राजनांदगांव की शोहरतयाफ्ता शख्सियत डाक्टर करीम बख्श गाजी

माजिद अली काविश

यूं तो हर जानदार शय को मौत का मजा चखना है, लेकिन कुछ शय ऐसी हर दिल अजीज होती है कि उनका जाना लंबे समय तक दिलों को सालता रहता है। राजनांदगांव के डाक्टर करीम बख्श गाजी, ऐसी ही हर दिल अजीज शख्सियत थी, जो मिजाजन, इख्लाकन और सादगी से जिंदगी बसर करने के अपने अंदाज से सालों-साल अपने करीबियों के दिलों पर जिंदा रहेगी। गुजिश्ता शब डा. करीम बख्श इस दारे फानी को अलविदा कह गए। वे राजनांदगांव के शोहरतयाफ्Þता वकील हलीम बख्श गाजी और नईम बख्श गाजी के वालिद थे।

    डा. गाजी से मेरी कुरबत ज्यादा नहीं रही। मुलाकात गाहे-ब-गाहे और सलाम-ओ-कलाम •ाी इत्तेफाकन होता, तो •ाी, उनकी सादा मिजाजी, अपनों के लिए उनकी फिक्र, अदब और शेर-ओ-सुखन से उनका लगाव हमें जोड़े हुए था। मैं बारहा उन्हें अजमेर शरीफ आने की दावत देता लेकिन वे हमेशा हंस कर टाल जाते।  
    डा. गाजी जैसी अजीम शख्सियत अपने साथ रहने और आसपास रहने वालों को यह अहसास नहीं होने देती कि उनकी जिंदगी एक ऐसे ‘वट वृक्ष’ की छाह में बसर हो रही है, जो उन्हें लगातार जिंदगी की तवानाई, ठंडक और हिफाजत मयस्सर करा रही है। 
    पेंशनर एसोसिएशन के सदर रहते हुए पेंशनरों की परेशानियों के हल और उनकी फलाह के लिए हमेशा फिक्रमंद रहने वाले डा. गाजी का ‘कहकहा’ रूह को ताजा कर देने वाला होता था। मैं अक्सर उन्हें इसलिए •ाी फोन लगा देता था कि उनके खिलखिलाकर हंसने की आवाज सुनाई दे जाए जो देर तक रूह को गुदगुदाती रहे। लेकिन अफसोस कि अब वो आवाज, वो कहकहा क•ाी सुनाई नहीं देगा। 

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