मुल्क अमन, इत्तेहाद व भाईचारे के बगैर नहीं रह सकता : मौलाना अरशद मदनी

3 सफर उल मुजफ्फर 1445 हिजरी
पीर, 21 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं
‘नमाजों में एक नमाज ऐसी है, जो किसी से छूट जाए तो गोया उसका घर-बार सब बर्बाद हो गया। वो नमाज, नमाजे असर है।’
- सहीह बुखारी 
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नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया 

जमई हिंद के सदर मौलाना अरशद मदनी ने अपने एक ताजा बयान में कहा है कि जमई हिंद का जो नुमाइंदा वफद फसाद और मुतास्सिरा इलाकों का जायजा लेने के लिए नूह, मेवात और एतराफ के इलाकों के दौरा पर गया था, उसने जो रिपोर्ट दी है, वो इंतिहाई रूह फर्सा है। उन्होंने कहा कि ये बात बिलकुल आईने की तरह साफ हो कर सामने आ गई कि ये फसाद मन्सूबाबंद था। इसमें पुलिस और इंतेजामिया का रोल मशकूक (संदिग्ध) रहा है, जिसके मुतअद्दिद वीडीयो वाइरल हुए हैं। 
मुल्क अमन, इत्तेहाद व भाईचारे के बगैर नहीं रह सकता : मौलाना अरशद मदनी
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    उन्होंने कहा कि हर फसाद में मुट्ठी भर फिरका परस्त ताकतें अचानक नमूदार होती हैं और फसाद कर के मंजर से गायब हो जाती हैं, नूह व उसके एतराफ में भी यही हुआ, जहां दहाईयों से हिंदू और मुस्लमान प्यार व मुहब्बत से रह रहे थे और अब भी रह रहे हैं, मुनज्जम साजिÞश के तहत फसाद बरपा कराया गया और पुलिस इंतेजामिया की ना अहली के नतीजा में देखते ही देखते एक भयानक शक्ल इखतियार कर गया। मौलाना मदनी ने कहा कि हुकूमत मन्सूबा बंद फसाद की जिÞम्मेदारी से बच नहीं सकती क्योंकि अमन-ओ-अमान की जिÞम्मेदारी हुकूमत की है, लेकिन फसादाद के दौरान हर हुकूमत हमेशा अमन-ओ-अमान बरकरार रखने में नाकाम रही है। 
    मौलाना मदनी ने कहा कि अफसोसनाक हकीकत ये है कि जिस मुनज्जम अंदाज में फसाद बरपा किया जाता है, ठीक उसी मुनज्जम अंदाज में पहले ही से मुजरिमों को बचाने की भी तैयारी कर ली जाती है, यही वजह है कि बेगुनाह को जेल पहुंचा दिया जाता है और आग लगाने वाले आजाद रहते हैं, बेजा गिरफ्तारियां हमेशा की तरह मामूल बन गई है, जहां भी फसाद होता है, यकतरफा मुस्लमानों की अंधाधुंद गिरफ्तारियां होती हैं। अभी कांवड़ यात्रा के मौका पर देहरादून के करीब रामपूर में कांवड़यों ने मस्जिद पर पत्थर फेंका और वहां खड़े होकर इश्तिआल अंगेज नारे लगाए, लेकिन गिरफ्तारियां सिर्फ मुस्लमानों की हुईं। 
    मौलाना मदनी ने कहा कि मुजरिम तो मुजरिम है, मजहब की बुनियाद पर तफरीक (फर्क) नहीं होनी चाहीए लेकिन ये एक ट्रेंड बन गया है कि हर फसाद के बाद जो मजलूम होता है, उसे ही जालिम और फसादी बनाकर पेश कर दिया जाता है। नूह फसाद में भी इसी ट्रेंड पर अमल हो रहा है, जबकि हकायक चीख चीख कर बता रहे हैं कि उकसाने और इश्तिआल अंगेज नारे उन लोगों ने लगाए, जो इस यात्रा में शामिल होने के लिए बाहर से आए थे।


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