साईंस का कमाल, मुर्गियों को अब नहीं होगा बर्ड फ्लू, नई किस्म तैयार

साईंस का कमाल, मुर्गियों को अब नहीं होगा बर्ड फ्लू, नई किस्म तैयार

लंदन : आईएनएस, इंडिया 

दुनिया-•ार में हालिया अर्से में चिकन और अंडों की कीमतों में नुमायां इजाफा हुआ है जिसकी मुख़्तलिफ मआशी, मुआशरती और तिब्बी वजूहात हैं। लेकिन अब ये इमकान (उम्मीद) पैदा हो गया है कि आने वाले बरसों में चिकन और अंडों की कीमतें काफी हद तक एतिदाल में रह सकती हैं। इसकी वजह है जीनीयाती तौर पर तब्दीलशुदा नया चिकन। 
    चिकन आज दुनिया•ार में सस्ती और गिजाईयत बखश खुराक के हुसूल का एक सस्ता और आसान तरीका है। तकरीबन हर मुल्क में ना सिर्फ मुर्गियों के बड़े-बड़े फार्म मौजूद हैं, बल्कि अक्सर देही इलाकों में छोटे पैमाने पर घरों में •ाी मुर्गियां पाली जाती हैं। चिकन के साथ एक मसला ये है कि ये बर्ड फलू का आसान निशाना है] जिससे फार्मों के फार्म दिनों में खाली हो जाते हैं। बर्ड फलू एक खतरनाक वबाई मर्ज है जो दीगर परिंदों, जानवरों और यहां तक कि इंसानों को •ाी मुंतकिल हो सकता है। ये खतरा इतना संगीन है कि किसी इलाके में बर्ड फलू के केस रिपोर्ट होने पर वहां की तमाम मुर्गियों को हलाक कर दिया जाता है। एक अंदाजे के मुताबिक हर साल करोड़ों मुर्गियां एहतियाती तौर पर तलफ कर दी जाती हैं जिसकी वजह से उन इलाकों में चिकन और अंडों की किल्लत होने से उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं। 
    साईंसदानों का कहना है कि बर्ड फलू की वैक्सीन्ज पर कसीर सरमाया सर्फ़ करने की बजाय मुर्गियों की ऐसी नसल तैयार करना सहल और आसान है जो बर्ड फलू वाइरस का मुकाबला कर सकती हो। अक़्वाम-ए-मुत्तहदा के खुराक और जराअत के इदारे की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया-•ार में मुर्गियों की तादाद 33 अरब से ज्यादा थी। जबकि 1990 में ये तादाद महज एक करोड़ के लग•ाग थी। 30 साल की मुद्दत में ये ड्रामाई इजाफा इसलिए मुम्किन हो सका क्योंकि मुर्गियों की ऐसी नसल तैयार कर ली गई थी जो महज पाँच हफ़्तों के बाद गोश्त देने के काबिल हो जाती थी। उस वक़्त अंडे से निकलने के 34 दिन बाद चिकन मार्कट में फरोखत के लिए •ोज दिया जाता है। इसी तरह अंडों वाली मुर्गियां •ाी जल्द अंडे देने शुरू कर देती हैं और ज्यादा अर्से तक अंडे देती रहती हैं। 
    मुर्गियों की नई नसल तैयार करने से मुर्ग़ बानी की सनअत में इन्किलाब आया और चिकन इन्सान की गिजाई जरूरीयात पूरी करने का एक सस्ता और आसान जरीया बन गया है। चिकन में मौजूद एक अहम जीन एएनपी 32 है। ये जीन चिकन के खलीयों को ये बताता है कि प्रोटीन कैसे बनाना है। यही वो जीन है, जिस पर फलू का वाइरस आसानी से गलबा पा लेता है और अपनी नकूल तैयार करना शुरू कर देता है। और अपनी मौजूदा सूरत में फलू के वाइरस को अपनी नकूल तैयार करने में सहूलत फराहम करता है साथ ही इसके फैलाओ में अहम किरदार अदा करता है। बर्ड फलू वाइरस को फैलने से रोकने के लिए हर साल दुनिया में करोड़ों मुर्गियां तलफ कर दी जाती हैं जिससे गोश्त और अंडों की किल्लत हो जाती है। वाइरस बढ़ने का तरीका-ए-कार दीगर जानदारों से मुख़्तलिफ है। वाइरस का खलीया टूटकर दो खलीयों में बट जाता है। फिर दो खली चार खलीयों में बदल जाते हैं और चार खली आठ खली बना देते हैं। उसे साईंस की जबान में अपनी नकल तैयार करना कहते हैं। वाइरस इसी तरह बढ़ते और फैलते हैं। वाइरस के बारे में एक और अहम बात ये है कि उसे जिंदा रहने के लिए किसी सहारे की जरूरत होती है। वो किसी जानदार के खली में दाखिल होकर उसके सहारे जिंदा रहता है और अपनी नसल बढ़ाता है। लेकिन अपने मेजबान खली को बीमार कर देता है। बर्ड फलू से बचाव के लिए अगरचे वैक्सीन्ज मौजूद हैं लेकिन स्काटलैंड में कायम यूनीवर्सिटी के एक साईंसदान कहते हैं कि एक तो ये तरीका बहुत महंगा पड़ता है और दूसरा ये कि वाइरस वैक्सीन से बचने के लिए तेजी से अपनी शक्ल तबदील कर लेता है। साईंसदानों का कहना है कि मुर्गियों के जीन का एक हिस्सा ऐसा है जो बर्ड फलू के वाइरस को वहां अपना ठिकाना बनाने और फैलने की सहूलत फराहम करता है। अगर उसकी जीनीयाती तौर पर इस्लाह कर दी जाए तो वो वाइरस के हमले से महफूज हो जाती हैं। 
    साईंसदानों का कहना है कि मुर्गियों के जीन का एक हिस्सा ऐसा है जो बर्ड फलू के वाइरस को वहां अपना ठिकाना बनाने और फैलने की सहूलत फराहम करता है। अगर उसकी जीनीयाती तौर पर इस्लाह कर दी जाये तो वो वाइरस के हमले से महफूज हो जाती हैं। लंदन में कायम इम्पीरियल कॉलेज के वाइरस के उलूम के एक माहिर का कहना है कि बर्ड फलू पर काबू पाने का बेहतर तरीका यही है कि एएनपी 32 नामी जीन में इस्लाह कर दी जाए और इस हिस्से को गैर मोस्सर बना दिया जाए जिससे वाइरस को जीन में अपनी जगह बनाने और अपनी नसल बढ़ाने में मदद मिलती है। इस तहकीक में शामिल साईंसदानों ने चिकन के जीन में दो तबदीलीयां कीं ताकि वो फलू इकसाम के वाइरसज के लिए मुवाफिक ना रहे। साईंसी जरीदे साईंस न्यूज में शाइआ होने वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तबदीली के दो साल बाद मुर्गियां सेहतमंद थीं और मामूल के मुताबिक अंडे दे रही थीं।

