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✒ मकबूजा बैतुल-मुकद्दस : आईएनएस, इंडिया
उसके बाद इसराईली फौज ने एक बयान जारी किया जिसमें उसने वजाहत की कि उसने गाजा में वाके कब्रों को खोला और उनसे लाशें निकाली थीं। अमरीकी टीवी चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक कब्रें खोलने का मकसद गाजा में यरगमाल (बंदी) बनाए गए ईसराईलीयों की लाशों की शिनाख्त करना था। उन्होंने मजीद कहा कि ये 7 अक्तूबर के अचानक हमलों के दौरान हम्मास के जेर-ए-हिरासत कैदियों की बाकियात की तलाश का एक आॅप्रेशन था। ये बयान उस वक़्त सामने आया, जब कब्रिस्तान को बुल्डोज करने के बाद उसकी फूटेज में दिखाया गया था कि कब्रों को शदीद नुक़्सान पहुंचा और कई कब्रों का नाम-ओ-निशान मिट गया।
बुलडोजरों की मदद से उखाड़ी गई कब्रों के साथ कब्रिस्तान में हर तरफ इन्सानी बाकियात बिखरी देखी जा सकती हैं। फौज ने कहा कि ये कार्रवाई अहम इंटेलीजेंस मालूमात मौसूल होने के बाद सामने आई। उन मालूमात में बताया गया था कि खान यूनुस में लड़ाई के दौरान मुतअद्दिद इसराईली यरगमालियों के मारे जाने के बाद उनकी तदफीन का इमकान था।
काबिल-ए-जिÞक्र है कि कैदियों का बोहरान इसराईल को दरपेश सबसे नुमायां मसला है क्योंकि गाजा में उसकी कार्यवाहीयां इन कैदियों की तलाश के लिए जारी हैं। जुमेरात को इसराईली फौज ने ऐलान किया कि कैदियों को बचाना, उनकी लाशों को तलाश करना और उन्हें वापिस लाना, गजा में उनके अहम एहदाफ (टार्गेट) में से एक है और इसी वजह से लाशों को कब्रिस्तान से हटाया गया। इसराईली फौज के एक तजुर्मान ने अमरीकी नेटवर्क में मजीद बताया कि कैदिययों की शिनाख्त का अमल एक महफूज और मुतबादिल जगह पर होता है। जब इन लाशों की शिनाख्त कर ली जाती है कि वो इसराईली कैदिययों की नहीं हैं तो उन्हें इन्सानी एहतिराम के मुताबिक वापिस दफन कर दिया जाता है। ताहम इसराईली फौज ने ये नहीं बताया कि कब्रिस्तान मिस्मारी आॅप्रेशन में उसे किसी इसराईली यरगमाली की लाश मिली नहीं।
कैंपों में रह रहे लोग दरख़्तों के पत्ते खाने पर मजबूर
गाजा, काहिरा : रफा शहर, जो ख़ेमों की बस्तीयों में तबदील हो गया है, वहां दिल दहलाने वाले वाक़ियात सामने आ रहे हैं। फ़लस्तीनी पनाह गुजीन अनी भूक मिटाने के लिए दरख़्तों के पत्ते खाने पर मजबूर हो गए हैं। सबक़ वेबसाइट के मुताबिक़ रफा से मिलने वाली इत्तिलाआत के मुताबिक़ बहुत सारे फ़लस्तीनी ख़ेमों के बग़ैर खुले आसमान तले डेरे डालने पर मजबूर हैं। शदीद सर्दी और बारिश से बचाव के लिए भी उनके पास कुछ नहीं है। तकरीबन 100 दिन से जारी जंग ने हज़ारों फ़लस्तीनीयों को बे-घर कर दिया है। पनाह गज़ीनों की मदद और उनके रोज़गार पर मामूर बैन-उल-अक़वामी एजेंसी के आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक़ मिस्री सरहद से मिलने वाले रफा शहर की ख़ेमा बस्ती में कम अज़ कम 10 लाख फ़लस्तीनी रह रहे हैं। ये तादाद गाजा पट्टी के कुल बाशिंदों का 50 फ़ीसद है।अब्दुल सलाम हमद नामी एक फ़लस्तीनी, जो अपने अहल-ए-ख़ाना के हमराह रफा पहुंचे थे, उन्होंने कहा कि वो तीन दिन से बग़ैर खे़मे के खुले आसमान तले ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं। अब्दुस्सलाम ने कहा कि हमने खे़मे में रहने वाले दीगर पनाह गज़ीनों से ख़वातीन को अपने यहां ठहराने की इजाज़त मांगी थी जिस पर उनके मर्द ख़ेमों से बाहर आ गए और औरतों को खे़मे में जगह दे दी। एक और पनाह गज़ीं मुहम्मद गुनाम का कहना है कि यहां रफा में कोई ऐसी जगह ख़ाली नहीं, जहां किसी नए खे़मे का इज़ाफ़ा किया जा सके। ये शहर बिलाशुबा ख़ेमों की बस्ती में तबदील हो चुका है। गुनाम ने बताया कि हिलाल अह्मर और ओनरवा की जानिब से कुछ खे़मे और कम्बल तक़सीम किए जा रहे हैं लेकिन यहां जितनी तादाद में पनाह गज़ीन पहुंचे हुए हैं, वो उनकी ज़रूरत के लिए नाकाफ़ी हैं। गुनाम ने कहा कि ख़ुराक का हुसूल इंतिहाई मुश्किल हो गया है। हमें बताया गया है कि कई लोग भूख दूर करने के लिए पत्तों पर गुज़ारा कर रहे हैं। फ़लस्तीनी हिलाल अह्मर की नबाल फ़र्सख़ ने कहा कि रफा के हालात अलमनाक हैं। ख़ान यूनुस में इसराईल के मुसलसल हमलों की वजह से यहां आने वालों का तांता बंधा हुआ है। नबाल फ़र्सख़ ने कहा कि यहां पानी और खाने की क़िल्लत है। बहुत सारे लोग प्यास बुझाने के लिए ऐसा पानी पी रहे हैं, जो आलूदा है। इस पानी की वजह से बीमारीयां फैलने लगी हैं। बहुत सारे फ़लस्तीनी तनफ़्फ़ुस, सीने और जिल्द के अमराज़ में मुबतला हो गए हैं। याद रहे कि रफा रकबा 32 मुरब्बा किलोमीटर से ज़्यादा नहीं जबकि गाजा का कुल रकबा 365 मुरब्बा किलोमीटर है।