद किया गया। 
मिर्जा असदुल्लाह खान गालिब
    इस सिलसिले में गजलसराई मुकाबला में दिल्ली के सरकारी और पब्लिक स्कूल के तलबा-ओ-तालिबात ने मिर्जा गालिब की गजलें पेश कीं। अव्वल, दोयम व सोइम ईनाम याफ़्ता तलबा-ओ-तालिबात को बतौर इनाम नकद रकम से सरफराज किया गया। गालिब एकेडमी के सेक्रेटरी डाक्टर अकील अहमद ने स्कूली बच्चों की हौसला-अफजाई करते हुए कहा कि नस्ल-ए-नौ के लिए इस तरह की तकरीबात मुनाकिद करना अशद जरूरी है। मुस्तकबिल में उर्दू जबान की बागडोर उनके ही कंधों पर है। खुश आइंद बात है कि नई नसल गालिब की गजलों से लुत्फ अंदोज होने के लिए उर्दू जबान सीखने में दिलचस्पी रखती है। 
    उर्दू की मशहूर शायरा डाक्टर वसीम राशिद ने तमाम तलबा को मश्वरा दिया कि वो किसी एक जबान पर दस्तरस हासिल करें। जबान से कौम जिंदा रहती है। अलावा अजीं तरक़्की उर्दू (दिल्ली शाख) अंजुमन तरक़्की उर्दू हिंद, गालिब इंस्टीटियूट और गालिब एकेडमी ने मुशतर्का तौर पर एक तरही मुशायरा की महफिल आरास्ता की जिसमें गालिब के मिसरा 'गर नहीं हैं मेरे अशआर में मअनी, ना सही' और 'धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए' पर शोअरा ने तब्अ-आजमाई की। 
    अंजुमन तरक़्की उर्दू दिल्ली शाख के रूह-ए-रवाँ इकबाल मसऊद फारूकी ने इस्तिकबालीया कलमात पेश करते हुए कहा कि अंजुमन गुजिश्ता सत्तर बरस से गालिब तकरीबात मुनाकिद करने में मसरूफ है। साबिक सदर हिंद फखर उद्दीन अली अहमद मरहूम की बहन बेगम हमीदा सुलतान को मिर्जा गालिब से खास रगबत थी। उस जमाने में गालिब के मजार पर यौम गालिब मनाया जाता था। उन्होंने कहा कि मुस्तकबिल में भी गालिब की सलाहीयत का चराग रौशन रहेगा। 
    गालिब इंस्टीटियूट के डायरेक्टर डाक्टर इदरीस ने निजामत के दौरान कहा कि खूबसूरत इत्तिफाक है कि मिर्जा गालिब का मजार निजाम उद्दीन औलिया के नजदीक है, चुनांचे दरगाह में जियारत के दौरान अकीदतमंद मिर्जा गालिब के मजार पर भी हाजिरी देते हैं। यौम गालिब की इब्तिदाई तकरीब में बुजुर्ग वकील और उर्दू नक़्काद अब्दुर्रहमान ने सदारती खुतबा के दौरान तहरीर पेश की, जबकि मुशायरे की सदारत जईफ-उल-उमर शायर वकार मानवी ने की। निजामत के फराइज शादाब मुईन ने अंजाम दिए। तरही मुशायरा में मतीन अमरोहवी, असद रजा, शाहिद अनवर, मुईन शादाब, चशमा फारूकी, जफर मुरादाबादी वगैरा ने अपने कलाम पेश किए। इस मौका पर लद्दाख के उर्दू शायर नोरबू ख़्याल लद्दाखी की किताब इजहार-ए-खयाल शेअरी मजमूआ का रस्मे इजरा भी किया गया। तकरीब का इखतेताम उस्ताद अबदुर्रहमान की बजम मौसीकी से हुआ। उस्ताद ने मौसीकी कारों के साथ अपनी जादुई आवाज में गालिब का कलाम पेश किया।
रज्जबुल मुरज्जब 1444 हिजरी
फरवरी 2023
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