रमदान अल मुबारक, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
"अल्लाह ताअला फरमाता है: मेरा बंदा फर्ज़ नमाज़ अदा करने के बाद नफिल इबादत करके मुझसे इतना नज़दीक हो जाता के मैं उससे मोहब्बत करने लग जाता हूँ।"
- सहीह बुख़ारी
सऊदी न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक़ सउदी में रमज़ान में मुनफ़रद तक़रीबात अलग-अलग समारोह और इज्तिमाआत कम्यूनिटी (कम्यूनिटी का इकटठा होना) एक ख़ास मुक़ाम रखते हैं जो ख़ानदानी और हमसायादारी के रिश्तों को मज़बूत करते हैं।
सऊदी अरब के जज़ीरा फ़रसान में रमज़ान के इस्तकबाल के लिए घरों की सजावट करने की रवायत है। इसके अलावा कई हिस्सों में आग रोशन की जाती है। ये जगह माज़ी, हाल और मुस्तक़बिल के बारे में कहानियां और तजुर्बात शेयर करने के लिए ख़ास होती है।
मुक़ामी बाशिंदों का कहना है कि यकजहती और सख़ावत की अलामत के तौर पर आग रोशन की जाती है। इस अमल को खित्ते की सक़ाफ़्त का लाज़िमी जुज समझा जाता है। अलाव के पास लोगों का इकटठा होना उन्हें उनके माज़ी से भी जोड़ता हैं और हर एक के लिए समाजी ताल्लुक़ात मज़बूत करने का ज़रीया बनता है। रमज़ान अलाव को हमेशा से ही मुक़ामी विरसे में एक अहम हैसियत हासिल रही है। सउदी के ज्यादातर लोग इन्हीं रवायात के साथ बड़े हुए हैं और ये तक़रीब नसलों को एक साथ लाती है, यादों को ताज़ा करने और नौजवानों के साथ तजुर्बात शेयर करने का मौक़ा देती है।
लोगों का कहना है कि रमज़ान ऐसी रवायात को ज़िंदा करने का बेहतरीन वक़्त है क्योंकि ये मुहब्बत, राबते और नसलों के दरमयान समाजी इक़दार को मुस्तहकम करने की अक्कासी करता है। सऊदी अरब के शुमाली सरहदी इलाक़े में मुक़ामी लोग आज भी अपने घरों में रमज़ान की रातों में आग के अलाव जलाने की रिवायत ज़िंदा रखे हुए हैं।