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मध्य पूर्व की पुरानी इस्लामी तारीखी व सांस्कृतिक विरासत खत्म हो रही

खंडहर होता जा रहा दरिया फुरात के किनारे बसा शहर 

दुबई : आईएनएस, इंडिया 

मौसमियाती तबदीलियों के सबब जमीन के दर्जा हरारत में मुसलसल इजाफा हो रहा है जिसका सबसे ज्यादा मुतास्सिरा ंइलाका मशरिक वुसता (मध्य पूर्व) है। ऐसे में इस खित्ते के कदीम (पुराने) ईसाई बुतखाने, गिरजाघर, किले, मसाजिद और सकाफती (सांस्कृतिक) विरसे मुतास्सिर हो रहे हैं। 

खंडहर होता जा रहा दरिया फुरात के किनारे बसा शहर
File Photo

एक जमाने में बाबुल दुनिया का सबसे बड़ा शहर हुआ करता था, जो अपने अंदर दुनिया के सात अजाइब में से एक हैंगिंग गार्डन, एक मारूफ (प्रसिद्ध) टावर और एक पूरी की पूरी सकाफ़्त (संस्कृति) समोए हुए था। करीब 4,300 बरस कब्ल दरिया-ए-फुरात के किनारे आबाद होने वाला ये तारीखी शहर आज जुनूबी (दक्षिण) इराक का हिस्सा है। लेकिन अब वहां सिर्फ खन्डरात दिखाई देते हैं। बेशतर (ज्यादातर) इमारात इस कदर खस्ता हाल हो चुकी हैं कि उनकी दीवारों टूट-फूट गई है। दहाईयों तक दुनियाभर के सय्याहों (पर्यटकों) की तवज्जा का मर्कज रहने वाला ये शहर आज इस कदर खस्ता हो चुका है कि वहां अब सय्याहों का दाखिला भी मसला है। 

यूनीवर्सिटी कॉलेज आफ लंदन में मशरिक-ए-वुसता (मध्य पूर्व) की तारीख की प्रोफेसर एलीनोर रोबसन के मुताबिक सालहा साल से इंतिहाई खुश्क गर्मियों और जमीन के अंदर से रिसने वाले पानी की वजह से बाबुल की इमारात आहिस्ता-आहिस्ता मुनहदिम (ढहती) जा रही हैं। यूनेस्को के आलमी सकाफ़्ती विरसे (विश्व सांस्कृतिक विरासत) में शामिल ये कदीम (प्राचीन) शहर मशरिक-ए-वुसता में ऐसा वाहिद मुकाम नहीं, जो मौसमियाती तब्दिलीयों और जमीन के दर्जा हरारत में इजाफे़ की वजह से तबाह हाली का शिकार है। बार-बार लगने वाली जंगल की आग, धूल, मिट्टी और रेत के तूफान, फिजाई आलूदगी में इजाफे़ और बुलंद होती समुंद्र की की सतह की वजह से इस शुमाली अफ्रÞीकी मुल्क के बेशतर तारीखी मुकामात को खतरा लाहक होता जा रहा है। करीब 2,300 साल पुराने शहर अलपत्रा में दीवारों के कुछ हिस्से गिरने के इमकानात हैं। मशरिकी यमन में शदीद बारिश और सैलाबी रेले वादी हजरमोत में मिट्टी की ईंटों से खड़ी की गई कई तारीखी इमारतों को आहिस्ता-आहिस्ता बहा ले जा रहे हैं। अलावा इसके लीबिया में कदीम नखलिस्तानी कस्बा गुदामस भी खतरे से दो-चार है क्योंकि वहां पानी का जरीया सूख चुका है। समुंद्र की सतह में इजाफे़ और सैलाबों की वजह से साहिली इलाकों पर मौजूद सकाफती मुकामात भी खतरे में हैं। जर्मनी के माक्स प्लाँक इंस्टीटियूट फार कैमिस्ट्री और कबरस इंस्टीटियूट के मुहक़्किकीन (शोधकर्ताओं) की तरफ से शाइआ होने वाली एक रिपोर्ट में तंबीया (चेतावनी) की गई है कि मशरिक वुसता और मशरिकी बहीरा रुम के इलाकों में आलमी औसत से तकरीबन दो गुना ज्यादा तेजी से गर्मी बढ़ रही है। इसका मतलब है कि दुनिया के इस हिस्से में किले, एहराम और दीगर कदीम मुकामात हमारे मौसम-ओ-माहौल में होने वाली तब्दीलियों से पहले से कहीं ज्यादा खतरे में हैं। मिस्र, अरदन और खलीज के चंद ममालिक मौसमियाती तब्दीलियों से मुतास्सिरा अपने सकाफ़्ती विरसे की बेहतर देख-भाल कर रहे हैं लेकिन कई ममालिक इस जिÞमन में कुछ नहीं भी कर रहे।


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