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अपनी तरह की पहली खूबसूरत मस्जिद अब नजर आएगी नए कलेवर में

 29 रमजान-उल मुबारक, 1444 हिजरी
जुमा, 21 अपै्रल, 2023
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60 साल पहले वजूद में आई भिलाई (छत्तीसगढ़) की पहली अनूठी मस्जिद जिसके देखते ही जुबान पर बेसाख्ता आ जाता है- ‘या अल्लाह’ 
बाद में इसी तर्ज पर बेंगलुरू, सीवान और सऊदी अरब बनी मस्जिदें


जामा मस्जिद, सेक्टर-6 भिलाई (छत्तीसगढ़), अनूठे डिजाईन वाली शहर की खूबसूरत मस्जिद
Jama Masjid, Sector-6, Bhilai (Chhattisgarh)
(नए कलेवर में कुछ इस तरह नजर आएगी )

मोहम्मद जाकिर हुसैन : भिलाई

छत्तीसगढ़ की इस्पात नगरी (भिलाई) में आधी सदी से भी ज्यादा अर्से तक रूहानित का पैगाम देने वाली अनूठी डिजाइन के साथ वजूद में आई शहर की जामा मस्जिद जल्द ही नए कलेवर में नजर आने वाली है। जामा मस्जिद, भिलाई नगर, मस्जिद ट्रस्ट की निगरानी में मशहूर आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी और उनकी टीम मस्जिद को नया कलेवर देने में जुटी है। 

जामा मस्जिद, सेक्टर-6 भिलाई (छत्तीसगढ़), अनूठे डिजाईन वाली शहर की खूबसूरत मस्जिद

Jama Masjid, Sector-6, Bhilai (Chhattisgarh)
(मौजूदा शक्ल)

    मस्जिद की डिजाईन अरबी लफ्ज ‘या अल्लाह’ की अक्कासी करती है और यही मस्जिद की मकबूलियत की वजह रही है। इसके अनूठे डिजाईन की वजह से भिलाई आने वाले खुद को मस्जिद का एक बार दीदार करने और यहां नमाज अदा करने से रोक नहीं पाते हैं। आर्किटेक्ट हाजी सिद्दीकी और उनकी पूरी टीम अब इस मस्जिद की तौसीअ और अफ्जाईश में जुर्टी हुई है, जिसके बाद मस्जिद की खूबसूरती में और निखार आ जाएगा।
आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी (حاجی ایم ایچ صدیقی)

    गौरतलब है कि अपनी अनूटी बनावट के साथ वजूद में आई इस मस्जिद को आधी सदी से ज्यादा (60 साल) का अर्सा गुजर चुका है इसके बावजूद अब भी यह लोगों खासकर शहर में नए आए लोगों की दिलचस्पी के मर्कज में बनी हुई है। नतीजतन, इस मस्जिद की डिजाइन की बिना पर हूबहू ऐसी ही मस्जिदें सऊदी अरब में अलनमास के अलभा में मौजूद है। वहीं हिंदूस्तान के शहर बेंगलुरू (कर्नाटक) और बिहार में सीवान के फिरोजपुर में भी ऐसी ही मस्जिद बनाई गई है। इसकी खूबसूरती और अनोखी बनावट की  मकबूलियत का यह आलम है कि हिंदूस्तान के अलावा दुनियाभर से शाईया होने वाले उर्दू कैलेंडर्स पर भी सेक्टर-6, भिलाई में वाके इस मस्जिद की तस्वीर गुजरे 60 सालों से देखी जा रही है। 

वक्तन-फ-वक्तन होते रहे बदलाव

बदलते दौर में भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट ने नमाजियों की बढ़ती तादाद को देखते हुए मस्जिद तौसीअ और अफ्जाईश का फैसला लिया जिसके बाद पिछले दो दशक से मुख्तलिफ मरहलों में मस्जिद की तौसीअ का काम अंजाम दिया गया। इसमें मीनार के नीचे मौजूद हौज को बंद कर अलग से वुजू खाना बनाया गया। उस दौर में नमाजियों के लिए मस्जिद के बाहरी हिस्से में कोई छत नहीं थी, लिहाजा मस्जिद ट्रस्ट की ओर से हर साल ठंड की विदाई से बारिश तक (करीब 8 माह) मस्रूई छांह के लिए तिरपाल इस्तेमाल किया जाता था। उसी अश्ने में शहर के मशहूर आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी ने मस्जिद के सामने सहन बनाने की पेशकश की। हालांकि मस्जिद कमेटी की मंशा मस्जिद की खूबसूरती और दिलकशी को कुछ और आलीशान दिखानी थी। इसके लिए आर्किटेक्ट फजल फारूकी बनाए नक्शे पर काम शुरू हुआ और सहन बनकर तैयार हुआ। उसी दौरान आर्च (कमान)  पर मार्बल और सीमेंट की जाली या ग्लास वर्क का सुझाव आया। लेकिन मसला था, मस्जिद का अनोखा डिजाईन (अरबी में लिखा लफ्ज ‘या अल्लाह’) जो नुमाया तौर पर नजर आता था, वह छुप न जाए। काफी राय मश्विरे के बाद मस्जिद की अफ्जाईश का काम हाजी एमएच सिद्दीकी को दिया गया जिन्होंने लफ्ज ‘या अल्लाह’ को और नुमाया करने डिजाइन में कुछ बदलाव किए। सहन के तीनों तरफ छज्जा निकाला गया और सीढ़ियों की जगह दो कमरे बनाए गए। मुस्तकबिल में यहां पुरकशिश रंगीन रौशनी के साथ फव्वारे लगाने की भी स्कीम है। 

