तैंतीस हजार साल पुरानी गार मिली
फिरऔन के दौर के बर्तन से भरी है गार
मकबूजा बैतुल मुकद्दस : आईएनएस, इंडिया
एक इसराईली माहिर आसारे-ए-कदीमा (इसराईली पुरातत्व विशेषज्ञ) का कहना है कि 3 हजार 300 साल पुरानी एक गार इत्तिफाकन मिल गई। गार का ढांचा और वहां मिलनी वाली चीजें इस अंदाज में रखी हुई थी कि गोया इंडियाना जोंस की किसी फिल्म का सेट हो।
इसराईल की आसारे-ए-कदीमा अथार्टी (आईएसए) की जानिब से इतवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि साहिल समुंद्र के किनारे बलमाहेम नेशनल पार्क के करीब एक मकबूल सयाहती मुकाम (प्रसिद्ध पर्यटन स्थल) पर मंगल को खुदाई करने के दौरान इत्तिफाकन एक गार दीख गई। जिसके बाद माहिरीन आसारे-ए-कदीमा ने इन्सानों की बनाई उस गार में सीढ़ीयों के जरिये अपने लोगों को नीचे उतारा। उन्होंने बताया कि ये गार फिरऔन के दौर की है जो बर्तनों और कांसे की चीजों से भरी हुई है। उन्होंने मजीद बताया कि ये बर्तन 1213 कबल मसीह (ईसा पूर्व) वफात पाने वाले पुराने मिस्री बादशाह के दौर से ताल्लुक रखते हैं। हुक्काम का कहना था कि इस दरयाफत को देखकर ऐसा लगता है कि वक़्त ठहर सा गया है। गार से मिलने वाली चीजों में कुछ कटोरे सुर्ख़ रंग में रंगे हुए हैं, कुछ हड्डीयों पर मुश्तमिल हैं। आब खोरे (गिलास), खाना पकाने के बर्तन, जखीरा करने के मर्तबान, चिराग और कांसे के तीर शामिल है। ये चीजें फिरऔन के दौर में मय्यत के साथ दफन की जाती थी। ये तकरीबन 3 हजार 300 साल पुरानी है।
आसारे-ए-कदीमा अथार्टी की तरफ से जारी एक वीडीयो में माहिरीन आसारे-ए-कदीमा को गार में मुख़्तलिफ चीजों को टार्च की रौशनियों में मुआइना करते हुए देखा जा सकता है। माहिर आसारे-ए-कदीमा डेविड गीलमीन का कहना था कि तदफीन के लिए इस्तिमाल होने वाला ये गार अपनी नौईयत (अपनी प्रकृति) के लिहाज से गैरमामूली है। अहम बात ये है कि इस तरह की चीज पहली बार मिल रही है। एक दीगर माहिर आसारे-ए-कदीमा अली यानाई का कहना था कि ये गार कांसी के जमाने के आखरी दौर में तदफीन के रस्म-ओ-रिवाज की मुकम्मल तस्वीर पेश करता है। उन्होंने कहा कि ये अपनी तामीर के बाद पहली मर्तबा दरयाफत हुआ है। और ऐसा महसूस होता है कि ये इंडिया जोंस की किसी फिल्म का सेट है। बर्तन 1213 कबल मसीह में वफात पाने वाले कदीम मिस्री बादशाह के दौर से ताल्लुक रखते हैं। गार के कोने में दो बक्स भी मिले हैं, जिनमें से एक में एक इन्सानी ढांचा था। ताहम इन लाशों को बेहतर तौर पर महफूज नहीं रखा गया था। इसलिए उनका डीएनए कराना मुम्किन नहीं होगा। माहिरीन का ख़्याल है कि ये इन्सानी ढाँचे साहिल के करीब रहने वाले मुकामी लोगों के हो सकते हैं। गिलमीन का कहना था कि वहां लाशों के साथ मिलने वाले हथियार जिनमें तीर भी थी, से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये जाँबाज थे और जहाजों की हिफाजत पर मामूर थे। आईएसए का कहना है कि इस गार को अब दुबारा सील कर दिया गया है और इसकी हिफाजत की जा रही है, जबकि उसकी खुदाई के लिए एक मन्सूबा तैयार किया जा रहा है। मोअर्रिखीन (इतिहासकारों) के मुताबिक फिरऔन दोम को रिमसीस आजम के नाम से भी जाना जाता था। उसने तवील अरसा हुकूमत की थी। ये एक ऐसा इलाका था, जिसमें जदीद दौर का इसराईल और तमाम फलस्तीनी इलाके शामिल थे।