11 रमजान-उल मुबारक, 1444 हिजरी
पीर, 3 अपै्रल, 2023
मेरठ : आईएनएस, इंडिया
मुलियाना में फिकार्वाराना फसादाद के दौरान मुस्लमानों का कत्ल-ए-आम किए जाने के मुआमले में 36 साल बाद फैसला सुनाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक तवील समाअत के बाद एडीजे लखविंदर सूद की अदालत ने 39 मुल्जिमान को अदम सुबूत की बिना पर बरी कर दिया।
मुआमले में 40 मुल्जिमान की मौत हो चुकी है और 14 को पहले ही क्लीनचिट मिल चुकी है। ख़्याल रहे कि इन मुस्लिम मुखालिफ फसादाद में 68 लोगों की जान गई थी और 100 से ज्यादा लोग जखमी हुए थे। 23 मई 1987 को हाशिमपूरा वाकिया के दूसरे दिन मुलियाना के मुहल्ला शेखां में शदीद तशद्दुद हुआ था। जिसमें फसादियों ने लोगों के घरों को आग लगा कर लूटमार की थी। मुहल्ला के रिहायशी याकूब ने फसादाद के अगले दिन रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसमें 93 लोगों को नामजद किया गया था। एफआईआर में इल्जामात लगाया गया था कि हमला आवरों ने अहल इलाका पर हमला कर उन्हें कतल कर दिया। दुकानें लूट ली गईं और घरों को आग लगा दी गई। मामले में 74 गवाह थे जिनमें से सिर्फ 25 हयात हैं। कुछ गवाह शहर से बाहर चले गए हैं। मुल्जिमान के वकील सीएल बंसल ने कहा कि अदालत ने तमाम 39 मुल्जिमीन को अदम सुबूत की बिना पर बरी कर दिया।
उन्होंने कहा कि अदालत में दलील दी गई कि पुलिस ने वोटर लिस्ट सामने रखकर लोगों को कत्ल-ए-आम के मुल्जिम करार दे दिया, जबकि उनका कोई कसूर नहीं था। मेरठ के हाशिमपूरा वाकिया के अगले दिन 23 मई 1987 को मुलियाना में भी कत्ल-ए-आम हुआ था। फायरिंग में 68 लोगों की जानें गईं। याकूब ने कहा कि मुआमले में सलीम ने वोटर लिस्ट एसएचओ टीपी नगर को दी थी और नाम दर्ज कराए थे। अगले दिन रिपोर्ट पर मेरे दस्तखत हो गए। मैंं रिपोर्ट नहीं देख सका। उसके बाद अदालत में ये साबित कर दिया गया कि पुलिस ने कत्ल-ए-आम के बाद दर्ज मुकद्दमे में गलत तरीका से लोगों को मुल्जिम बना दिया था।