जमादी उल आखिर 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
मैं आखरी ज़माने में अपनी उम्मत के बारे में तीन चीजों से डरता हूँ, सितारों पर इमान लाने से, तकदीर झुठलाने से और बादशाह के ज़ुल्म-ओ-सितम से।
- अलसिलसिलत सहियह
✅ नई तहरीक : भोपाल
मुल्क की कदीम तारीखी रियासत वाला शहर भोपाल में एक ज़माने तक नवाबों का दौर रहा है। १७ वीं सदी में रियासत की तरक़्क़ी में अहम किरदार अदा करने वाले शहरे भोपाल के बानी नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान आज ही के दिन १२ दिसंबर को इस दार-ए-फ़ानी से कूच कर गए थे। रियासत की तरक्की में नई तारीख रकम करने वाले नवाब दोस्त मोहम्मद खान का ताअल्लुक अफ़्ग़ान पशतून ख़ानदान से था । उनकी हुक्मरानी ने रियासत के सियासी, समाजी और इक़तिसादी ढाँचे में नुमायां तब्दीलियां देखी।
१८१६ में जब नवाब दोस्त मोहम्मद ने भोपाल के नवाब के तौर पर हुक्मरानी शुरू की, शहरे भोपाल तरक़्क़ी की राह पर गामज़न होता चला गया। उनकी हुक्मरानी के दौरान भोपाल की सरहदों में तौसीअ हुई और रियासत में अमन-ओ-अमान की सूरत-ए-हाल बेहतर हुई। उनकी हिक्मत अमलियों की बदौलत भोपाल को एक मुस्तहकम और ख़ुशहाल रियासत बनाने में मदद मिली। नीज़ नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान ने अपने दौर-ए-हकूमत में मुख़्तलिफ़ इस्लाहात कीं , जिनमें बुनियादी तौर पर तहफ़्फ़ुज़, ज़राअत और तालीम के शोबे में बेहतरी लाना शामिल था। उन्होंने भोपाल के अवाम की फ़लाह-ओ-बहबूद के लिए कई इक़दामात किए और अपनी हुक्मरानी में मुस्लमानों और ग़ैर मुस्लिमों के दरमयान हम-आहंगी क़ायम रखने की कोशिश की। उनकी हुकूमत में भोपाल ने ना सिर्फ सियासी इस्तिहकाम देखा बल्कि रियासत का मआशी निज़ाम भी मज़बूत हुआ। उन्होंने अपनी रियासत में तिजारत, सनअत और ज़रई इस्लाहात को फ़रोग़ दिया, जिसके नतीजे में भोपाल की मईशत ने तरक़्क़ी की।
नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान का दौर हुक्मरानी भोपाल की तारीख़ में एक सुनहरी दौर के तौर पर याद किया जाता है। उनकी वफ़ात के बाद उनके वारिसान ने रियासत भोपाल का इंतिज़ाम सँभाला और उनके नक़श-ए-क़दम पर चलते हुए रियासत को मज़ीद तरक़्क़ी देने में कामयाब रहे। आज भी भोपाल की तारीख़ में नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान का किरदार एक संग-ए-मील के तौर पर याद किया जाता है। उनकी ख़िदमात को इज़्ज़त-ओ-एहतिराम की नज़र से देखा जाता है।
यहां ये भी काबिल-ए-ज़िक्र है कि शहर भोपाल तारीख़ी इमारतों का शहर है। यहां ताज अल मसाजिद से लेकर एशिया की सबसे बड़ी ईदगाह मौजूद है। झीलों की नगरी कहे जानेवाले भोपाल की फ़िज़ा निहायत ही पुर अमन है। नवाबी दौर की सदर मंज़िल हो, शौकत महल हो या इक़बाल मैदान, जामा मस्जिद-ओ-मोती मस्जिद तक हर एक की शानदार तारीख़ रही है। सभी का अपना शानदार माज़ी है। ये इमारतें शहर भोपाल को दूसरे शहरों से ख़ास और मुख़्तलिफ़ बनाती हैं।