नमाज के लिए जाना पड़ता था दुर्ग, सेक्टर-1 में भी होती थी नमाज

इस्पात नगरी, भिलाई के वजूद में आने से पहले मौजूदा टाउनशिप और कारखाने की जगह 45 से ज्यादा गांव थे। जहां बहुत से मुकामी मुस्लिम परिवार भी रहा करते थे। तब यहां इन गांवों में कोई बड़ी मस्जिद नहीं थी। इसलिए यहां के गांवों के मुसलमानों को नमाज के लिए दुर्ग की जामा मस्जिद या ईदगाह (दुर्ग) जाना पड़ता था। 
शहर में भिलाई इस्पात संयंत्र की तामीर होने के साथ ही यहां दीगर ममालिक से अलग-अलग मजहबों के लोगों की आमद हुई। तब टाउनशिप वजूद में आ रहा था हालांकि तब तक मुनज्जम (व्यवस्थित) मजहबी मुकामात नहीं बनें थे। ऐसे में मुस्लिम मआशरे के लोगों को सुपेला, कैंप, बोरिया व खुर्सीपार समेत शहर के अलग-अलग हिस्सों में खुले में नमाज अदा करना पड़ता था। इसके अलावा ईदैन (ईद व बकरीद) की नमाज या मअशरे के बड़े जलसे सेक्टर-1 के मौजूदा क्लब के सामने वाके मैदान में मुनाकिद किए जाते थे। साल 1960 में भिलाई स्टील प्लांट मैनेजमेंट की जानिब से सभी मजाहिब के लिए मजहबी मुकामात ताअमीर के लिए सेक्टर-6 में अराजी मुखतस (भूमि आवंटन) की गई। इस जुमरे में मुस्लिम मआशरे के हिस्से में ‘या अल्लाह’ मस्जिद की आराजी आई। 

हैदराबाद के आर्किटेक्ट ने बनाई है मूल डिजाइन, 1967 में हुई पहली नमाज

भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट के बैनरतले वर्ष 1964 में मस्जिद की संग-ए-बुनियाद रखी गई। मस्जिद की अनूठी डिजाइन हैदराबाद के सिद्दीकी एंड एसोसिएट फर्म के खैरुद्दीन अहमद सिद्दीकी ने दी। बाद के दौर में यह डिजाइन इतनी मशहूर हुई कि देश-विदेश में इसी डिजाइन पर मस्जिद बनाई गई। भिलाई की इस मस्जिद की ताअमीर तीन साल में मुकम्मल हुई और 31 मार्च 1967 बरोज-ए-जुमा नमाज-ए-जुमा की अदायगी के साथ ही मस्जिद में इबादत का सिलसिला शुरू हुआ। मस्जिद में शुरूआती दौर में अलग-अलग इमामों ने अपनी खिदमत अंजाम दिए। जनवरी 1970 से दिसंबर 2013 तक हाजी हाफिज सैयद अजमलुद्दीन हैदर यहां इमाम रहे। उनके बाद से हाफिज इकबाल अंजुम हैदर यहां इमामत कर रहे हैं। 

ट्रस्ट की निगरानी में जारी है खूबसूरती का काम 

जामा मस्जिद सेक्टर-6 की खूबसूरती और तौसीअ का काम भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट की निगरानी में जारी है। ट्रस्ट के अहलकारों में सदर हाजी जमील अहमद, नायब सदर हाजी एमआर अंसारी, मकसूद अहमद, मोहम्मद इब्राहिम, हाजी अब्दुल हक, अब्दुल जाकिर खान, सेक्रेटरी हाजी मिर्जा अशरफ बेग, नायब सेक्रेटरी मोहम्मद मुर्तजा हुसैन, मिर्जा आसीम बेग, मोहम्मद इमरान खान, हाजी नूर मोहम्मद सिद्दीकी, खजांची सैयद हुसैन, नायब खजांची मोहम्मद अजहर, कारकुन हाजी मोहम्मद हमीदुल्लाह, सैयद आतिफ अली, असदुद्दीन हैदर, जफर जावेद, अब्दुल तहूर पवार, हाजी जुल्फिकार अहमद, शाहिद हुसैन, मोहम्मद अलीम सिद्दीकी, हाजी एमएच सिद्दीकी, हाजी मोहम्मद जमीर, जुल्फिकार अली, हाजी अरमान बेग, शेख जमील कुरैशी, हाजी अब्दुल शाहिद खान, फत्ते मोहम्मद, शेख वाहिद अहमद, निजामुद्दीन खान, शमीम अहमद, हाजी अब्दुल कलाम नियाजी, अब्दुल रफीक, मोहम्मद मुमताज अली, मोहम्मद इलियास, अब्दुल नसीम खान और शमशेर खान वगैरह मस्जिद की तौसीअ व खूबसूरती के इस काम को अंजाम देने जुटे हुए हैं।

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