✒ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडियाएक रिपोर्ट के मुताबिक़ मुस्लिम बच्चे बड़ी तादाद में बीच में ही तालीम का सिलसिला तोड़ देते हैं। इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मुस्लिम लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की तालीम जारी रखने का ज़्यादा उम्मीद है।
नेशनल यूनीवर्सिटी आफ़ एजूकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के एजूकेशनल मैनिजमंट इन्फ़ार्मेशन सिस्टम के साबिक़ सरबराह प्रोफेसर अरूण महित की एक रिपोर्ट में ये रुजहान नए सिरे से सामने आया है। महित ने यूनीफ़ाईड डिस्ट्रिक्ट इन्फ़ार्मेशन सिस्टम फ़ार एजूकेशन और ऑल इंडिया सर्वे आन हाइर एजूकेशन से दस्तयाब डेटा का तजज़िया (विश्लेषण) किया है जिससे पता चलता है कि नए मुस्लिम तलबा के इंदिराज (भर्ती) में इज़ाफ़ा सिर्फ 1.29 फ़ीसद है। प्राइमरी क्लासिज़ में मुस्लमानों के इंदिराज का हिस्सा 2021-22 में 15.62 फ़ीसद था, जो 2012-13 में 14.20 फ़ीसद से मामूली इज़ाफ़ा दिखाता है। 2012-13 में ग्यारहवीं और बारहवीं जमात मुस्लिम तलबा का फीसद महज 8.27 था, जो 2021-22 में बढ़कर 10.76 फ़ीसद हो गया।
दरहक़ीक़त 2021-22 में कुल इंदिराज में मुस्लमानों के इंदिराज का हिस्सा 2011 की मर्दुम-शुमारी (जनगणना) में दर्ज आबादी में इसके 14.31 फ़ीसद हिस्से के मुताबिक़ है। हालांकि ये हिस्सा सिर्फ प्राइमरी और अपर प्राइमरी क्लासों में मुस्लिम बच्चों की मौजूदगी से मंसूब किया जा सकता है। तालीम की सतह बढ़ने के साथ-साथ स्कूलों में दाख़िला लेने वाले मुस्लमानों का हिस्सा कम होता जाता है। मुख़्तसरन, मुस्लिम तलबा की बरक़रारी में ब तदरीज इज़ाफ़ा हुआ है, लेकिन नुमायां ड्राप आउट की शरह भी बरक़रार है। प्राइमरी और अपर प्राइमरी क्लासों के मुक़ाबले सेकण्डरी क्लासिज़ में मुस्लिम बच्चों का कम हिस्सा इस बात की निशानदेही करता है कि मुस्लिम बच्चों के क्लास पांच से क्लास छह तक पास करने से पहले ही स्कूल छोड़ने का ज़्यादा इमकान होता है।
मिसाल के तौर पर 2021:22 में प्राइमरी, अपर प्राइमरी, सेकण्डरी और हायर सेकण्डरी में मुस्लिम बच्चों का हिस्सा बिल तर्तीब 15.62 फ़ीसद,14.41 फ़ीसद,12.61 फ़ीसद और 10.76 फ़ीसद था। मुस्लिम अक्सरीयती रियासत जम्मू-ओ-कश्मीर और मर्कज़ के ज़ेर-ए-इंतिज़ाम ख़ित्ता लक्षदीप को छोड़कर, तमाम हिन्दुस्तानी रियास्तों में तस्वीर तक़रीबन एक जैसी है। हिन्दोस्तान की मुस्लिम आबादी ज़्यादा-तर आसाम, मग़रिबी बंगाल, बिहार, केराला और उतर प्रदेश में मर्कूज़ है। 2011 की मर्दुम-शुमारी (जनगणना) के आदाद-ओ-शुमार की बुनियाद पर प्रोफेसर महित की रिपोर्ट से पता चलता है कि मुल्क के 17.22 करोड़ मुस्लमानों में से 58 फ़ीसद इन पाँच रियास्तों में रहते हैं। रिपोर्ट में ये भी पता चला है कि तमाम रियास्तों और मर्कज़ के ज़ेर-ए-इंतिज़ाम इलाक़ों में आला सानवी तालीम में दाख़िला लेने वाले मुस्लिम बच्चों का फ़ीसद दीगर तमाम सतहों की तालीम से कम है।