✒ मुंबई : आईएनएस, इंडियाबॉम्बे हाईकोर्ट के एक ताज़ा फ़ैसले के मुताबिक मुस्लिम ख़वातीन एक्ट 1986 के तहत तलाक़शुदा खातून दूसरी शादी के बाद भी अपने पहले शौहर से कफ़ालत की हक़दार है। जस्टिस राजेश पाटिल ने कहा कि दफ़ा 3(1) (ए) के तहत ऐसी कोई शर्त नहीं है जो एक मुस्लिम ख़ातून को दुबारा शादी के बाद कफ़ालत हासिल करने से महरूम कर दे।
अदालत ने कहा, क़ानून में मुतय्यन तहफ़्फुज़ात ग़ैर मशरूत (निशर्त) हैं। मज़कूरा (उक्त) एक्ट में साबिक़ा बीवी को उसकी दुबारा शादी की बुनियाद पर दस्तयाब तहफ़्फ़ुज़ को महदूद (सीमित) करने का कोई इरादा नहीं है। एक्ट का ख़ुलासा ये है कि तलाक़ याफताह औरत उसकी दुबारा शादी से क़ता-ए-नज़र मुंसिफ़ाना और ग़ैर जांबदाराना रिज़्क़ और निगहदाशत की हक़दार है। शौहर और बीवी के दरमियान तलाक़ की हक़ीक़त बीवी के लिए सेक्शन 3 (1) (ए) के तहत नफ़क़ा का दावा करने के लिए काफ़ी है। अदालत ने जेएमफसी और सेशन कोर्ट, रत्ना गैरी के अहकामात को चैलेंज करने वाले एक शख़्स की नज़रसानी की दरख़ास्त को मुस्तर्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बीवी को कफ़ालत अदा करने का हुक्म दिया गया है। जोड़े की शादी 9 फरवरी 2005 को हुई थी और उनके यहां एक दिसंबर 2005 को बेटी की पैदाइश हुई थी।
दलील दी गई कि शौहर मुलाज़मत के लिए सऊदी अरब गया था, जबकि बीवी और बेटी अपने वालदैन के साथ रत्नागिरी में ठहरे हुए थे। जून 2007 में बीवी ने बताया कि उसने अपनी बेटी के साथ शौहर का घर छोड़ दिया और अपने वालदैन के घर चली गई। उसके बाद बीवी ने सीआरपीसी की दफ़ा 125 के तहत कफ़ालत की दरख़ास्त दायर की और शौहर ने अप्रैल 2008 में उसे तलाक़ दे दी। निचली कोर्ट ने इबतिदाई तौर पर देख-भाल की दरख़ास्त को मुस्तर्द कर दिया, लेकिन बीवी ने मज़कूरा क़ानून के तहत एक नई दरख़ास्त दायर की। जिसके नतीजे में, अदालत ने शौहर को बेटी को कफ़ालत और बीवी को यकमुश्त रक़म अदा करने का हुक्म दिया। शौहर ने अहकामात को चैलेंज किया और बीवी ने भी इज़ाफ़ी रक़म की दरख़ास्त दायर की। सेशन कोर्ट ने बीवी की दरख़ास्त को जुज़वी तौर पर मंज़ूर करते हुए यकमुश्त कफ़ालत की रक़म बढ़ा कर 9 लाख रुपय कर दी, जिसके नतीजे में शौहर ने नज़रसानी की मौजूदा दरख़ास्त दायर की। दरख़ास्त गुज़ार की जानिब से वकील शाहीन कपाडिया ने दलायल देते हुए कहा कि दूसरी शादी करने के बाद बीवी पहले शौहर से कफ़ालत की हक़दार नहीं है। उन्होंने कहा कि बीवी दूसरे शौहर से ही नफ़क़ा मांग सकती है।
अदालत ने कहा कि एक्ट का सेक्शन 3(1) (ए) दुबारा शादी के ख़िलाफ़ बग़ैर किसी शर्त के मुंसिफ़ाना और ग़ैर जांबदाराना फ़राहमी और देख-भाल फ़राहम करता है। ये ग़ुर्बत को रोकने और तलाक़ याफताह मुस्लिम ख़वातीन के हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ को यक़ीनी बनाने के क़ानून के मक़सद को उजागर करता है, अदालत ने कहा, चाहे उसने दुबारा शादी की हो। अदालत ने इस दलील को मुस्तर्द कर दिया कि तलाक़ के बाद नान नफ़क़ा फ़राहम करना शौहर की ज़िम्मेदारी बीवी की दुबारा शादी पर ख़त्म हो जाती है।
केरला : बे-हिजाब ख़वातीन पर नाज़ेबा तबसरा, मज़हबी स्कालर के ख़िलाफ़ एफआईआर
कोज़ीकोड : केरला की कोज़ीकोड सिटी पुलिस ने शहर के एक मुमताज़ आलिमे दीन के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। मौलवी के ख़िलाफ़ इल्ज़ामात हैं कि उसने एक टेलीविज़न मुबाहिसे के दौरान ख़वातीन मुख़ालिफ़ तबसरे किए थे। कहा था कि हिजाब ना पहनने वाली मुस्लिम ख़वातीन बदकिर्दार होती हैं।रिपोर्ट के मुताबिक़ तरक़्क़ी-पसंद मुस्लिम ख़वातीन के फोरम निसा की सदर वीपी सोहरा ने 7 अक्तूबर को शिकायत दर्ज कराई थी जिसके बाद 4 जनवरी को सुन्नी मज़हबी रहनुमा उमर फ़ैज़ी के ख़िलाफ़ आईपीसी की दफ़ा 295;245 ए (मज़हबी जज़बात को ठेस पहुंचाना और 298 (मज़हबी जज़बात को ठेस पहुंचाने वाले बयानात देना के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है। गुजिश्ता साल अक्तूबर में यकसाँ सिसिल कोड पर एक सेमीनार के दौरान (सीपीएम) लीडर के अनील कुमार ने कहा था कि मल्लापुरम में मुस्लिम लड़कियों ने कमीयूनिसट पार्टी के असर-ओ-रसूख़ की वजह से हिजाब छोड़ दिया है और, ये एक तरक़्क़ी-पसंद क़दम है। इसके बाद उनकी पार्टी के एमपी एएम आरिफ़ और पार्टी के दीगर मुस्लिम लीडरों ने भी उनके बयान पर तन्क़ीद की। पार्टी के रियास्ती सेक्रेटरी और पोलेट ब्यूरो के रुकन एमवी गोविन्दन को यहां तक कहना पड़ा कि पार्टी अनील कुमार की राय से मुत्तफ़िक़ नहीं है। इस बयान के पस-ए-मंज़र में उमर फ़ैज़ी को एक टीवी मुबाहिसे में बुलाया गया। फिर उसने ये बयान दिया कि वो बदकिर्दार हैं। उसके बाद ही निसा ने शिकायत दर्ज कराई।