लेकिन अफसोस कि पिछले कुछ सालों से ये प्यारा शहर अपनी क़दीम तारीख़ी विरासत को खोता नज़र आ रहा है। नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान के अलावा दीगर नवाबों के शहर की तरक़्क़ी के लिए किए गए कामों को फरामोश किया जा रहा है, तारीख़ी असासे, इमारतें और मैदान सब खन्डर होते जा रहे हैं। कोई उनकी ख़बर-गीरी करने वाला नहीं है। तारीख़ी जगहों और इमारतों नीज़ सड़कों और स्टेशनों के नामों को तबदील किया जा रहा है। इस्लाम नगर को जगदीश पूर कर दिया गया तो हबीबगंज को रानी कमलापति, ग़रज़ ये कि मौजूदा हुकूमतें अवामी फ़लाह-ओ-बहबूद के लिए कोई नया काम करने के बजाय सिर्फ नामों की सियासत कर रही हैं। भोपाल की बेगमात ने कितनी ही ज़मीनें वक़्फ़ की पर अब उन पर नाजायज़ क़बज़ा है और जिनका हक़ था वो महरूम हैं। तमाम आसारे-ए-क़दीमा बेतवज्जुही का शिकार हैं, कोई उनकी देख-भाल करने वाला नहीं है एक वक़्त था जब शहर भोपाल में १५० से ज़ाइद क़ब्रिस्तान थे, जो फ़िलहाल महिज़ ४०-५० ही रह गए हैं जिनका तहफ़्फ़ुज़ वक़्त की अहम ज़रूरत है।
रियासत भोपाल के बानी नवाब दोस्त मुहम्मद के यौम-ए-वफ़ात के मौक़ा पर औक़ाफ़ शाही इंतिज़ामीया से खासतौर पर दरख़ास्त करते है कि भोपाल के तमाम नवाबों के नाम से इदारे क़ायम किए जाएं। औक़ाफ़ शाही की अराज़ी का सही इस्तिमाल होना हो, ऐसे तालीमी इदारे क़ायम किए जाएं जिससे उर्दू, फ़ारसी और अरबी का फ़रोग़ हो। इसके अलावा हुकूमत से तमाम क़दीम तारीख़ी असासों को बचाने की अपील की गई। शहर की बरकत उल्लाह यूनीवर्सिटी को सेंटर यूनीवर्सिटी बनाया जाए इससे भोपाल तारीख़ी शहर होने के साथ साथ इल्म का मर्कज़ भी बनेगा। नवाब पटौदी के नाम से खेल मैदान बनाया जाए। नीज़ ऐसे काम किए जाएं जिससे समाज का भला हो, हर शहरी तालीम याफ़ता बने, बेरोज़गारों को रोज़गार मिले, ग़रीबों का फ़ायदा हो, बेटियों का तहफ़्फ़ुज़ हो, होनहार तलबा की हौसला-अफ़ज़ाई हो।
भोपाल के बानी नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान की यौम-ए-वफ़ात पर शहर के बाशिंदों को शहर की विरासत का तहफ़्फ़ुज़ करने के साथ-साथ वीरान होते जा रहे ताअलीमी इदारों को सरे नौ आबाद करने, खंडहर होते जा रहे क़ब्रिस्तानों, इमारतों की फिक्र करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
१८१६ में जब नवाब दोस्त मोहम्मद ने भोपाल के नवाब के तौर पर हुक्मरानी शुरू की, शहरे भोपाल तरक़्क़ी की राह पर गामज़न होता चला गया। उनकी हुक्मरानी के दौरान भोपाल की सरहदों में तौसीअ हुई और रियासत में अमन-ओ-अमान की सूरत-ए-हाल बेहतर हुई। उनकी हिक्मत अमलियों की बदौलत भोपाल को एक मुस्तहकम और ख़ुशहाल रियासत बनाने में मदद मिली। नीज़ नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान ने अपने दौर-ए-हकूमत में मुख़्तलिफ़ इस्लाहात कीं , जिनमें बुनियादी तौर पर तहफ़्फ़ुज़, ज़राअत और तालीम के शोबे में बेहतरी लाना शामिल था। उन्होंने भोपाल के अवाम की फ़लाह-ओ-बहबूद के लिए कई इक़दामात किए और अपनी हुक्मरानी में मुस्लमानों और ग़ैर मुस्लिमों के दरमयान हम-आहंगी क़ायम रखने की कोशिश की। उनकी हुकूमत में भोपाल ने ना सिर्फ सियासी इस्तिहकाम देखा बल्कि रियासत का मआशी निज़ाम भी मज़बूत हुआ। उन्होंने अपनी रियासत में तिजारत, सनअत और ज़रई इस्लाहात को फ़रोग़ दिया, जिसके नतीजे में भोपाल की मईशत ने तरक़्क़ी की।
नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान का दौर हुक्मरानी भोपाल की तारीख़ में एक सुनहरी दौर के तौर पर याद किया जाता है। उनकी वफ़ात के बाद उनके वारिसान ने रियासत भोपाल का इंतिज़ाम सँभाला और उनके नक़श-ए-क़दम पर चलते हुए रियासत को मज़ीद तरक़्क़ी देने में कामयाब रहे। आज भी भोपाल की तारीख़ में नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान का किरदार एक संग-ए-मील के तौर पर याद किया जाता है। उनकी ख़िदमात को इज़्ज़त-ओ-एहतिराम की नज़र से देखा जाता है।
यहां ये भी काबिल-ए-ज़िक्र है कि शहर भोपाल तारीख़ी इमारतों का शहर है। यहां ताज अल मसाजिद से लेकर एशिया की सबसे बड़ी ईदगाह मौजूद है। झीलों की नगरी कहे जानेवाले भोपाल की फ़िज़ा निहायत ही पुर अमन है। नवाबी दौर की सदर मंज़िल हो, शौकत महल हो या इक़बाल मैदान, जामा मस्जिद-ओ-मोती मस्जिद तक हर एक की शानदार तारीख़ रही है। सभी का अपना शानदार माज़ी है। ये इमारतें शहर भोपाल को दूसरे शहरों से ख़ास और मुख़्तलिफ़ बनाती हैं।
लेकिन अफसोस कि पिछले कुछ सालों से ये प्यारा शहर अपनी क़दीम तारीख़ी विरासत को खोता नज़र आ रहा है। नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान के अलावा दीगर नवाबों के शहर की तरक़्क़ी के लिए किए गए कामों को फरामोश किया जा रहा है, तारीख़ी असासे, इमारतें और मैदान सब खन्डर होते जा रहे हैं। कोई उनकी ख़बर-गीरी करने वाला नहीं है। तारीख़ी जगहों और इमारतों नीज़ सड़कों और स्टेशनों के नामों को तबदील किया जा रहा है। इस्लाम नगर को जगदीश पूर कर दिया गया तो हबीबगंज को रानी कमलापति, ग़रज़ ये कि मौजूदा हुकूमतें अवामी फ़लाह-ओ-बहबूद के लिए कोई नया काम करने के बजाय सिर्फ नामों की सियासत कर रही हैं। भोपाल की बेगमात ने कितनी ही ज़मीनें वक़्फ़ की पर अब उन पर नाजायज़ क़बज़ा है और जिनका हक़ था वो महरूम हैं। तमाम आसारे-ए-क़दीमा बेतवज्जुही का शिकार हैं, कोई उनकी देख-भाल करने वाला नहीं है एक वक़्त था जब शहर भोपाल में १५० से ज़ाइद क़ब्रिस्तान थे, जो फ़िलहाल महिज़ ४०-५० ही रह गए हैं जिनका तहफ़्फ़ुज़ वक़्त की अहम ज़रूरत है।
रियासत भोपाल के बानी नवाब दोस्त मुहम्मद के यौम-ए-वफ़ात के मौक़ा पर औक़ाफ़ शाही इंतिज़ामीया से खासतौर पर दरख़ास्त करते है कि भोपाल के तमाम नवाबों के नाम से इदारे क़ायम किए जाएं। औक़ाफ़ शाही की अराज़ी का सही इस्तिमाल होना हो, ऐसे तालीमी इदारे क़ायम किए जाएं जिससे उर्दू, फ़ारसी और अरबी का फ़रोग़ हो। इसके अलावा हुकूमत से तमाम क़दीम तारीख़ी असासों को बचाने की अपील की गई। शहर की बरकत उल्लाह यूनीवर्सिटी को सेंटर यूनीवर्सिटी बनाया जाए इससे भोपाल तारीख़ी शहर होने के साथ साथ इल्म का मर्कज़ भी बनेगा। नवाब पटौदी के नाम से खेल मैदान बनाया जाए। नीज़ ऐसे काम किए जाएं जिससे समाज का भला हो, हर शहरी तालीम याफ़ता बने, बेरोज़गारों को रोज़गार मिले, ग़रीबों का फ़ायदा हो, बेटियों का तहफ़्फ़ुज़ हो, होनहार तलबा की हौसला-अफ़ज़ाई हो।
भोपाल के बानी नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान की यौम-ए-वफ़ात पर शहर के बाशिंदों को शहर की विरासत का तहफ़्फ़ुज़ करने के साथ-साथ वीरान होते जा रहे ताअलीमी इदारों को सरे नौ आबाद करने, खंडहर होते जा रहे क़ब्रिस्तानों, इमारतों की फिक्र करने की जरूरत पर जोर दिया गया।