जीकाअदा -1445 हिजरी
कर्ज की जल्द से जल्द करें अदायगी
हजरत अबू मूसा अश्अरी रदिअल्लाहू अन्हु से रिवायत है कि जनाब नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया- कबाईर (बड़े) गुनाहों के बाद सबसे बड़ा गुनाह यह है कि कोई शख्स मर जाए और उस पर देन यानी किसी का मी हक हो और उसके अदा करने के लिए वह कुछ न छोड कर जाए।
- अबु दाउद
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✅ एमडब्ल्यू अंसारी : भोपाल
उर्दू ग़ज़ल में मुहब्बत के तराने गाने वाले, उर्दू ग़ज़ल को शगुफ़्ता लहजा देने वाले, फ़ारसी की मुश्किल तरकीबों से बाहर निकाल कर ख़ालिस उर्दू में शायरी करने वाले बुलबुल-ए-हिंद, फ़सीह उल मुल्क, नवाब मिर्ज़ा दाग़ देहलवी की शख़्सियत किसी तआरुफ़ की मुहताज नहीं है। दाग देहलवी से पहले ग़ज़ल हिजर की तड़प से या फिर तख़य्युल की बेलगाम उड़ानों से पहचानी जाती थी लेकिन दाग़ देहलवी का उस्लूब पूरे भारत में इस क़दर मक़बूल हुआ कि हज़ारों लोगों ने उसकी पैरवी की और उनके शागिर्द बन गए। ज़बान को उसकी मौजूदा शक्ल में हम तक पहुंचाने का सहरा भी दाग़ के सिर है। दाग़ ऐसे शायर और फ़नकार हैं, जो अपने फ़िक्र-ओ-फ़न-ए-शेर-ओ-सुख़न और ज़बान-ओ-अदब की तारीख़ी ख़िदमात के लिए कभी फ़रामोश नहीं किए जाएंगे। अंसार एजुकेशन साईसाईटी की जानिब से 24 मई को उनकी यौम-ए-पैदाइश के मौके पर प्रोग्राम मुनाकिद कर उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश की गई।
अंसार एजुकेशन के एमडब्ल्यू अंसारी के मुताबिक दाग की खिदमत की ज़रूर क़दर करनी चाहिए कि उन्होंने सख़्त और मुश्किल अलफ़ाज़ तर्क कर सीधे अलफ़ाज़ इस्तिमाल किए जिससे कलाम में ख़ूबसूरती और फ़साहत मज़ीद बढ़ गई है। दाग़ देहलवी के तर्ज़ बयान में जो फ़साहत-ओ-बलाग़त, जो निखार, जो नयापन और जो अलबेलापन मिलता है, वो बहुत कम ग़ज़ल कारों के हिस्से में आया है।
नहीं खेल ए दाग़ यारों से कह दो कि आती है उर्दू आते-आते
दाग़ देहलवी को निज़ाम दक्कन की उस्तादी का शरफ़ हासिल हुआ। फ़सीह उल मुल्क, नवाब नाज़िम जंग बहादुर के ख़िताब से नवाजे गए। दाग़ देहलवी के जितने शागिर्द हुए इतने किसी भी शायर को ना मिल सके। उनके शागिर्द पूरे भारत में फैले हुए थे। अगर ये कहा जाए कि उर्दू ज़बान के फ़रोग़ में दाग़ देहलवी का अहम किरदार है, तो ग़लत ना होगा।अगर हम इस मुल्क में अमन चाहते हैं, भाईचारे का माहौल चाहते हैं तो हमें उर्दू के लिए मेहनत करनी होगी इसलिए कि एक उर्दू ज़बान ही है, जो हमेशा से लोगों को आपस में जोड़कर रखी हुई है और आगे भी उर्दू ज़बान व तहज़ीब ही भारत को जोड़कर रख सकती है। मुल्क आज तरक़्क़ी की राह पर पीछे हैं; इसलिए कि आज ज़बान पर भी सियासत हो रही है, अगर हम बड़ों, बुज़ुर्गों को देखें, उनकी तारीख़ पढ़ें तो यक़ीनन हमें मालूम होगा कि उस दौर में उर्दू किसी ख़ास तबक़े के साथ नहीं जोड़ी जाती थी बल्कि हर एक उर्दू बोलता था और यही हमारे मुल्क भारत का हुस्न था लेकिन अफ़सोस कि मौजूदा हुकूमतें इस प्यारी ज़बान के साथ सौतेला सुलूक कर रही हैं और कहीं ना कहीं हम भी इसके ज़िम्मेदार हैं।
हमें चाहिये कि आने वाली नसलों को उर्दू ज़बान सिखाने के लिए कोशां हो जाएं। ख़ुद भी उर्दू पढ़ें, उर्दू लिखें और उर्दू बोलें, नीज़ अपने बच्चों को भी इसकी तरग़ीब दें। उर्दू ज़बान व तहज़ीब के फ़रोग़ के लिए हर वो काम करें, जिससे उर्दू पूरी दुनिया तक पहुंचे।
भारत है इसका मस्कन, भारत है इसका गुलशन
भारत की है दुलारी उर्दू ज़बान हमारी।