8 हजार से जाइद बिल्लियों की मौत की वजह बनने वाला कोरोना पहुंचा ब्रिटेन

लंदन : मशरिक वसता (मध्य पूर्व) के मुल्क कबरस में तकरीबन 8 हजार बिल्लियों की मौत की वजह बनने वाला वाइरस एफ-कोविड-23, जो कोविड-19 की एक किस्म है, के आसार अब बर्तानिया में सामने आए हैं। गैर मुल्की मीडीया रिपोर्टस के मुताबिक इस वाइरस से मुतास्सिरा बिल्ली को कबरस से मुल्क में लाया गया था जिससे बर्तानवी पालतू जानवरों की सेहत के बारे में खदशा पैदा हुआ था। एफ-कोविड-23 को feline infectious peritonitis कहा जाता है। बिल्लियों में ये वबा रवां बरस के आगाज में कबरस में सामने आई थी जिसने हजारों बिल्लियों को मौत के घाट उतारदिया था। यूनीवर्सिटी आफ एडिनबरा, रॉयल वेटरनरी कॉलेज और कबरसी हुकूमत के जरीये किए गए तजजिये से ये बात सामने आई कि बर्तानिया में मौजूद मुतास्सिरा बिल्ली के फिंगर प्रिंटस में 91 फीसद मुतास्सिरा बिल्लियों जैसे थे। कबरस हुक्काम ने 2023 के पहले 6 माह में 8 हजार से ज्यादा बिल्लियों की अम्वात की इत्तिला दी। एक अंदाजे के मुताबिक हकीकी तादाद 300,000 से तजावुज कर गई थी लेकिन हुक्काम ने ये वाजेह नहीं किया। बताया जा रहा है कि मुतास्सिरा बर्तानवी बिल्ली में सामने आने वाली अलामात के जरीये उसका ईलाज और टैस्ट वगैरा का ताय्युन किया जा रहा है, साईंसदानों की जानिब से इस वबा के मजीद फैलने का खतरा जाहिर किया गया है। तहकीक में ये बात सामने आई कि बिल्लियों को मुतास्सिर करने वाले पिछले कोरोना वायरस के बरअक्स,एफ-कोविड-23 ज्यादा आसानी से फैलता दिखाई देता है लेकिन ये पालतू बिल्लियों से इन्सानों में मुंतकिल नहीं होता। गैर मुल्की मीडीया रिपोर्टस के मुताबिक माहिरीन बिल्लियों के मालिकान को मश्वरा देते हैं कि उन्हें अपने पालतू जानवरों को खुद से या दूसरे जानवरों मसलन कुत्तों से दूर रखने की जरूरत नहीं क्योंकि ये उनमें मुंतकिल नहीं होता। 


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