लंदन : आईएनएस, इंडिया
स्वीट्जरलैंड में अफ़्गानिस्तान वीमन सायकलिंग चैंपियनशिप में दुनिया के मुख़्तलिफ ममालिक में रिहायश करने वाली अफ़्गान खवातीन हिस्सा लेंगी जिनमें से एक मासूमा अली जादा भी हैं। फ्रÞांसीसी खबर रसां एजेंसी एएफपी के मुताबिक गुजिश्ता पांच साल से फ्रÞांस में रहने वाली मासूमा अली जादा का कहना है कि तालिबान के इकतिदार में आने के बाद भी उन्होंने अपने मुल्क की नुमाइंदगी नहीं छोड़ी।
मासूमा ने इस उम्मीद का इजहार किया कि इतवार को मुनाकिद होने वाली रेस से अफ़्गानिस्तान में खवातीन की खतरनाक सूरत-ए-हाल पर दुनिया की तवज्जो मबजूल कराने में मदद मिलेगी। कैनेडा, फ्रÞांस, जर्मनी, इटली, सिंगापुर और स्वीट्जरलैंड से 49 अफ़्गान मुहाजिर खवातीन 57 किलोमीटर तवील साईकल रेस में शिरकत करेंगी। मासूमा का कहना है कि दुनिया ने अफ़्गानिस्तान की खवातीन को तन्हा छोड़ दिया है। इन्सानी हुकूक की पासदारी का दावा करने वालों ने भी कुछ नहीं किया। गुजिश्ता साल टोकीयो ओलम्पिक्स में शिरकत कर मासूमा लाखों अफ़्गान खवातीन के लिए उम्मीद का बाइस बनी थीं। टोकीयो ओलम्पिक्स में मुहाजिर ओलम्पिक टीम के तहत शरीक होने वाली मासूमा पहली अफ़्गान खातून साईकलिस्ट थीं।
मासूमा का कहना है कि टोकीयो में उन्होंने जो खुशगवार तजुर्बा हासिल किया था, उसे तालिबान ने इकतिदार में आकर तबाह कर दिया। मासूमा का ताल्लुक अफ़्गान हजारा कम्यूनिटी से है, जिन्हें हर दौर में जुल्म का निशाना बनाया गया। पिछली सदी के आखिरी चंद अशरों में जब अफ़्गानिस्तान के हालात खराब होना शुरू हुए तो दीगर लाखों अफ़्गानों की तरह मासूमा को भी हमसाया ममालिक (पड़ोसी मुल्कों) में हिजरत करना पड़ी थी। मासूमा और उनके खानदान ने ईरान का रुख किया और अफ़्गानिस्तान में हालात साजगार होने तक चंद साल वहीं गुजारे। ईरान में ही मासूमा ने साईकल चलाना सीखी और काबुल वापिस आने पर अफ़्गान कौमी टीम में शमूलीयत इखतियार की। उस वक़्त मासूमा की उम्र 16 बरस थी। साईकल चलाने और स्पोर्टस लिबास पहनने पर मासूमा को ना सिर्फ तौहीन आमेज रवैय्ये का सामना करना पड़ता बल्कि उन पर पथराव भी किया जाता। दबाव बढ़ने पर मासूमा ने 2016 में फ्रÞांस में पनाह ले ली। उसके बाद से अफ़्गानिस्तान में खवातीन के लिए सूरत-ए-हाल मजीद खराब हो चुकी है। मासूमा का कहना था कि हर रोज खवातीन अपना एक नया हक खोती हैं, बल्कि अक्सर ख्वातीन को जेल में भी डाला गया या फिर उन्हें जबरदस्ती मुल्क छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा कि अफ़्गानिस्तान में बच्चियों का सबसे बड़ा खाब स्कूल जाना है।