रमदान अल मुबारक, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
"अल्लाह ताअला फरमाता है: मेरा बंदा किसी और चीज़ के जरिये मुझ से इतना करीब नहीं होता, जितना फर्ज़ इबादत के जरिये होता है।"
- सहीह बुखारी
✅ एमडब्ल्यू अंसारी : भोपाल
भोपाल में जल्द ही मुनाक़िद होने वाली ह्यग्लोबल इन्वेस्टर्स समिटह्ण ने शहर में चमक-दमक और एक मख़सूस इलाक़े और रोड की सफ़ाई सुथराई की मुहिम को तेज़ कर दिया है। सरकारी महकमा सड़कों की मरम्मत, पार्कों की ख़ूबसूरती और गंदगी के ढेरों को हटाने में मसरूफ़ हैं। ये सब देखकर एक आम ताअस्सुर जो बन रहा है, वो ये कि हुकूमत बैन-उल-अक़वामी मेहमानों के इस्तिक़बाल के लिए शहर को साफ़-सुथरा बना रही है जो महज वक़्ती है।
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पिछले कुछ वक़्त से ताजमहल, बेनज़ीर हाकी ग्राऊंड, तहरीक जंग-ए-आज़ादी में कलीदी किरदार अदा करने वाली मसाजिद, क़दीम मक़बरा, नवाब साहिब की बारादरी और ख़ासकर इक़बाल मैदान जैसे शहर के तारीख़ी विरसे के लिए फ़िक्रमंद रहने वाली चंद मुतहर्रिक-ओ-फ़आल तंज़ीमें या जिन्होंने इनकी मरम्मत के लिए काविशें की, दौड़ धूप की, वो ये मान रही है कि ये सब उनकी कोशिशों का नतीजा है।
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अब ये मुआमला दो मुख़्तलिफ़ नुक़्ता-ए-नज़र पेश कर रहा है। एक तरफ़ हुकूमत है कि वो आलमी सरमाया कारों के इस्तिक़बाल के लिए शहर की ख़ूबसूरती पर तवज्जा दे रही है। उनके मुताबिक़ ये इक़दामात शहर की बैन-उल-अक़वामी शिनाख़्त और सयाहत के फ़रोग़ के लिए ज़रूरी हैं। जबकि शहर के नौजवानों को लगता है कि उनकी मेहनत रंग ला रही है। अल ग़र्ज़ ये कि शहरियों की बेदारी और हुकूमत की कोशिशों ने मिलकर भोपाल को एक साफ़-सुथरा और ख़ूबसूरत शहर बनाने में अहम किरदार अदा किया है।
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इसी बीच कुछ सहाफ़ीयों ने हुकूमत को ख़ुश करने के लिए ये कहना शुरू कर दिया है कि ये सब हुकूमत जीआईएस के लिए करा रही है और ये मुतहर्रिक-ओ-फ़आल तंज़ीमें महिज़ उसका क्रेडिट ले रही हैं। तो जानना चाहिए कि ये चंद फ़आल नौजवान और तंज़ीमें खासतौर पर ''भोपाल विरासत बचाओ मंच' उस वक़्त से इक़बाल मैदान और दीगर तारीख़ी विरसे के लिए जद्द-ओ-जहद कर रहे हैं, जबकि जीआईएस के इनइक़ाद के लिए होने वाली तैयारीयां शुरू नहीं हुई थीं, अपनी काविशों में मुख़लिस थे। हम उन तमाम तन्ज़ीमों और उनसे जुड़े लोगों को मुबारकबाद देते हैं और उम्मीद करते हैं कि इक़बाल मैदान की तरह शहर के दीगर तारीख़ी मुक़ामात के लिए भी कोशिशें करेंगे और इन्क़िलाबी तब्दीलियां लाएंगे।
काबिल-ए-ज़िक्र है कि एक नौजवान सहाफ़ी कहते हैं कि हुकूमत का ये क़दम काबिल-ए-सताइश है, इससे ना सिर्फ इक़बाल मैदान को नई ज़िंदगी मिलेगी बल्कि जीआईएस के लिए आने वाले मेहमानों को भोपाल की तहज़ीब को जानने का मौक़ा मिलेगा। सवाल है कि हुकूमत महज वीआईपी मूवमेंट वाले इलाक़े में ही क्यों तवज्जा दे रही है, उसके इर्द-गिर्द ना जाने कितनी इमारतें, तारीख़ी मैदान, लाइब्रेरियां, तालाब-ओ-झीलें हैं, जिनकी तरफ़ हुकूमत की कोई तवज्जा नहीं है। वीरान पड़े ताजमहल, मक़बरा नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान, बाब अली ग्राऊंड, बेनज़ीर ग्राऊंड, हमीदिया अस्पताल के अंदर की मस्जिद, बेगमात के मक़ाबिर, वो तमाम जगहें और मसाजिद, जहां से तहरीक जंग-ए-आज़ादी में अहम किरदार अदा किया गया और दीगर तारीख़ी असासे को हुकूमत को दरुस्त नहीं करना चाहिए।
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शहर के सहाफियों को उन तन्ज़ीमों से तकलीफ़ है, जिनके आवाज़ उठाने के बाद चाहे जैसे भी हो काम तो हो गया। क्या आप नहीं चाहते कि उनकी मेहनत को सराहा गया तो आइन्दा क़वी उम्मीद है कि इसी जोश-ओ-जज़बे के साथ भोपाल के तमाम तारीख़ी विरसे को हुकूमत की मदद से दुबारा आबाद किया जा है।
अल ग़र्ज़ ये सूरत-ए-हाल इस बात की अक्कासी करती है कि अवामी आवाज़ और हुकूमत की ज़िम्मेदारी मिलकर किस तरह मुसबत तबदीली ला सकती हैं। अब देखना ये है कि ये सफ़ाई मुहिम आलमी समिट के बाद भी जारी रहती है या ये सिर्फ एक वक़्ती इंतिज़ाम साबित होती है।